By- Dr.Kailash Dwivedi
आमाशय के घाव का प्रमुख कारण है- बहुत अधिक अप्राकृतिक आहार जैसे चाय,काफी,कोल्ड ड्रिंक,तले हुए खाद्य, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद खाद्य, परिशोधित/ परिरक्षित खाद्य इत्यादि का सेवन है | आमाशय को निरंतर अप्राकृतिक खाद्यों से भरते रहना उसकी कार्य क्षमता को घटाता है फलस्वरूप वहां पर विजातीय द्रव्यों (विष) का प्रभाव बढ़ जाता है और अल्सर सहित अन्य अनेक पाचन संस्थान के रोग उत्पन्न हो जाते हैं | इसके अतिरिक्त निम्न कारण भी उत्तरदायी हैं -
- बहुत अधिक ठंडा अथवा गर्म भोजन ग्रहण करना |
- अम्लरोग (Acidite) से पीड़ित लोग जब लगातार इसकी उपेक्षा करते हैं एवं विभिन्न दवाओं से एसिडिटी को दबाते रहते हैं, यह अवस्था आगे चलकर ‘अल्सर’ में परिवर्तित हो जाती है |
- अयाधिक मद्यपान एवं चाय, काफी शरीर में अम्लता के स्तर को बढ़ा देती है, जिससे आमाशय में घाव की सम्भावना बढ़ जाती है |
लक्षण
- आमशायिक घाव में अधिकांश नाभि के थोडा ऊपर या पेट के ठीक बीचों-बीच छाती की हड्डियों के ठीक नीचे दर्द होता है |
- सामान्यतः भोजन के पहले (खाली पेट) दर्द अधिक रहता है जो कि भोजन करने के पश्चात् बंद या कम हो जाता है |
- दर्दयुक्त स्थान पर दबाने से असहनीय पीड़ा होती है | रोगी पैंट या पैजामा कसकर पहनने में भी तकलीफ महसूस करता है |
- कभी-कभी खून की उलटी होती है जो कि कुछ काले रंग कि होती है एवं खून के साथ खाए हुए पदार्थ भी निकलते हैं |
चिकित्सा :
चूँकि शरीर में विजातीय द्रव्यों(विष) का बढ़ना भी इस रोग का कारण है अतः मात्र आमाशय के घाव को निरोग करना इसका स्थायी निवारण नहीं क्योंकि शरीर की दूषित अवस्था में एक स्थान का घाव अच्छा होने पर उसकी दूसरे स्थान पर पुनः उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है अतः आहार चिकित्सा के साथ-साथ शरीर का शोधन करना अति आवश्यक है |रोगी को कम-से-कम तीन सप्ताह तक प्राकृतिक उपचार एवं प्राकृतिक नियमों का पालन करना चाहिए | अल्सर की चिकित्सा में प्रतिदिन पेट की लपेट का प्रयोग करना चाहिए |पेट की लपेट की विधि :
पेट की लपेट के लिए महीन सूती कपडा लगभग एक फिट चौड़ा एवं लम्बा इतना कि पेट पर तीन-चार लपेटे लग जाएँ | इस कपडे कि पट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर निचोड़ लें, तत्पश्चात इसे पेडू से नाभि के ऊपर तक रखकर लपेट लें | इस गीली पट्टी के ऊपर कोई गर्म कपडा जैसे शाल या चादर इस तरह लपेटें कि नीचे वाली गीली पट्टी पूरी तरह से ढक जाय | इसके अतिरिक्त निम्नलिखित क्रम से चिकित्सा करनी चाहिए |प्रथम सप्ताह का उपचार एवं भोजन क्रम :
- एक सप्ताह तक प्रतिदिन प्रातः खाली पेट 5 मिनट पेट की गर्म सेंक करके पेट पर ४५ मिनट तक मिटटी की पट्टी लगायें तत्पश्चात गुनगुने पानी का एनिमा लेकर ४५ मिनट के लिए पेट की लपेट करें |
- रात्रि में पेट पर मिटटी की पट्टी लगाकर सोयें |पट्टी लगी रहे इसलिए उसे किसी कपडे की पट्टी से बांध लें |
- रोग की तीव्र अवस्था में रोगी को एक बार में भरपेट न खाकर थोडा-थोडा करके पहले एक घंटे के अन्तराल पर सुबह ७ बजे से सायं ७ बजे तक खाना चाहिए |
- प्रातः एक गिलास ताजे पानी में दो चम्मच शहद, एक घंटे बाद एक खीरे का रस पुनः एक घंटे बाद दूध (१०० से २५० मिली.) लेना चाहिए | इन्ही तीन पथ्यों को क्रम से दिनभर लेना चाहिए |
- इस रोग में दूध को सर्वश्रेष्ठ पथ्य माना गया है क्योंकि यह आमाशय को उत्तेजित किये बिना शरीर को पुष्ट करता है | इस बात का ध्यान रखें कि दूध न अधिक गर्म हो और न ही अधिक ठंडा |
- शहद को पानी के अतिरिक्त दूध के साथ भी ले सकते हैं | चीनी का प्रयोग न करें |
दूसरे सप्ताह का उपचार एवं भोजनक्रम :
- दूसरे सप्ताह प्रातः काल प्रथम सप्ताह की तरह ही उपचार करें तत्पश्चात ठन्डे पानी में एक तौलिया भिगोकर,निचोड़कर सिर पर रखकर ३० -४० मिनट धूप में बैठें |
- रात्रि में प्रथम सप्ताह की तरह पेट पर मिटटी की पट्टी लगायें |
- भोजन में प्रति दो घंटे पर शहद+पानी, खीरे का रस, दूध लें |
- दोपहर में खूब पके हुए २-३ केला खाएं |
तीसरे सप्ताह का उपचार एवं भोजनक्रम :
प्रातः पेट की सेंक १० मिनट+मिटटी की पट्टी ४५ मिनट+एनिमा के बाद पेट की गर्म-ठंडी सेंक करनी चाहिए |
गर्म-ठंडी सेंक के लिए एक रबड़ की थैली में गर्म पानी भरें | एक बर्तन में खूब ठंडा पानी रख लें | गर्म सेंक रबड़ की थैली से एवं ठंडी सेंक पानी में एक छोटा तौलिया भिगोकर निम्नलिखित क्रम से करें -
- गर्म सेंक : 3 मिनट
- ठंडी सेंक : 1मिनट
- गर्म सेंक : 3 मिनट
- ठंडी सेंक : 1मिनट
- गर्म सेंक : 3 मिनट
- ठंडी सेंक : 1मिनट
- गर्म सेंक : 3 मिनट
- ठंडी सेंक : 3 मिनट
यदि गर्म सेंक के लिए रबड़ की थैली उपलब्ध न हो तो ठंडी सेंक की तरह गर्म पानी में छोटा तौलिया भिगोकर, हल्का निचोड़कर सेंक की जा सकती है | सेंक के दौरान तौलिया प्रति मिनट पुनः पानी में भिगोकर बदलते रहें |
- रात्रि सोते समय सारी रात के लिए पेट की लपेट करें |
- भोजन में प्रति दो घंटे पर क्रम से शहद+पानी व मौसमी का रस लें |
- दोपहर में खूब गला हुआ भात (पुराने चावल का) लें |
- सायं ४ बजे किसी हरी सब्जी का सूप लें |
- रात्रि भोजन में – लौकी, परवल जैसी कोई हरी सब्जी+उबला हुआ आलू लें |
आमाशय से रक्तस्राव होने पर क्या करें ?
रोग की तीव्र अवस्था में यदि आमाशय से रक्तस्राव एवं उल्टियाँ प्रारंभ हो जाएँ तो तुरंत पीठ के बल चित लेट जाएँ, तत्पश्चात ठन्डे पानी में तौलिया भिगोकर, दो-तीन तह करके पेट पर रखें उसके ऊपर बर्फ की थैली रख दें |अथवा पेट पर मिटटी की पट्टी रखें तत्पश्चात सिर पर ठन्डे पानी में बिगोकर तौलिया रखें एवं पैरों की लपेट (पेट की लपेट की तरह ) करें || यह सब प्रयोग एक साथ ही करें | उपचार के मध्य यदि रोगी को पसीना आने लगे तो तो पैरों की लपेट खोल दें | उपचार के मध्य चाय के चम्मच से बर्फ का पानी पीते रहें अथवा बर्फ का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहें |इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आमाशय से रक्तस्राव होने पर पूर्ण विश्राम अति आवश्यक है अतः कम-से-कम १५ दिन का बेडरेस्ट करें एवं प्रथम सप्ताह का उपचार क्रम चलाते रहें |
विशेष ध्यान देने योग्य बातें :
- यदि अल्सर का दर्द हो रहा हो तो पेट पर दिन में तीन बार गर्म -ठंडी सेंक के बाद एक-एक घंटे के लिए पेट की लपेट करनी चाहिए | इसके अतिरिक्त दो बार एक घंटे के लिए पैरों की लपेट करनी चाहिए |
- यदि भोजन के बाद उल्टी हो जाती हो तो भोजन के पूर्व पेट की गर्म-ठंडी सेंक के बाद ४५ मिनट तक पेट की लपेट करें तत्पश्चात भोजन करें |
- घाव सुखाने के लिए यह आवश्यक है कि चिकित्सा क्रम के अनुसार पेट पर मिटटी कि पट्टी का प्रयोग सारी रात के लिए किया जाय |
- प्रतिदिन शवासन और शरीर की शिथिलता का अभ्यास करना चाहिए |
- पेट थोडा अच्छा होते ही (तीन सप्ताह बाद) फलों के रस,उबली हुयी सब्जी,सब्जियों का सूप और कच्ची सब्जियों का रस लेना चाहिए | रोग की तीव्र अवस्था में सलाद नहीं लेना चाहिए |
- किशमिश जैसे मेवे ले सकते हैं परन्तु इसे १२ घंटे पहले पानी में भिगोकर मसल कर लें तत्पश्चात उस पानी को छानकर पी लें |
- हल्दी के अतिरिक्त सभी तरह के मसाले,फलों के छिलके और बीज,सलाद,मूली ,रेशेदार सब्जियां,सभी तरह के तले- भुने खाद्य,अधिक नमक,मिर्च,अचार,अंजीर,खुबानी,कच्चा सेब,मुनक्का,परिरक्षित खाद्य,सिरका,मांस-मछली,चाय,काफी व चीनी निरोग होने के बाद कम से कम एक वर्ष तक नहीं लेना चाहिए |
- यदि रोग को पुनः नहीं आने देना चाहते हों तो धूम्रपान,मद्यपान,पान मसाला, गुटखा आदि नशीले पदार्थों का सेवन वर्जित कर दें |
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