Thursday, April 23

वायु मुद्रा : (VAYU MUDRA) - जोड़ों के दर्द में लाभकारी







By- Dr.Kailash Dwivedi

विधि :

  • वज्रासन या सुखासन में बैठ जाएँ, रीढ़ की हड्डी सीधी एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें | हथेलियाँ उपर की ओर रखें |
  • अंगूठे के बगल वाली (तर्जनी) अंगुली को हथेली की तरफ मोडकर अंगूठे की जड़ में लगा दें |


सावधानियां : 
  • वायु मुद्रा करने से शरीर का दर्द तुरंत बंद हो जाता है,अतः इसे अधिक लाभ की लालसा में अनावश्यक रूप से  अधिक समय तक नही करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है |
  • वायु मुद्रा करने के बाद कुछ देर तक अनुलोम-विलोम व दूसरे प्राणायाम करने से अधिक लाभ होता है |
  • इस मुद्रा को यथासंभव वज्रासन में बैठकर करें, वज्रासन में न बैठ पाने की स्थिति में अन्य आसन या कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते हैं |

मुद्रा करने का समय व अवधि :

वायु मुद्रा का अभ्यास प्रातः,दोपहर एवं सायंकाल 8-8 मिनट के लिए किया जा सकता है |

चिकित्सकीय लाभ :
  1. अपच व गैस होने पर भोजन के तुरंत वाद वज्रासन में बैठकर 5 मिनट तक वायु मुद्रा करने से यह रोग नष्ट हो जाता है |
  2. वायु मुद्रा के नियमित अभ्यास से लकवा,गठिया, साइटिका,गैस का दर्द,जोड़ों का दर्द,कमर व गर्दन तथा रीढ़ के अन्य भागों में होने वाला दर्द में चमत्कारिक लाभ होता है | 
  3. वायु मुद्रा के अभ्यास से शरीर में वायु के असंतुलन से होने वाले समस्त रोग नष्ट हो जाते है।
  4. इस मुद्रा को करने से कम्पवात,रेंगने वाला दर्द, दस्त ,कब्ज,एसिडिटी एवं पेट सम्बन्धी अन्य विकार समाप्त हो जाते हैं |

आध्यात्मिक लाभ :

वायु मुद्रा के अभ्यास से ध्यान की अवस्था में मन की चंचलता समाप्त होकर मन एकाग्र होता है एवं सुषुम्ना नाड़ी में प्राण वायु का संचार होने लगता है जिससे चक्रों का जागरण होता है |

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