अथ काकीमुद्राकथनम्।
काकचञ्चुवदास्येन पिबेद्वायुं शनैः शनैः। काकीमुद्रा भवेदेषा सर्वरोगविनाशिनी ॥८६॥
अथ काकीमुद्रायाः फलकथनम्।
काकीमुद्र परा मुद्रा सर्वतन्त्रेषु गोपिता। अस्याः प्रसादमात्रेण न रोगी काकवद् भवेत् ॥८७॥
होठों को कौए की चोंच के समान आकृति बनाकर धीरे-धीरे वायु अंदर खींचकर पान करने की क्रिया सभी रोगों को नष्ट करने वाली काकी मुद्रा हैं |
महर्षि घेरंड कहते हैं कि इस मुद्रा को गुप्त रूप से करना चाहिए एवं इसे किसी पर प्रकट नही करना चाहिए | ऐसी मान्यता है कि कौवा को कभी कोई रोग नही होता एवं वह लम्बा जीवन जीता है उसी प्रकार योगी इस मुद्रा के अभ्यास से सदैव रोगमुक्त रहकर सिद्धियों को प्राप्त करता है,इसीलिए इसे काकी मुद्रा नाम दिया गया है | इस मुद्रा का अभ्यास शरीर के समस्त रोगों को नष्ट करने वाला एवं सदैव निरोग रखने वाला है |
विधि :
सावधानियां :
मुद्रा करने का समय व अवधि :
प्रातः काल एवं मध्य रात्रि का समय काकी मुद्रा के लिए सर्वोत्तम है | इस मुद्रा को जब तक चाहें तब तक कर सकते हैं परन्तु ध्यान रहे कि नासाग्र पर अपलक दृष्टि केन्द्रित करते हुए आँखों में अत्यधिक तनाव न आये | आँखों में तनाव महसूस होने पर आँखों को बंद कर विश्राम दें तत्पश्चात पुनः इस मुद्रा को कर सकते हैं |
चिकित्सकीय लाभ :
आध्यात्मिक लाभ :
काकी मुद्रा के अभ्यास से साधक का मन एकाग्र होकर ध्यान में प्रवेश होता है | यह एक गुप्त साधना है | अर्ध रात्रि के समय इसके अभ्यास से साधक को अपरिमित शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं |
काकचञ्चुवदास्येन पिबेद्वायुं शनैः शनैः। काकीमुद्रा भवेदेषा सर्वरोगविनाशिनी ॥८६॥
अथ काकीमुद्रायाः फलकथनम्।
काकीमुद्र परा मुद्रा सर्वतन्त्रेषु गोपिता। अस्याः प्रसादमात्रेण न रोगी काकवद् भवेत् ॥८७॥
होठों को कौए की चोंच के समान आकृति बनाकर धीरे-धीरे वायु अंदर खींचकर पान करने की क्रिया सभी रोगों को नष्ट करने वाली काकी मुद्रा हैं |
महर्षि घेरंड कहते हैं कि इस मुद्रा को गुप्त रूप से करना चाहिए एवं इसे किसी पर प्रकट नही करना चाहिए | ऐसी मान्यता है कि कौवा को कभी कोई रोग नही होता एवं वह लम्बा जीवन जीता है उसी प्रकार योगी इस मुद्रा के अभ्यास से सदैव रोगमुक्त रहकर सिद्धियों को प्राप्त करता है,इसीलिए इसे काकी मुद्रा नाम दिया गया है | इस मुद्रा का अभ्यास शरीर के समस्त रोगों को नष्ट करने वाला एवं सदैव निरोग रखने वाला है |
विधि :
- किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी रहें |
- दोनों हाथों को घुटनों पर रखकर ज्ञान मुद्रा बना लें (अंगूठे की बगल वाली अंगुली के पोर को अंगूठे के पोर से स्पर्श करें)
- आँखें बंद करके अपने शरीर को शिथिल करें |
- अब धीरे से आँखें खोलें एवं दृष्टि को नासिका के अग्र भाग पर केन्द्रित करें |
- अपने होठों की आकृति कौवे की चोंच की तरह से बना लें एवं जिह्वा से स्पर्श कराते हुए मुख से धीरे-धीरे श्वास को अन्दर खींचें |
- पूरी श्वास अंदर खीचने के बाद मुख बंद कर लें एवं नासिका से श्वास को बाहर छोड़ दें |
- पुनः मुखाकृति कौवे के समान बनाकर इस क्रिया को दोहराएँ | इसी क्रिया को बार-बार करें |
सावधानियां :
- अभ्यास के दौरान दृष्टि नासाग्र पर ही केन्द्रित रहनी चाहिए एवं पलक नही झपकानी चाहिए |
- ध्यान रहे जहाँ पर यह क्रिया कर रहे हों वहां शुद्ध वायु का आवागमन हो |
- अत्यधिक सर्दी के मौसम में काकी मुद्रा नही करनी चाहिए |
- जो व्यक्ति जीर्ण कब्ज से पीड़ित हों उन्हें पहले कब्ज को दूर करने का उपाय करना चाहिए तत्पश्चात काकी मुद्रा करनी चाहिए |
- लो ब्लड प्रेशर की स्थिति में काकी मुद्रा नही करनी चाहिए |
- ध्यान रखें प्रत्येक बार श्वास को मुंह से खींचे एवं नासिका से छोड़ें | नासिका से श्वास अंदर न खीचें |
मुद्रा करने का समय व अवधि :
प्रातः काल एवं मध्य रात्रि का समय काकी मुद्रा के लिए सर्वोत्तम है | इस मुद्रा को जब तक चाहें तब तक कर सकते हैं परन्तु ध्यान रहे कि नासाग्र पर अपलक दृष्टि केन्द्रित करते हुए आँखों में अत्यधिक तनाव न आये | आँखों में तनाव महसूस होने पर आँखों को बंद कर विश्राम दें तत्पश्चात पुनः इस मुद्रा को कर सकते हैं |
चिकित्सकीय लाभ :
- उच्च रक्तचाप को कम करने के लिए यह रामवाण मुद्रा है |
- इस मुद्रा के अभ्यास से रक्त का शोधन होता है एवं खाज ,खुजली,फोड़े-फुंसी आदि त्वचा विकार भी दूर होते हैं |
- इस क्रिया के अभ्यास से शरीर में पाचक रसों का स्राव बढ़ जाता है जोकि पाचन संस्थान को शक्तिशाली बनाते हैं |
- योग के अनुसार काकी मुद्रा में समस्त रोगों को नष्ट करने की शक्ति है |
- काकी मुद्रा गुदा, उदर, कंठ एवं हृदय विकार को दूर करने के लिए बहुत उपयोगी है|
- इस मुद्रा के अभ्यास से एसिडिटी रोग नष्ट हो जाता है |
आध्यात्मिक लाभ :
काकी मुद्रा के अभ्यास से साधक का मन एकाग्र होकर ध्यान में प्रवेश होता है | यह एक गुप्त साधना है | अर्ध रात्रि के समय इसके अभ्यास से साधक को अपरिमित शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं |
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