हंसी आंतरिक जाॅगिंग या व्यायाम है। इसमें खुशी उत्पन्न करने की अपार क्षमता है। एक कहावत है कि एक मस्त दिल एक दवा के बराबर है, लेकिन एक पस्त दिल हड्डियों को सुखा देता है। हंसी का संवेग नकारात्मक तनाव को दूर करने का एक कुदरती प्रतिकारक है और यह मनुष्य के मन में विनोद और कल्याण की भावना में वृद्धि करता है। यह नकारात्मक तनाव या अवसाद एपिनेफ्रीन और नाॅरएपिनेफ्रीन, काॅर्टिसाॅल जेसे कुछ रसायनों का उत्सर्जन करता है और बीमारी से लड़ने की क्षमता में वृद्धि करता है। साइकाॅन्यूरोइम्यूनाॅलाॅजी के क्षेत्र में किए गए शोध में लोमा लिंडा विश्वविद्यालय के डाॅ. ली बर्क और डाॅ. स्टैनले टेन का योगदान उल्लेखनीय है। साइकाॅन्यूरोलाॅजी के अनुसार हमारी प्रतिरक्षक प्रणाली हमारे मस्तिष्क से सीधे तौर पर जुड़ी है और इस पर संवेगों का सीधा प्रभाव पड़ता है। उक्त दोनों विद्वानों ने लिखा कि एपिनेफ्रीन और काॅर्टिसाॅल का स्तर हंसी के प्रोटोकाॅल में भाग लेने वाले लोगों में उन लोगों की तुलना में, जिन्होंने इसमें भाग नहीं लिया था, कम था। हंसी तनाव शामक है। मार्क ट्वेन ने कहा था कि मानव जाति के पास सही अर्थों में एक ही अस्त्र है और वह है हंसी। कठिन परिस्थितियों में, जब समस्याएं अपार दिखाई देती हैं और समाधान सीमित होते हैं, तो हास-परिहास शक्तिशाली मित्र सिद्ध हो सकता है।
हास्य चिकित्सा :
हास्य चिकित्सा शरीर में निःश्वास के साथ विजातीय तत्त्वों को विसर्जित करने का सरलतम उपाय है हास्य योग अर्थात् मुस्कराना, खुलकर हँसना। एवं मुस्कान में छिपा है जीवन की समस्याओं का समाधान- तनाव, चिंता, भय, क्रोध, निराशा, चिड़चिड़ापन, हड़बड़ी, अधीरता आदि नकारात्मक प्रवृत्तियों से हमारी अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ खराब होती है जो शरीर में विभिन्न रोगों को निमन्त्रण देने में अहम् भूमिका निभाती है।यदि हमारा चेहरा सदैव मुस्कराता हुआ प्रसन्नचित्त रहे तो व्यक्ति अनेक रोगों से सहज ही बच सकता है। उसकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है। सोच सकारात्मक हो जाती है। दूसरी बात अकारण भी मुस्कराने से तनाव, भय, चिंता, अशांति, स्वतः दूर भाग जाते हैं। प्रेम, मैत्री,आनन्द, प्रसन्नता बढ़ने लगती हैं। प्रतिकूलता में अपने चेहरे को मुस्कराते हुए रखना चाहिए एवं रोग की अवस्था में दवा की भांति इसका उपयोग करना चाहिए। मात्र 10 से 15 मिनट मुस्कराने से रक्तचाप चाहे बढ़ा हो अथवा कम हो, सामान्य हो जाता है। मधुमेह के रोगी को दवा लेने की आवश्यकता नहीं रहती।
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