सूत्र नेति की विधि
सूत्र नेति के लिए डेढ़ फुट लम्बा और सवा इंच चौड़ा मलमल का टुकड़ा लें। इसके बाद इस मलमल के कपड़े को बीच से आधी लम्बाई तक फाड़कर रस्सी की तरह बना लें। फिर एक छोटी कटोरी में मधुमक्खी के छते से बने शुद्ध मोम को पिघलाकर उसमें रस्सी को डाल दें। इसे बाहर निकाल कर हाथों से रगड़कर चिकना बना लें, ताकि रस्सी के किसी भी स्थान पर अधिक या कम मोम जमा न रहें। रस्सी चिकनी हो जाने के बाद उसके एक भाग को अंगुलियों से रगड़कर पतला बना लें जैसे सुई में डालने के लिए धागे की नोक को पतला बनाया जाता है। अब इस नोक वाले भाग को घुमाकर अर्ध चन्द्राकर बनाएं। इसके बाद कागासन में बैठकर पतले किए हुए भाग को नाक के एक छिद्र में धीरे-धीरे डालें और सांस अन्दर की ओर खींचें। इससे धागा मुंह में आ जायेगा। इसे अंगुलियों से पकड़कर धीरे-धीरे बाहर निकाल लें। फिर इसे नाक के दूसरे छिद्र में डालें और मुंह से बाहर निकालें। इस क्रिया को नाक के दोनों छिद्रों से 20 से 40 बार करें।
यदि घर के कपड़े से सही सूत्र तैयार न कर सके तो घर में कच्चे सूत के धागे से इसे बनाएं। इसके लिए कच्चे सूत का मुलायम व बिना गांठ वाला तथा बांटा हुआ डेढ़ से 2 फुट का धागा लें। जिसकी मोटाई इतनी हो जिसे आसानी से नासिका छिद्र (नाक के छेद) में घुसाकर मुंह से बाहर निकाला जा सके। इस धागे को गर्म पानी में डुबोकर बंटे हुए भाग को आगे से अर्धचन्दाकार बना लें। अब कागासन में बैठकर धागे के एक सिरे को पकड़ कर रखें और दूसरे सिरे को अंगुलियों से रगड़कर नुकीला बना लें। इसके बाद उसे श्वास चल रहें छिद्र में डालें और लम्बी सांस खींचें। इससे धागा नासिका छिद्र से होकर मुख में आ जायेगा। फिर अंगुलियों को मुख में डालकर धागे को पकड़कर धीरे-धीरे बाहर खींच लें। फिर धागे को दूसरे नासिका छिद्र से डालें और मुंह से बाहर निकाल लें। इसी प्रकार दोनों नाक से इस क्रिया को 20 से 40 बार करें। आखिरी में धागे को एक छिद्र से डालकर दूसरे छिद्र से निकालें। इस क्रिया को सप्ताह में 2 से 3 बार करें तथा जिसकी आंखें कमजोर है उसे यह क्रिया 2 से 3 महिने में करना चाहिए।
सावधानी
रोगों में लाभ
यह क्रिया नाक की नली को साफ करती है तथा नाक व कंठ के अन्दर की गंदगी को भी दूर करती है। यह कपाल को शुद्ध करती है | सिरदर्द, सायनस,नजला रोग में विशेष लाभदायक है |
सूत्र नेति के लिए डेढ़ फुट लम्बा और सवा इंच चौड़ा मलमल का टुकड़ा लें। इसके बाद इस मलमल के कपड़े को बीच से आधी लम्बाई तक फाड़कर रस्सी की तरह बना लें। फिर एक छोटी कटोरी में मधुमक्खी के छते से बने शुद्ध मोम को पिघलाकर उसमें रस्सी को डाल दें। इसे बाहर निकाल कर हाथों से रगड़कर चिकना बना लें, ताकि रस्सी के किसी भी स्थान पर अधिक या कम मोम जमा न रहें। रस्सी चिकनी हो जाने के बाद उसके एक भाग को अंगुलियों से रगड़कर पतला बना लें जैसे सुई में डालने के लिए धागे की नोक को पतला बनाया जाता है। अब इस नोक वाले भाग को घुमाकर अर्ध चन्द्राकर बनाएं। इसके बाद कागासन में बैठकर पतले किए हुए भाग को नाक के एक छिद्र में धीरे-धीरे डालें और सांस अन्दर की ओर खींचें। इससे धागा मुंह में आ जायेगा। इसे अंगुलियों से पकड़कर धीरे-धीरे बाहर निकाल लें। फिर इसे नाक के दूसरे छिद्र में डालें और मुंह से बाहर निकालें। इस क्रिया को नाक के दोनों छिद्रों से 20 से 40 बार करें।
यदि घर के कपड़े से सही सूत्र तैयार न कर सके तो घर में कच्चे सूत के धागे से इसे बनाएं। इसके लिए कच्चे सूत का मुलायम व बिना गांठ वाला तथा बांटा हुआ डेढ़ से 2 फुट का धागा लें। जिसकी मोटाई इतनी हो जिसे आसानी से नासिका छिद्र (नाक के छेद) में घुसाकर मुंह से बाहर निकाला जा सके। इस धागे को गर्म पानी में डुबोकर बंटे हुए भाग को आगे से अर्धचन्दाकार बना लें। अब कागासन में बैठकर धागे के एक सिरे को पकड़ कर रखें और दूसरे सिरे को अंगुलियों से रगड़कर नुकीला बना लें। इसके बाद उसे श्वास चल रहें छिद्र में डालें और लम्बी सांस खींचें। इससे धागा नासिका छिद्र से होकर मुख में आ जायेगा। फिर अंगुलियों को मुख में डालकर धागे को पकड़कर धीरे-धीरे बाहर खींच लें। फिर धागे को दूसरे नासिका छिद्र से डालें और मुंह से बाहर निकाल लें। इसी प्रकार दोनों नाक से इस क्रिया को 20 से 40 बार करें। आखिरी में धागे को एक छिद्र से डालकर दूसरे छिद्र से निकालें। इस क्रिया को सप्ताह में 2 से 3 बार करें तथा जिसकी आंखें कमजोर है उसे यह क्रिया 2 से 3 महिने में करना चाहिए।
सावधानी
- इस क्रिया को करना अधिक कठिन है, इसलिए इस क्रिया के अभ्यास से पहले रबड़ नेति करें जिसमें रबड़ का बना हुआ सूत्र होता है।
- इस क्रिया को प्रारंभ में किसी योग शिक्षक की देख-रेख में करें। इस क्रिया को जल्दबाजी में करने से नासिका को हानि हो सकती है।
- पहली बार सूत्र नेति करने से पहले रात को नाक के दोनों छिद्रों में शुद्ध घी की कुछ बूंदे डालें।
रोगों में लाभ
यह क्रिया नाक की नली को साफ करती है तथा नाक व कंठ के अन्दर की गंदगी को भी दूर करती है। यह कपाल को शुद्ध करती है | सिरदर्द, सायनस,नजला रोग में विशेष लाभदायक है |
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