Thursday, April 30

पूर्णोपवास का शरीर पर प्रभाव

पाचनसंस्थान
          जैसे अधिक भोजन का परिणाम आमाशय को भुगतना पड़ता हैं उसी तरह उपवास रखने का अच्छा असर भी सबसे पहले आमाशय पर ही नज़र आता है। उपवास काल में दूसरे या तीसरे दिन तेज भूख महसूस होती है। जब यह आन्तरिक भूख परेशान करना बंद कर देती है तब शरीर के अन्दर से जहरीले पदार्थों का निकलना शुरू होता है और यह अवस्था जहर की मात्रा के अनुसार 3-4 दिनों तक बनी रहती है। कभी-कभी यह अवस्था 15 दिनों तक भी देखी जाती है। शरीर के अन्दर से विजातीय द्रव्य (विष) के बाहर निकलने के कारण व्यक्ति की जीभ मैली, सांस में बदबू और भूख न लगना जैसी परेशानियां आ जाती हैं। जैसे-जैसे शरीर में विष की मात्रा कम होती जाती है वैसे ही रोग का असर भी कम हो जाता है और असली भूख भी लगने लगती है, जीभ साफ हो जाती है और शरीर हल्का सा महसूस होने लगता है।
          उपवास का आंतों पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति की आंतों में मल सड़ जाता है तो उसे दस्त, गठिया, और पेचिश जैसे रोग घेर लेते हैं। उपवास के फलस्वरूप आंतों में नया अन्न रस न पहुंचने के कारण उसके सेलों को कम काम करना पड़ता है जिससे उसकी खोई हुई शक्ति पुनः आ जाती है। आंते शरीर के अन्दर से मल को निकालने लगती हैं तथा आंतों में पैदा हुई हवा शोषित हो जाती है |
बड़ी आंत 
 बड़ी आंत में ज्यादा दिनों तक मल के रुके रहने से मल सख्त हो जाता है और उसको बाहर निकलने में बहुत परेशानी होती है। कई बार मल को बाहर निकलने के समय तेज दर्द और कभी-कभी खून भी आ जाता है। इसलिए उपवास काल में एनिमा लेना आवश्यक होता है। यदि उपवास प्रारम्भ करने से पहले साधारण भोजन किया जाए तो पहले और दूसरे दिन अन्य दिनों की तरह ही बराबर मल आएगा। लेकिन 2-3 दिन बाद मल का आना बंद हो जाता है, तब उसे अगर एनिमा क्रिया द्वारा बाहर न निकाला जाए तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
शरीर का ताप 
 भोजन पचने के बाद शरीर में गर्मी पैदा करता है। जिस तरह किसी इंजन में कोयला, पेट्रोल या डीजल की जरूरत होती है, उसी तरह शरीर को चलाने के लिए भोजन की जरूरत होती है। भोजन हमारे शरीर में ईंधन का काम करते हुए शरीर के तापमान को स्थिर रखता है। इसलिए जब हम भोजन नहीं करते हैं तो हमारे शरीर की गर्मी भी कम हो जाती है।
नाड़ी
 उपवास रखने के दौरान नाड़ी में अलग-अलग प्रकार के बदलाव होते देखे जाते हैं। उपवास की कुछ अवस्थाओं में नाड़ी साधारण रहती है, लेकिन कुछ अवस्थाओं में इसके चलने की रफ्तार कम हो जाती है। लगभग 64 प्रतिशत लोगों में नाड़ी की गति सामान्य ही पाई गई है तथा 36 प्रतिशत व्यक्तियों में कम और किसी-किसी मामले में यह गति बढ़ी हुई भी पाई गई है।
रक्त 
उपवास रखने के दौरान उपवास रखने वाले व्यक्ति के खून में अलग-अलग बदलाव देखे जाते हैं। उपवास काल में रक्त में निम्न परिवर्तन हो सकते हैं –

  • कुछ समय तक उपवासकर्ता के रक्त में RBC की संख्या कम होने के बाद बढ़नी शुरू हो जाती है।
  • उपवास के बढ़ने के साथ WBC की संख्या कम हो जाती है।
  • व्यक्ति के खून में इओसिनौफिल्स तथा पोलीन्यूक्लियर की संख्या कम होती जाती है।

इसके अतिरिक्त आंतों में से जो आन्त्र-रस रक्त में चला जाता है वह धीरे-धीरे मल को पकाकर बाहर निकालने लगता है। इसलिए आन्त्र-रस से पैदा हुए आमवात (गठिया) आदि रोग ठीक हो जाते हैं। इसके अलावा आंतों में मल के जमा होने से खून का दबाव बढ़ जाता है, लेकिन यह उपवास के समय आंतों के साफ होने से कम होने लगता है, जिसके कारण दिल की अतिवृद्धि कम होती जाती है, परिणाम स्वरुप  दिल का दौरा होने का डर कम हो जाता है।
त्वचा
          हमारे शरीर में त्वचा के 3 काम होते हैं- शरीर की रक्षा करना, संवेदनाओं को दिमाग तक पहुंचाना, शरीर के अन्दर से पसीने के रूप में विष को बाहर निकालना। हमारे फेफड़े जितना जहर को बाहर निकालते हैं, उतना ही जहर त्वचा भी बाहर निकाल देती है। अप्राकृतिक खान-पान से त्वचा के नीचे ज्यादा चर्बी जमा हो जाती है, तब त्वचा के वे छिद्र जिनमें से पसीना बाहर निकलता है, वे बंद हो जाते हैं, जिसकी वजह से त्वचा द्वारा पसीने के रूप में विभिन्न विजातीय द्रव्य शरीर में ही एकत्र हो जाते हैं । उपवास रखने से त्वचा के नीचे स्थित श्रमबिन्दु और ग्रंथियां अपने असली काम को करना शुरू कर देती हैं, फलस्वरूप शरीर में एकत्र विष बाहर निकलना शुरू हो जाता है। इसी कारण से उपवास काल में बदबूदार पसीना आता है |
स्नायु संस्थान
         स्नायु संस्थान शरीर का सबसे मुख्य संस्थान है। उपवास के फलस्वरूप स्नायु संस्थान के रोग भी ठीक हो जाते हैं।
वजन
          यदि स्वस्थ व्यक्ति उपवास करता है तो शुरुआत के 1-2 दिनों तक उसके वजन में कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अगर कोई मोटा और रोगी व्यक्ति उपवास करें तो 2-3  दिन के बाद उसका वजन लगभग दो किलोग्राम तक कम हो जाता है। उसके बाद रोजाना व्यक्ति का लगभग 500 ग्राम  वजन कम हो जाता है। यदि किसी साधारण से रोग में उपवास किया जाए तो प्रतिदिन 500 ग्राम के लगभग वजन कम होता है।
श्वसन तंत्र 
          उपवास काल में श्वसन तंत्र में विभिन्न परिवर्तन होते हैं जोकि समस्त उपवास कर्ताओं में सामान हो सकते हैं | उपवास के दौरान शुरुआती 2-3 दिनों तक सांस में से बहुत तेज बदबू आती है जो शरीर से जहर और गंदगी निकलने का संकेत देती है, लेकिन लगभग 5-6 दिन बाद पहले की ही तरह सामान्य श्वास चलने लगती है जिससे पता चलता है कि शरीर की सफाई हो गई है।



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