Monday, July 6

हस्त मुद्राओं की चमत्कारिक रोगनिवारक शक्ति

योग में आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि अंगों की तरह हस्त मुद्राओं का बहुत ही खास स्थान है। हस्त मुद्राओं में रोग निवारण की अदभुत शक्ति निहित है, महर्षि घेरण्ड द्वारा रचित घेरण्ड संहिता में लिखा है - योग के जनक भगवान शंकर ने माता पार्वती से कहा है कि हे देवी, मैने तुम्हें मुद्राओं के बारे में ज्ञान दिया है सिर्फ इतने ही ज्ञान से सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। विभिन्न मुद्राओं को करने के लिए हाथ के अंगूठे एवं उँगलियों का उपयोग होता है | एक दूसरे स्पर्श करते हुए उँगलियों की जो आकृति बनती हैं, उसे मुद्रा कहते हैं। मुद्रा के द्वारा अनेक रोगों को दूर किया जा सकता है। हमारा शरीर आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी के मिश्रण से बना हुआ है, हाथों की पांचों उंगलियों में अलग-अलग तत्व मौजूद हैं जैसे अंगूठे में अग्नि तत्व, तर्जनी उंगली में वायु तत्व, मध्यमा उंगली में आकाश तत्व और अनामिका उंगली में पृथ्वी और कनिष्का उंगली में जल तत्व मौजूद है। मुद्रा विज्ञान में जब उंगलियों का रोगानुसार आपसी स्पर्श कराते हैं तब पंचतत्वों का नियमन होकर शरीर रोगमुक्त होने लगता है | वैसे रोगानुसार अनेक प्रकार से हस्त मुद्रायें बनती है, यहाँ हम 10 प्रमुख हस्त मुद्राओं की चर्चा करेंगे |

gyan-mudra
ज्ञान मुद्रा :

हाथ की तर्जनी ऊँगली को अंगूठे से स्पर्श करने पर ज्ञान मुद्रा बनती है |
लाभ : अनिद्रा रोग आश्चर्यजनक लाभ होता है, मस्तिष्क सम्बन्धी विकार,वात रोग,लकवा, हिस्टीरिया रोग में लाभकारी है | ज्ञान मुद्रा के अभ्यास से बुद्धि का विकास होता है,स्मृति शक्ति व एकाग्रता बढती है, सिरदर्द, क्रोध, चिड़चिड़ापन, तनाव,बेसब्री, एवं चिंता नष्ट हो जाती है तथा नशा करने की लत से छुटकारा मिल जाता है |

Prithvi-earth-mudra
पृथ्वी मुद्रा :

हाथ की अनामिका अंगुली (सबसे छोटी अंगुली के पास वाली अंगुली) के अगले पोर को अंगूठे के ऊपर के पोर से स्पर्श कराने से पृथ्वी मुद्रा बनती है |
लाभ : पृथ्वी मुद्रा के अभ्यास से आंख, कान, नाक और गले के समस्त रोग दूर होते हैं। कंठ सुरीला हो जाता है | गले में बार-बार खराश होना, गले में दर्द रहना जैसे रोगों में बहुत लाभ होता है। शरीर ताकतवर और मजबूत बनता है। मुद्रा को प्रतिदिन करने से महिलाओं की खूबसूरती बढ़ती है, चेहरा सुंदर हो जाता है एवं पूरे शरीर में चमक पैदा हो जाती है। पृथ्वी मुद्रा करने से दुबले-पतले लोगों का वजन बढ़ता है। शरीर में ठोस तत्व मात्रा बढ़ाने के लिए पृथ्वी मुद्रा सर्वोत्तम है।

Varun Mudra
वरुण मुद्रा :

सबसे छोटी अँगुली (कनिष्ठा)के उपर वाले पोर को अँगूठे के उपरी पोर से स्पर्श करते हुए हल्का सा दबाएँ। बाकी की तीनों अँगुलियों को सीधा करके रखें।
लाभ : वरुण मुद्रा शरीर के जल तत्व सन्तुलित कर जल की कमी से होने वाले समस्त रोगों को नष्ट करती है। स्नायुओं के दर्द, आंतों की सूजन में लाभकारी है |इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर से अत्यधिक पसीना आना समाप्त हो जाता है |रक्त शुद्ध होता है एवं त्वचा रोग व शरीर का रूखापन नष्ट होता है। यह मुद्रा शरीर के यौवन को बनाये रखती है | शरीर को लचीला बनाने में भी यह लाभप्रद है । वरुण मुद्रा करने से अत्यधिक प्यास शांत होती है।
विशेष : जिन व्यक्तियों की कफ प्रवृत्ति है एवं हमेशा सर्दी,जुकाम बना रहता हो उन्हें वरुण मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नहीं करना चाहिए।

vayu वायु मुद्रा :

अंगूठे के बगल वाली (तर्जनी) अंगुली को मोडकर अंगूठे की जड़ में लगाने से वायु मुद्रा बनती है |
लाभ : अपच व गैस होने पर भोजन के तुरंत वाद वज्रासन में बैठकर 5 मिनट तक वायु मुद्रा करने से यह रोग नष्ट हो जाता है | नियमित अभ्यास से लकवा,गठिया, साइटिका,गैस का दर्द,जोड़ों का दर्द,कमर व गर्दन तथा रीढ़ के अन्य भागों में होने वाला दर्द में चमत्कारिक लाभ होता है |इस मुद्रा को करने से कम्पवात,रेंगने वाला दर्द, दस्त ,कब्ज,एसिडिटी एवं पेट सम्बन्धी अन्य विकार समाप्त हो जाते हैं |

shunya mudra
शून्य मुद्रा :

मध्यमा अँगुली (बीच की अंगुली) को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अँगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की अँगुलियों को सीधा रखने से शून्य मुद्रा बनती हैं।
लाभ : कान के रोग जैसे कान में दर्द, बहरापन, कान का बहना, कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें आना आदि समाप्त हो जाते हैं। कान दर्द होने पर शून्य मुद्रा को मात्र 5 मिनट तक करने से दर्द में चमत्कारिक प्रभाव होता है। इस मुद्रा से थायराइड ग्रंथि सम्बन्धी रोग में बी लाभ होता है।

surya mudra

सूर्य मुद्रा :

अनामिका अंगुली (रिंग फिंगर) को मोडकर अंगूठे की जड़ में लगा लें एवं उपर से अंगूठे से दबा लें | बाकि की तीनों अंगुली सीधी रखें |
लाभ : सूर्य मुद्रा को दिन में दो बार 16-16 मिनट करने से कोलेस्ट्राल घटता है | शरीर में तुरंत उर्जा उत्पन्न हो जाती है, मोटापा दूर होता है,शरीर की सूजन दूर करने में भी यह मुद्रा लाभकारी है | प्रसव के बाद जिन स्त्रियों का मोटापा बढ़ जाता है उनके लिए सूर्य मुद्रा अत्यंत उपयोगी है | इसके अभ्यास से प्रसव उपरांत का मोटापा नष्ट होता है |

Prana mudra

प्राण मुद्रा :

हाथ की सबसे छोटी अंगुली (कनिष्ठा) एवं इसके बगल वाली अंगुली (अनामिका) के पोर को अंगूठे के पोर से लगाने पर प्राण मुद्रा बन जाती है |
लाभ : प्राणमुद्रा ह्रदय रोग में रामबाण है एवं नेत्रज्योति बढाने में यह मुद्रा बहुत सहायक है। प्राणमुद्रा से लकवा रोग के कारण आई कमजोरी दूर होकर शरीर शक्तिशाली बनता है |

LINGA MUDRA
लिंग मुद्रा :

दोनों हाथों की अँगुलियों को परस्पर एक-दूसरे में फंसाकर (ग्रिप बनायें)किसी भी एक अंगूठे को सीधा रखते हुए तथा दूसरे अंगूठे से सीधे अंगूठे के पीछे से लाकर घेरा बनाने से लिंग मुद्रा बनती है |
लाभ : सर्दी से ठिठुरता व्यक्ति यदि कुछ समय तक लिंग मुद्रा कर ले तो आश्चर्यजनक रूप से उसकी ठिठुरन दूर हो जाती है |जीर्ण नजला,जुकाम, साइनुसाइटिस,अस्थमा व निमन् रक्तचाप का रोग नष्ट हो जाता है | इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से कफयुक्त खांसी एवं छाती की जलन नष्ट हो जाती है |यदि सर्दी लगकर बुखार आ रहा हो तो लिंग मुद्रा तुरंत असरकारक सिद्ध होती है | लिंग मुद्रा पुरूषों के समस्त यौन रोगों में अचूक है । इस मुद्रा के प्रयोग से स्त्रियों के मासिक स्त्राव सम्बंधित अनियमितता ठीक होती हैं |लिंग मुद्रा के अभ्यास से टली हुई नाभि पुनः अपने स्थान पर आ जाती हैं |
विशेष : पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को लिंग मुद्रा नही करनी चाहिए |

apan mudra.
अपान मुद्रा :

मध्यमा (बीच की अंगुली)एवं अनामिका (RING FINGER) अंगुली के उपरी पोर को अंगूठे के उपरी पोर से स्पर्श कराके हल्का सा दबाएं | तर्जनी अंगुली एवं कनिष्ठा (सबसे छोटी) अंगुली सीधी रहे |
लाभ : अपान मुद्रा के नियमित अभ्यास से कब्ज,गैस,गुर्दे तथा आंतों से सम्बंधित समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं |यह मुद्रा बबासीर रोग के लिए हाथ की तर्जनी (प्रथम) अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगा दें तथा मध्यमा (बीच वाली अंगुली) व अनामिका (तीसरी अंगुली) अंगुली के प्रथम पोर को अंगूठे के प्रथम पोर से स्पर्श कर हल्का दबाएँ | अत्यंत लाभकारी है | इसके प्रयोग से बबासीर समूल नष्ट हो जाती है |

APAN VAYU MUDRA
अपान वायु मुद्रा (ह्रदय मुद्रा) :

हाथ की तर्जनी (प्रथम) अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगा दें तथा मध्यमा (बीच वाली अंगुली) व अनामिका (तीसरी अंगुली) अंगुली के प्रथम पोर को अंगूठे के प्रथम पोर से स्पर्श कर हल्का दबाएँ |
लाभ : अपान वायु मुद्रा ह्रदय रोग के लिए रामवाण है इसी लिए इसे ह्रदय मुद्रा भी कहा जाता है |दिल का दौरा पड़ने पर यदि रोगी यह मुद्रा करने की स्थिति में हो तो तुरंत अपान वायु मुद्रा कर लेनी चाहिए | इससे तुरंत लाभ होता है एवं हार्ट अटैक का खतरा टल जाता है |इसके नियमित अभ्यास से रक्तचाप एवं अन्य ह्रदय सम्बन्धी रोग नष्ट हो जाते हैं |यह मुद्रा करने से आधे सिर का दर्द तत्काल रूप से कम हो जाता है एवं इसके नियमित अभ्यास से रोग समूल नष्ट हो जाता है |
मुद्रा करने का समय व अवधि : हस्त मुद्रा करने का सर्वोत्तम समय प्रातः,दोपहर एवं सायंकाल है | इन मुद्राओं को दिन में कुल 48 मिनट तक कर सकते हैं | दिन में तीन बार 16-16 मिनट भी कर सकते हैं |

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