Thursday, April 23

प्राकृतिक चिकित्सा- एनिमा ENIMA


  • एनिमा क्रिया आंतों को साफ करने की एक क्रिया है, जिसमें यंत्र के द्वारा पानी को मलद्वार से मलाशय में पहुंचाकर आंतों को साफ किया जाता है। एनिमा क्रिया वैसे ही है जैसे योग में आंतरिक अंगों को साफ करने के लिए षटक्रिया होती है। षटक्रिया में पानी, दूध, रस्सी तथा धौति आदि के द्वारा शरीर के आंतरिक अंगों को साफ किया जाता है। षटक्रिया में एक अन्य क्रिया भी है जिसे बस्तिक्रिया कहते हैं। बस्ति क्रिया का छोटा रूप ही एनिमा क्रिया है। एनिमा क्रिया में पानी को मलद्वार से अंदर पहुंचाकर मलाशय को साफ किया जाता है। एनिमा क्रिया द्वारा केवल आंतों को साफ करके शरीर के विभिन्न रोगों को उत्पन्न होने से रोककर शरीर को स्वस्थ्य बनाए रखा जा सकता है। एनिमा क्रिया से रोग दूर होता है और शरीर कोमल, सुंदर बनता है। एनिमा से आंतों की सफाई के साथ-साथ शरीर का खून भी साफ होता है, जिससे त्वचा कोमल और चेहरे पर चमक आती है।
  • एनिमा क्रिया देखने में साधारण क्रिया लगती है, जिससे आंते साफ होती हैं। परंतु यह क्रिया शरीर में उत्पन्न करने वाले अनेक प्रकार के रोगों का मुख्य स्रोत पेट की कब्ज को दूर करता है। इस क्रिया से कब्ज जड़ से ही समाप्त होता है और शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगों को उत्पन्न होने से रोकता है।
  • एनिमा से आंतों की गर्मी और खुश्की दूर होती है। दस्त या रेचक को ठीक करने के लिए प्रयोग की जाने वाले दवाईयां शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक होती हैं। इन दवाईयों के प्रयोग से कब्ज दूर होने के स्थान पर आंतों को कमजोर हो जाती है। इन दवाईयों के प्रयोग से कब्ज दूर नहीं होती बल्कि वह दब जाता है, जो धीरे-धीरे गैस या अन्य विकार उत्पन्न करता है। इससे खून दूषित होकर शरीर में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। कभी-कभी कब्ज पुराना हो जाने पर आंतों में सड़ने लगता है, जिससे आंतों में कीड़े आदि बन जाते हैं। परंतु एनिमा क्रिया से आंत में जमा हुआ मल, पुराना कब्ज तथा कीड़े आदि नष्ट होते हैं और मलद्वार से बाहर निकल जाते हैं।
  •  बुखार उत्पन्न होना शरीर में बनने वाले अन्य रोगों को संकेत देता है। अत: बुखार में एक एनिमा रोगी को देने से बुखार ठीक हो जाता है और उत्पन्न होने वाले रोग अपने आप समाप्त हो जाता है।
  • गर्भावस्था के अनेक विकार जैसे- उल्टी (वमन), भोजन का न पचना आदि रोग दूर होते हैं। गर्भवती स्त्री को प्रसव के समय उत्पन्न होने वाले दर्द के समय एनिमा देने से प्रसव का कष्ट दूर होता है और बच्चे का जन्म सुखपूर्ण होता है।
  • गर्म पानी के एनिमा के बाद ठंडे पानी का एनिमा देने से पीलिया रोग दूर होता है। एनिमा से विभिन्न रोग जैसे- गठिया, बवासीर, पुराना कब्ज, मन्दाग्नि (पाचन क्रिया का कमजोर होना), खून की खराबी, सांस का रोग, सिरदर्द, बेहोशी, चक्कर आना, अफारा, खांसी, मुंह से बदबू आना आदि रोग ठीक होते हैं। एनिमा यकृत विकार, शारीरिक कमजोरी, निस्तेज हो जाना, फोड़े-फुंसी, दाद, खाज आदि चर्म रोगों को दूर करता है। यह जीभ के छाले, मुंह के छाले तथा स्नायु विकार को दूर करता है। एनिमा क्रिया करने के बाद शारीरिक और मानसिक शांति व स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इस तरह एनिमा सभी प्रकार के रोगों को दूर करने वाली एक आसाधारण क्रिया है |
  • एनिमा पानी के अतिरिक्त रोगानुसार अन्य कई चीजों से दिया जाता है जैसे मट्ठा, नीम के पानी से,दशमूल क्वाथ से आदि | यहाँ हम सामान्य रूप से प्रचलित सादे पानी का एनिमा के विषय में बता रहे हैं 

 एनिमा की विधि :
साधन:
 एनिमा पाट,(चित्र देखें) एक टेबल जिस पर आराम से लेटा जा सके, सरसों का तेल (लगभग 50 मिली)। रबड़ का कैथेटर – 10 नं. का |

विधि:- पैरों की तरफ से टेबल के पायों के नीचे ईंट आदि लगाकर थोड़ा ऊँचा कर लें। एनिमा पाट को पैरों की तरफ स्टैण्ड पर या दीवार के सहारे टांग दें। पाट में आवश्यकतानुसार गुनगुना पानी भर लें। अब टेबल पर सीधे लेटकर पैरों को घुटनों से मोड़ लें तत्पश्चात् एनिमा पाट से लगी पाइप के नोजल पर थोड़ा सा तेल लगाकर गुदा द्वार से 2-3 इन्च अन्दर प्रवेश करा दें तथा पानी खोल दें। पानी स्वतः आंत में पहुँचने लगेगा। नोजल एनिमा पॉट के साथ ही आता है, परन्तु यदि नोजल की जगह 10 नं. का रबड़ का कैथेटर प्रयोग में लिया जाये तो अधिक लाभ होगा | वयस्क व्यक्ति के गूदा द्वार से लगभग 8-10 इंच कैथेटर प्रवेश कराके पानी खोल देना चाहिए | पूरा पानी आंत में पहुँचने के बाद 2-3 मिनट दाहिनी करवट लेटें फिर 2-3 मिनट बाईँ करवट लेटें यदि प्रेशर न बना हो तो 10-15 मिनट टहलें, तत्पश्चात् शौच के लिए जाएं।
विभिन्न आयु वर्ग के लिए एनिमा में पानी की मात्रा 
06 माह से 01 वर्ष के बच्चे को – 100 – 200 मिली.
01 वर्ष से 06 वर्ष के बच्चे को – 200 – 500 मिली.
06 वर्ष से 12 वर्ष के बच्चे को – 500 – 1000 मिली.
12 वर्ष से ऊपर – 1000 – 1200 मिली.
सवधानियाँ:-
एनिमा के पानी का तापमान शरीर के तापमान के बराबर रहना चाहिए।
एनिमा के बाद शौच के समय जोर नहीं लगाना चाहिए। अपने आप पानी के साथ जो मल निकले उसे निकलने देना चाहिए।

विभिन्न अंगों पर एनिमा का प्रभाव
 गर्म पानी से एनिमा क्रिया करने से स्राव होने वाले सभी अंगों पर प्रभाव पड़ता है। इस क्रिया से यकृत, क्लोम ग्रंथि, आमाशय, छोटी आंत और बड़ी आंत प्रभावित होती है। एनिमा क्रिया से आंतों की सफाई होती है, जिससे कब्ज दूर हो जाती है और रोगी को अनेक प्रकार के रोग होने की संभावना समाप्त हो जाती है। इससे पाचन शक्ति बढती है। एनिमा से गैस व कब्ज के कारण उत्पन्न होने वाला मानसिक तनाव दूर होता है और यह मन को शांत करता है। ठंडे पानी का एनिमा लेने से आंते शक्तिशाली बनती हैं और भूख बढ़ती है।
        

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