Friday, April 17

षट्कर्म - धौति क्रिया

धौति का अर्थ होता है-धोना, यह  क्रिया हठयोग का एक अंग है। इस क्रिया में पेट को के द्वारा धोया जाता है। इसलिए इसे धौति क्रिया कहते हैं। यह हठयोग के 6 कर्मों में से सबसे अधिक महत्वपूर्ण कर्म है। धौति क्रिया कई प्रकार से की जाती है- वस्त्र धौति, दंत धौति, अग्निसार या वाहनीसर धौति, मूल धौति और जिव्हा शोधन धौति। वस्त्र धौति क्रिया के लिए एक मुलायम कपड़े की आवश्यकता पड़ती है, जिसकी लम्बाई 5 से 6 मीटर हो और चौड़ाई 2 से 3 इंच हो।
वस्त्र धौति क्रिया की विधि-
          इस क्रिया के लिए 5 से 6 मीटर लम्बा और 2 से 3 इंच चौड़ा साफ व स्वच्छ कपड़ा लें। इस कपड़े को अच्छी तरह से धोकर 5 मिनट तक पानी में डालकर उबालें और फिर सुखा लें। सूखने के बाद उस कपड़े की चार तह करके गोल लपेट लें। अब एक साफ बर्तन में उबले हुए नमक मिले पानी को डालें। फिर कागासन की स्थिति में बैठ जाएं और कपड़े को उस पानी में भिगो लें। अब कपड़े के ऊपरी सिरे को मध्यमा व अनामिका अंगुली के बीच में दबाकर मुंह के अन्दर डालकर धीरे-धीरे कपड़े को निगलें और साथ ही गर्म पानी का घूंट पीते रहें। इससे कपड़े को निगलने में आसानी होती है। शुरू-शुरू कपड़े को निगलना कठिन होता है, परन्तु प्रतिदिन अभ्यास से यह आसानी से होने लगता है। पहले दिन में 1 फुट कपड़ा निगलें और फिर धीरे-धीरे इसे बाहर निकाल लें। इस तरह से इस क्रिया में कपड़े को निगलने की लम्बाई बढ़ाते हुए 4 फुट तक कपड़े को निगल लें।
सावधानी-  

  • इस क्रिया का अभ्यास बहुत कठिन है। इसलिए इसका अभ्यास किसी योग शिक्षक की देख-रेख में ही करें। 
  • इस क्रिया में कपड़े को निगलना कठिन होता है। इसलिए इस क्रिया को धीरे-धीरे करें। 
  • कपड़ा निगलते समय सावधानी रखें, क्योंकि निकालते समय कभी-कभी कपड़ा अटक जाता है, परन्तु घबराएं नहीं कपड़े को पुन: अन्दर निगलें और फिर बाहर निकालें।

रोगों में लाभ-

  1.  इसके अभ्यास से शरीर से सभी रोग नष्ट हो जाते हैं तथा शरीर में असीम बल की वृद्धि होती है। 
  2. इस क्रिया के द्वारा शरीर से पित्त व कफ दोनों बाहर निकल जाते हैं। 
  3. इससे कंठमाला, मंदाग्नि थायराईड, मलेरिया, ज्वर आदि रोग ठीक होते हैं। 
  4. यह तोतलापन को दूर कर आवाज को साफ करता है। 
  5. दमे के रोग में भी लाभकारी है। इसके अभ्यास से खांसी, सांस संबन्धी रोग, जुकाम, मुंह के छाले तथा पित्त से उत्पन्न होने वाले सभी रोग ठीक होते हैं। 
  6. इसके अभ्यास से पेट साफ होता है, जिससे कब्ज, बदहजमी, गैस आदि विकार नष्ट होते हैं। 
  7. यह पाचनशक्ति को शक्तिशाली बनाता है। इससे श्वासनली, नाक, कान, आंख, पेट व आंतों की अच्छी सफाई हो जाती है। 
  8. यह मानसिक बीमारियों को खत्म करता है। 
  9. बवासीर, भगंदर आदि रोगों को ठीक करने में भी यह क्रिया  लाभकारी  है। हठयोग के अनुसार इस क्रिया को करने से कास, श्वास, प्लीहा, कुष्ठ तथा 20 प्रकार के कफ से उत्पन्न होने वाले रोग ठीक हो जाते हैं।


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