Wednesday, July 29

नभोमुद्रा

 

अथ नभोमुद्राकथनम्  :


यत्र यत्र स्थितो योगी सर्वकार्येषु सर्वदा। ऊर्ध्वजिह्वः स्थिरो भूत्वा धारयेत् पवनं सदा। नभोमुद्रा भवेदेषा योगिनां रोगनाशिनी ॥९॥ श्रीघेरण्डसंहिता ||

समस्त कार्यों से चित्त को स्थिर कर श्वास को रोककर, अपनी जिह्वा के अग्र भाग को मुंह के अंदर तालू में लगाने से मस्तिष्क विचार शून्य हो जाता है | इसीलिए नभोमुद्रा को रहस्यों का ज्ञान कराने वाली मुद्रा कहा जाता है |

नभोमुद्रा की विधि :


 

 

  1. सुखपूर्वक किसी आसन में बैठ जाएँ |अपनी दृष्टि को भ्रूमध्य (दोनों भौहों के बीच) को लगा दें एवं जीभ को मुंह के अंदर तालू में लगाएं | यह दोनों कार्य एक साथ करें |

  2. अपनी सुविधा के अनुसार जितनी देर आराम से रुक सकते हैं, इसी स्थिति में रहें |


सावधानियां :

  • मुद्रा करते समय नजर दोनों भौहों के बीच,एवं जीभ तालू के साथ लगाने की किया एक साथ एक ही समय में होनी चाहिए |

  • भोजन के तुरंत बाद या पहले नभोमुद्रा न करें एक घंटे के अंतर पर कर सकते हैं |


मुद्रा करने का समय व अवधि :

प्रारंभ में नभोमुद्रा के अभ्यास को प्रातः एवं सायं 16-16 मिनट के लिए किया जा सकता है | फिर अपनी सामर्थ्य के अनुसार धीरे-धीरे मुद्रा का समय 48 मिनट तक बढ़ा सकते हैं |

चिकित्सकीय लाभ :

  • नभोमुद्रा से अन्तःस्रावी तंत्र सक्रिय हो जाता है जिससे हार्मोन सम्बन्धी रोग दूर होने लगते हैं |

  • विचार शक्ति प्रबल हो जाती है एवं मस्तिष्क में स्थिरता बढ़ जाती है जिससे मस्तिष्क सम्बन्धी रोग दूर हो जाते हैं

  • नभोमुद्रा करने से आँख,जीभ एवं गला सम्बन्धी सभी रोग नष्ट होजाते हैं | 

  • घेरंड संहिता के अनुसार -स्थिर चित्त होकर योगी व्यक्ति यदि श्वास को रोककर अपनी जीभ को मुंह के अंदर तालू में लगाता है तो शरीर के समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं |


आध्यात्मिक लाभ :

नभ का अर्थ आकाश होता है एवं नभोमुद्रा का अर्थ है कि जीभ को तालू में लगाना | यह एक रहस्यमयी मुद्रा है | मुद्रा सिद्ध हो जाने पर साधक के समक्ष प्रकृति के रहस्य खुलने प्रारंभ हो जाते हैं |

 

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