Friday, April 17

योग चिकित्सा –षट्कर्म

योग साधना की सभी क्रियाओं का अपना-अपना महत्व है। परंतु षट्कर्मो का अपना अलग ही महत्त्व है। योगाभ्यास में सफलता के लिए षट्कर्म के द्वारा शरीर को साफ व शुद्ध करना आवश्यक है। इसके अभ्यास के बिना यदि कोई व्यक्ति योगाभ्यास करता है, तो उसे योग में सफलता प्राप्त करने में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
षट्कर्म क्या है?
  शरीर से विषयुक्त दूषित तत्वों को निकालकर साफ करने की जो विधि योग क्रियाओं में बताई गई है, उसे षट्कर्म कहते हैं। यह निम्नलिखित छः क्रियायें होती हैं –
1. नेति 
2. धौति
3. वस्ति
4. कुंजल 
5. नौलि 
6. त्राटक 

 1-नेति क्रिया 
प्रमुख रूप से नेति दो प्रकार की होती है – जल नेति एवं सूत्र नेति | यहाँ हम जल नेति का वर्णन कर रहे हैं |

जलनेति के लिए एक लम्बी टोटी (नली) लगे लोटे या बर्तन की आवश्यकता होती है। इस तरह का बर्तन आसानी से मिल जाता है।
जलनेति की विधि
जलनेति की क्रिया के लिए नमक मिले पानी को गर्म करके हल्का गुनगुना कर लें। फिर टोटी वाले बर्तन या लोटे में नमक मिले पानी को भर लें। अब नीचे बैठ कर लोटे की टोटी को उस नाक के छिद्र में लगाएं, जिससे सांस चल रही हो और मुंह खोलकर रखें। इसके बाद टोटी लगे छिद्र वाले भाग को हल्का सा ऊपर उठाकर रखें और पानी को नाक में डालें। इससे पानी नाक के दूसरे छिद्र से बाहर निकलने लगेगा। जब लोटे का सारा पानी खत्म हो जाए तो टोंटी को नाक के छिद्र से निकालें और फिर उस लोटे में पानी भरकर इस क्रिया को नाक के दूसरे छिद्र से भी करें। ध्यान रखें कि नाक में पानी डालते समय मुंह को खोलकर रखें और मुंह से ही सांस लें और छोड़ें। इस क्रिया के पूर्ण होने के बाद कपालभांति या भस्त्रिका प्राणायाम करें। (इस क्रिया के लिए पहले सीधे खड़े हो जाएं। फिर दोनों पैरों के बीच डेढ़ से दो फुट की दूरी रखते हुए कमर से शरीर को आगे की ओर झुकाकर रखें और हाथों को पीछे ले जाकर दाएं हाथ से बाएं हाथ की कलाई को पकड़ लें। इसके बाद तेज गति से रेचक व पूरक करें अर्थात सांस लें और छोडे़, साथ ही गर्दन को दाएं-बाएं तथा ऊपर-नीचे करते रहें। इस क्रिया में सांस लेने व छोड़ने की क्रिया को जितना तेज करना सम्भव हो करें। इस क्रिया को 20 से 25 बार करें )
जलनेति करते समय सावधानी रखें और इस क्रिया में पानी को पूर्ण रूप से बाहर निकलने दें क्योंकि पानी अन्दर रहने पर जुकाम या सिर दर्द हो सकता है। इस लिए जलनेति को किसी जानकर की देख-रेख में करें और जलनेति के बाद कपालभांति या भस्त्रिका प्राणायाम जरूर करें।
जलनेति से रोगों में लाभ

  1. इस क्रिया से नाक व गले की गंदगी साफ हो जाती है तथा यह गले व नाक से संबन्धी रोगों को खत्म करता है। 
  2. इससे सर्दी, खांसी, जुकाम, नजला, सिर दर्द आदि रोग दूर होते हैं। यह आंखों की बीमारी, कान का बहना, कम सुनना आदि कान के सभी रोग तथा पागलपन के लिए लाभकारी है। 
  3. इससे अनिद्रा, अतिनिद्रा, बालों का पकना तथा बालों का झड़ना आदि रोग दूर होते हैं। 
  4. इससे मस्तिष्क साफ होता है और तनाव मुक्त रहता है, जिससे मस्तिष्क जागृत होकर बुद्धि व विवेक को विकसित करता है। 

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