उपवास का महत्व
उपवास का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों के लिए ही महत्व है। स्वस्थ्य रहने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को सप्ताह में कम से कम एक बार उपवास करना चाहिए।
उपवास शरीर में कोई नई ताकत पैदा करने वाली क्रिया नहीं है लेकिन उसको करने से शरीर में मौजूद जहरीले पदार्थ जिनके कारण व्यक्ति रोगी होता है वे जरूर बाहर निकल जाते हैं और शरीर निरोगी हो जाता है। उपवास रखने का उद्देश्य अपने पाचन संस्थान को पूरी तरह से आराम देना है। अर्थात पाचन संस्थान को अवकाश (उपवास) प्रदान करना | पाचन संस्थान को सिर्फ उपवास रखने के दौरान ही आराम मिलता है क्योंकि प्रतिदिन हम लोग कुछ न कुछ खाकर पेट भर लेते हैं, जिसके कारण हमारे पाचन संस्थान को बिल्कुल भी फुर्सत नही मिल पाती तथा वह हर समय इस भोजन को पचाने में लगा रहता है। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक उपवास को शरीर और मन को शुद्ध करने का माध्यम माना गया है।
जब किसी व्यक्ति को कोई रोग घेर लेता है तो उसकी भूख अपने आप ही लगना बंद हो जाती है, लेकिन मनुष्य जैसा बुद्धिमान प्राणी भी प्रकृति के इस आदेश को अनदेखा करके रोगी होने पर भी कुछ न कुछ खाता ही रहता है, फलस्वरूप रोगी व्यक्ति और भी ज्यादा रोगी हो जाता है। रोग होने पर रोग के कारण शरीर में जमा जहरीले पदार्थों को बाहर निकालने का एक बहुत ही मजबूत साधन उपवास है। उपवास के दौरान शरीर की सारी जीवनीशक्ति सिर्फ रोग को ही दूर करने में लग जाती है और जब तक रोग को समाप्त न कर दें तब तक चैन नहीं लेती |
उपवास के प्रकार-
सुबह के समय का उपवास-
यह सबसे ज्यादा आसान उपवास होता है। इस उपवास में सिर्फ सुबह का नाश्ता नहीं करना होता है और पूरे दिन और रात में सिर्फ 2 बार ही भोजन करना होता है। इस उपवास को अंग्रेजी में `नो ब्रेकफास्ट सिस्टम´ कहते हैं।
शाम के समय का उपवास-
इस उपवास को अद्धोपवास भी कहा जाता है और इस उपवास में सिर्फ पूरे दिन में 1 ही बार भोजन करना होता है। इस उपवास के दौरान रात का भोजन नहीं खाया जाता। जिन लोगों को कोई पुराना रोग होता है, वे अगर इस उपवास को करते हैं तो यह उनके लिए बहुत ही लाभकारी होता है। एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि इस उपवास में जो भोजन किया जाता है वह प्राकृतिक और जल्दी पचने वाला होना चाहिए।
एकाहारोपवास-
एकाहारोपवास में एक बार के भोजन में सिर्फ एक ही चीज खाई जाती है जैसे- सुबह के समय अगर रोटी खाई जाए तो शाम को सिर्फ सब्जी खाई जाती है। दूसरे दिन सुबह को एक तरह का कोई फल और शाम को सिर्फ दूध आदि। शरीर में हल्की सी परेशानी मालूम होने पर इस उपवास को लाभ के साथ किया जा सकता है।
रसोपवास-
इस उपवास में अन्न तथा फल जैसे ज्यादा भारी पदार्थ नहीं खाए जाते। सिर्फ रसदार फलों के रस अथवा साग-सब्जियों के जूस पर ही रहा जाता है। दूध पीना भी मना होता है, क्योंकि दूध की गणना भी ठोस पदार्थों में की जा सकती है। इस उपवास में एनिमा लेते रहने से शरीर की अच्छी तरह से सफाई हो जाती है।
फलोपवास-
कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों या भाजी आदि पर रहना फलोपवास कहलाता है। इस उपवास के दौरान कभी-कभी पेट को साफ करने के लिए एनिमा लेते रहना चाहिए। इस उपवास में किसी-किसी को एक व एक फलाहार अनूकूल नहीं पड़ता और उसके पेट में गड़बड़ी पैदा हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों को पहले 2-3 दिनों का पूरा उपवास करने के बाद इस फलोपवास की शुरुआत करनी चाहिए। फलोपवास के समय जो आसानी से पच जाए, उन्हीं फलों का खाने में इस्तेमाल करना अच्छा होता है। अगर फल बिल्कुल ही अनुकूल न पड़ते हों तो सिर्फ पकी हुई साग-सब्जियां खानी चाहिए। कहने का मतलब यह है कि फलोपवास में जो साग-सब्जियां या फल अनुकूल पड़े उन्हीं का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि किसी भी तरह का उपवास हो उसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि उपवास करने वाले को बदहजमी नहीं होनी चाहिए।
दुग्धोपवास
दुग्धोपवास को `दुग्धकल्प´ के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास में सिर्फ कुछ दिनों तक दिन में 4-5 बार सिर्फ दूध ही पीना होता है। इस उपवास के दौरान जो दूध पिया जाए वह गाय का ताजा निकाला हुआ दूध ही होना चाहिए।
तक्रोपवास-
तक्रोपवास को `मट्ठाकल्प´ भी कहा जाता है। अगर व्यक्ति की भोजन पचाने की क्रिया कमजोर पड़ जाए तो दुग्धोपवास की जगह इस उपवास को करना लाभकारी होता है। इस उपवास में जो मट्ठा लिया जाए, उसमें घी कम होना चाहिए और वह खट्टा भी कम ही होना चाहिए। तक्रोपवास शुरू करने से पहले अगर 1-2 दिन पूरे दिन का उपवास कर लिया जाए तो ज्यादा लाभ होने के आसार होते हैं। इस उपवास को कम से कम 2 महीने तक आराम से किया जा सकता है। इस उपवास को करने से शरीर के छोटे-मोटे रोग बिल्कुल ठीक हो जाते हैं। अगर इस उपवास को करने के दौरान पेट भारी-भारी सा लगे तो एनिमा जरूर लेनी चाहिए।
पूर्णोपवास-
बिल्कुल साफ-सुथरे ताजे पानी के अलावा किसी और चीज को बिल्कुल न खाना पूर्णोपवास कहलाता है। इस उपवास में उपवास से सम्बंधित बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है।
साप्ताहिक उपवास-
पूरे सप्ताह में सिर्फ एक पूर्णोपवास नियम से करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है। इस उपवास को करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहता है। जो लोग पूरे दिन आफिस आदि में बैठने का काम करते हैं उनको तो यह उपवास जरूर ही करना चाहिए। अगर उपवास के दिन 1-2 बार एनिमा ले लिया जाए तो यह बहुत अच्छा रहता है। इस उपवास को करने से अरुचि दूर हो जाती है। सिरदर्द, सुस्ती तथा दूसरे कई शारीरिक और मानसिक रोग समाप्त हो जाते हैं।
लघु उपवास-
3 दिन से लेकर 7 दिनों तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।
कठोर उपवास-
जिन लोगों को बहुत भयानक रोग होते हैं यह उपवास उनके लिए बहुत लाभकारी होता है। इस उपवास में पूर्णपवास के सारे नियमों को सख्ती से निभाना पड़ता है।
टूटे उपवास-
इस उपवास में 2 से 7 दिनों तक पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर रहकर दुबारा उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास रखने का और हल्का भोजन करने का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि इस उपवास को करने का मकसद पूरा न हो जाए। इस उपवास का इस्तेमाल बहुत से भयंकर रोगों में अक्सर किया जाता है।
दीर्घ उपवास-
दीर्घ उपवास में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक करना होता है, जिसके लिए कोई निश्चित समय पहले से ही निर्धारित नहीं होता। इसमें 21 से लेकर 50-60 दिन भी लग सकते हैं। अक्सर यह उपवास तभी तोड़ा जाता है, जब स्वाभाविक भूख लगने लगती है अथवा शरीर के सारे जहरीले पदार्थ पचने के बाद जब शरीर के जरूरी अवयवों के पचने की नौबत आ जाने की संभावना हो जाती है। यह उपवास जब शारीरिक दृष्टि से किया जाता है, तो इसका लक्ष्य शरीर के अलग-अलग भागों में इकट्ठे हुए जहरीले पदार्थों के बाहर निकालने की ओर ही होते हैं और जब यह मकसद पूरा हो जाता है तो उपवास को तोड़ दिया जाता है। इस तरह का लंबा उपवास बिना तैयारी किए तथा बिना उपवास के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त किए हुए नहीं करना चाहिए। अगर इस तरह के लंबे उपवासों को किसी योग्य उपवास चिकित्सक की देख-रेख में करें तो अच्छा होता है।
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