Thursday, April 23

योनि मुद्रा

            

अथ योनिमुद्राकथनम्।

सिद्धासनं समासाद्य कर्णचक्षुर्न सोमुखम्। अंगुष्ठ तर्जनी मध्यानामाभिश्चैव साधयेत् ॥
काकीभिः प्राणं संकृष्य अपाने योजयेत् ततः। षट्चक्राणि क्रमाद्ध्यात्वा हूं हंसमनुना सुधीः ॥३८॥
चैतन्यमानयेद् देवीं निद्रितां यां भुजङ्गिनीम्। जीवेन सहितांशक्तिं समुत्थाप्यकराम्बुजे ॥३९॥
शक्तिमयः स्वयंभूत्वा परशिवेन संगमम्। नाना सुखं विहारं च चिन्तयेत् परमं सुखम् ॥४०॥
शिव शक्ति समायोगादेकान्तेभुविभावयेत्। आनन्दं च स्वयं भूत्वा अहं ब्रह्मेति सम्भवेत् ॥४१॥
ब्रह्महाभ्रणहाचैव सुरापीगुरुतल्पगः। एतैपापैर्निलिप्येत योनिमुद्रानिबन्धात् ॥४२॥
यानि पापानि घोराणि उपपापानि यानि च। तानिसर्वाणि नश्यन्ति योगनिमुद्रानिबन्धात् ॥
तस्मादभ्यासनं कुर्याद्यदि मुक्तिं समिच्छति ॥४३॥ श्रीघेरण्डसंहिता ||

विधि :
  1. सिद्धासन में बैठ जाएँ , रीढ़ की हड्डी सीधी रहे |
  2. अपने हाथ के दोनों अंगूठों से दोनों कानों को बंद करें तत्पश्चात क्रमशः दोनों तर्जनी अंगुलियों से दोनों नेत्र एवं दोनों मध्यमा अँगुलियों से नाक के दोनों छिद्र बंद कर लें, अंत में दोनों अनामिका व कनिष्ठका अंगुलियों को दोनों होठों के पास रखकर होठों को गोल बनाते हुए जिह्वा को कौए की चोंच की तरह नाली जैसा बना लें |जीभ की इस स्थिति को योग में काकी मुद्रा कहा जाता है |
  3. काकी मुद्रा में ही पूरी श्वास अंदर भरें एवं मूलबन्ध लगाते हुए अपान वायु से प्राण वायु को मिलाने की भावना करें | तत्पश्चात श्वास बाहर निकालने के साथ  ॐ का उच्चारण करते हुए यह भावना करें कि ॐ ध्वनि के साथ परस्पर मिली हुयी वायु कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत कर चक्रों का भेद कर सहस्रार चक्र में स्थित हो रही है | 
  4. 5 सेकेण्ड तक बाह्य कुम्भक करने के बाद पुनः पहले की तरह काकी मुद्रा में श्वास को अंदर भरकर योनि मुद्रा करें |


सावधानियां : 
उच्चरक्तचाप के रोगी बलपूर्वक श्वास को लम्बा न करें | आराम से जितना कर सकते हैं उतना ही करें |

मुद्रा करने का समय व अवधि : 
इस मुद्रा को प्रारंभ में प्रातः सायं 5-5 बार करना चाहिए तत्पश्चात क्रम बढ़ाते हुए 21 बार तक ले जाना चाहिए |

चिकित्सकीय लाभ : 

  1. योनि मुद्रा के अभ्यास से मानसिक तनाव समाप्त हो जाता है |
  2. इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से आँख,नाक एवं कान के रोग नष्ट हो जाते हैं |

आध्यात्मिक लाभ : 

  1. इससे अंतर्ज्योति का साक्षात्कार होता है |
  2. यह मुद्रा कुण्डलिनी जागरण के लिए अत्यंत लाभकारी है |


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