आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि पांचों तत्वों में से वायु सबसे जरूरी दूसरा तत्व है। जल जीवन है और वायु प्राणियों का प्राण ही है। अगर हमको 1 मिनट तक भी वायु न मिले तो हमारा दिल घबराने लगता है। अगर काफी देर तक वायु न मिले तो हमारे प्राण भी निकल सकते हैं। इसलिए वायु मनुष्य के जीने के लिए बहुत जरूरी है। एक मनुष्य 1 मिनट में 16 से 18 बार सांस लेता है। एक बार सांस लेने में 25 से 30 घन इंच और 1 दिन में 32 से 36 पौंड तक वायु की जरूरत होती है। सांस लेने की हर क्रिया का सम्बंध शरीर की 100 से ज्यादा मांसपेशियों से होता है। हम रोजाना जितना भोजन करते है और पानी पीते हैं, उससे लगभग 7 गुना वायु लेते हैं। हम सांस द्वारा जो वायु अंदर लेते है वह फेफड़ों में 15 वर्ग फुट से ज्यादा का चक्कर लगाती है। फेफड़ों में लगभग 60 घन इंच वायु हमेशा मौजूद रहती है और 25 से 33 घन इंच वायु सांस को बाहर छोड़ने के रूप में बाहर निकल आती है। पूरी दुनिया का वायुमंडल पृथ्वी के चारों ओर लगभग 300 मील तक फैला हुआ है। यह वायुमंडल कई प्रकार की वायु का मिश्रण है। इसमें जल की भाप का बहुत बड़ा अंश मौजूद है। इसके अलावा इसमें 4 भाग नाइट्रोजन और 1 भाग ऑक्सीजन है। ये दोनों वायव्य हमारे शरीर के लिए बहुत ही जरूरी हैं। इन दोनों के अलावा कार्बन डाईऑक्साइड वायु भी 10 हजार में 4 अंश तक वायुमंडल में मौजूद है। बहुत ही कम मात्राओं में कहीं-कहीं रासायनिक क्रिया से पैदा हुए दूसरे प्रकार के वायव्य भी मिलते हैं। धूल के कण भी वायुमंडल में मौजूद रहते हैं। जो वायु सांस लेने के साथ हमारे शरीर में जाती है, उसमें `नाइट्रोजन´ वायु शरीर के लिए किसी काम की नहीं होती। यह वायु जिस तरह आती है उसी तरह वापिस लौट जाती है। ऑक्सीजन वायु लौटकर दुबारा नहीं आती है। ऑक्सीजन वायु शरीर के अंदर जाते ही फेफड़ों के द्वारा खून में मिल जाती है। ऑक्सीजन गंदे, नीले खून को साफ करके उसे साफ और लाल कर देती है। नीले गंदे खून से कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है जो नाइट्रोजन वायु और भाप आदि के साथ अंदर से बाहर नि जीवन क्या है? शरीर के अवयवों का ऑक्सीजन के साथ मिलकर धीरे-धीरे मोमबती की तरह जलना ही तो है। खून के लाल कण वायु से ऑक्सीजन को लेकर शरीर के हर बारीक कणों के पास पहुंचाते हैं। इसी प्राकृतिक विधि को ऑक्सीकरण कहते हैं, जो जलने का सिर्फ रूपांतर है। इस विधि से गर्मी पैदा होती है जिससे शरीर की गर्मी ठीक-ठाक रहती है और जीवन भी समाप्त नहीं होता।
शुद्ध वायु के अंदर एक तरह की और बहुत ही उपयोगी वायु मिली हुई होती है जिसको ओजोन कहा जाता है। यह ओजोन सिर्फ जंगल, पहाड़ और समुद्र के किनारों की हवा में पाई जाती है। इसकी खुशबू बहुत ही तेज होती है, जिससे ये पहचानी जाती है। टी.बी के रोगियों को चिकित्सक ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में जाने को बोलते हैं वहां पर इसी ओजोन से उनका रोग ठीक हो जाता है। वायु सिर्फ अग्नि क्षेत्र से साफ होती है, इसलिए हमारे बड़े-बूढों ने यज्ञ करने का विधान रखा था
वायु तत्व ही जीवन होता है। यह एक शक्ति है जो शरीर के हर भाग को चलाती है। वायु दिल की क्रिया खून के बहाव को काबू में रखती है और शारीरिक संतुलन को बनाए रखती है। यह सांस लेने और टट्टी-पेशाब को लाने में मदद करती है। यह आवाज पैदा करती है। वायु दिमागी ताकत और याददाश्त को बढ़ाती है।कलती रहती है।
वायु सेवन की विधि :
`वायु सेवन´ और `पवन सेवन´ होती तो एक ही क्रिया है लेकिन इस क्रिया के नाम दो हैं। `वायु सेवन´ को अंग्रेजी में एअर बाथ या मांर्निग वाक कहते हैं। इसको आम भाषा में हवाखाना या टहलना भी कहा जाता है।
वायु स्नान (ताजी हवा खाना)-
शरीर को ताजी हवा खिलाना वायु स्नान कहलाता है। त्वचा के रोमकूपों को खुला और सक्रिय बनाए रखने के लिए वायु स्नान बहुत जरूरी है। जो लोग हर मौसम में अपने शरीर को पूरी तरह से कपड़ों में ढककर रखते हैं उन्हें बड़ी जल्दी रोग पकड़ लेते हैं। गर्मी के मौसम में कम कपड़े पहनकर सुबह के समय खुली हवा में वायु स्नान करें या रात को छत पर खुले आसमान के नीचे सोकर भी वायु स्नान किया जा सकता है। बारिश के मौसम में या सर्दियों में बरामदे या कमरे की खिड़की को खोलकर सोने से भी शरीर का वायु स्नान हो जाता है। रात को सोते समय मुंह नहीं ढकना चाहिए और घर की खिड़की खोलकर सोना चाहिए।
`वायु सेवन´ एक ऐसा स्नान है जिसके जरिये शरीर की अंदर और बाहर दोनों से ही अच्छी तरह सफाई हो जाती है। अगर `वायु सेवन´ को बिना कपड़ों के किया जाए तो यह बहुत लाभकारी होता है। जिस तरह हम हर समय नाक से सांस लेते हैं उसी तरह से हमारे शरीर की त्वचा के अनगिनत छिद्रों द्वारा सांस लेना भी बहुत जरूरी है। जिस तरह से घर को साफ और पवित्र बनाने के लिए घर की खिड़कियां और दरवाजे खोलकर घर के अंदर ताजी हवा का आना जरूरी है, उसी तरह से शरीर में भी त्वचा के छिद्रों से होकर ताजी हवा का जाना जरूरी है। अगर हर समय शरीर पर कपड़े पहनकर रहा जाए तो इससे शरीर पीला सा हो जाता है और त्वचा के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं, नतीजतन व्यक्ति को रोजाना कब्ज होना, दिल में दर्द होना और डायबिटीज जैसे भयानक रोग सताने लगते हैं। जब `वायु सेवन´ करने वाला व्यक्ति बिल्कुल शुद्ध वातावरण में नंगे बदन सही तरीके से घूमने लगता है तो वह जैसे सारे संसार के आनंद को अपने अंदर ग्रहण करता है, आकाश से वार्तालाप करता है, फेफड़ों को जो ऑक्सीजन मिलती है जोकि `प्रकृति माता´ के स्तन का अमृत ही है। पूरे साल `वायु सेवन´ का सुखपूर्वक और आनंदपूर्वक लाभ लिया जा सकता है। सर्दी के दिनों में `वायु सेवन´ करने से जो सुख मिलता है उसको बताया नहीं जा सकता। एक बहुत ही प्रसिद्ध विचारक जूलिएट सैनफोर्ड ने कहा था- `वायु सेवन´ करना न केवल जीवन की एक जरूरत है, बल्कि यह एक कला भी है, खुशी है, पौष्टिक तत्व है, प्रकृति का वरदान है तथा यह संसार का सबसे अच्छा व्यायाम है।
पूरी दुनिया में संसार की बहुत सी पद्धतियां पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ सिर्फ शरीर की मांसपेशियों को मजबूत करने वाली होती हैं और कुछ फेफड़ों और उनसे सम्बंधित अवयवों को मजबूत करने वाली होती हैं, लेकिन जितना आसान और स्वाभाविक व्यायाम टहलने का है, उस तरह का व्यायाम किसी दूसरे व्यायाम पद्धति में नहीं है। टहलने से बच्चे, बूढ़े और जवान सभी उम्र के लोग बराबर ही लाभ पा सकते हैं। यह इस व्यायाम की सबसे बड़ी खासियत है। इसके अलावा इसकी दूसरी विशेषता यह हैं कि इससे किसी का जी नहीं भर सकता। जबकि दूसरे व्यायामों को लोग कुछ दिनों तक करने के बाद अक्सर ऊबकर छोड़ दिया करते हैं। जो लोग हरदम नर्म-मुलायम गद्दे-तकियों पर ही बैठे रहते हैं या जिन लोगों को ज्यादा मानसिक और शारीरिक मेहनत नहीं करनी पड़ती, उन लोगों के लिए टहलने से बढ़कर लाभकारी दूसरा कोई व्यायाम नहीं हो सकता। टहलने में अच्छी बात यह है कि इससे टहलने से मन को आराम भी मिलता है और शरीर की कसरत भी हो जाती है। एक व्यक्ति जो बिल्कुल स्वस्थ हो वह पूरी रात अच्छी तरह से सोने के बाद जब सुबह के समय उठकर ताजी हवा खाने के लिए जाता है तो उसका मन दुनिया की सारी दुख-परेशानियों को भूलकर जिस मानसिक सुकून को महसूस करता है उसको तो बताया ही नहीं जा सकता, इसको तो सिर्फ वही व्यक्ति जानता है जिसने इसका आनंद लिया हो। बहुत से लोग जो दूसरे तरह की कसरत नहीं कर सकते, उनके लिए टहलने का कसरत बहुत ही आसान और जरूरी है। इससे सिर से लेकर पैरों तक की कसरत हो जाती है। टहलने पर दिल के धड़कने की गति 1 मिनट में 72 बार से बढ़कर 1 मिनट में 82 बार हो जाती है। टहलते समय हमारी सांस भी बड़ी तेजी से चलने लगती है जिससे ज्यादा ऑक्सीजन खून में पहुंचकर खून को साफ करती है।
विशेष-
`वायु सेवन´ अर्थात् टहलते समय एक बात बहुत ज्यादा ध्यान देने वाली यह है कि यह `वायु सेवन´ सिर्फ प्राकृतिक ताजी हवा में ही करने से लाभ मिलता है। बिजली आदि के पंखों आदि से यह स्नान बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि `वायु सेवन´ के लिए किसी भी तरह की नकली वायु का सेवन करना हानिकारक होता है। पंखे की हवा घूमती हुई और तेज होती है। ऐसी वायु उदान वायु को खराब कर देती है और व्यान वायु को रोक देती है जिससे व्यक्ति का सिर घूमने लगता है तथा उसके शरीर के जोड़ों में दर्द करने वाला गठिया रोग हो जाता है।
• कपड़े के पंखे से हवा करने से पसीना, थकावट और सिर घूमना आदि रोग दूर हो जाते हैं।
• ताड़ के पंखे की हवा वात-पित्त और कफ को कुपित करती है।
• बांस के पंखे से हवा करने से गर्म हवा आती है और यह रक्तपित्त को कुपित करती है।
• अम्बर, खस, मोर के पंखों तथा बेंत के पंखों की हवा ठंडी और दिल को प्रसन्नता देने वाली होती है।
• प्रदूषण वाली वायु का सेवन करने से व्यक्ति को खांसी, फेफड़ों में जलन, भोजन का न पचना और कमजोरी जैसे रोग हो जाते हैं।
शुद्ध वायु के अंदर एक तरह की और बहुत ही उपयोगी वायु मिली हुई होती है जिसको ओजोन कहा जाता है। यह ओजोन सिर्फ जंगल, पहाड़ और समुद्र के किनारों की हवा में पाई जाती है। इसकी खुशबू बहुत ही तेज होती है, जिससे ये पहचानी जाती है। टी.बी के रोगियों को चिकित्सक ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में जाने को बोलते हैं वहां पर इसी ओजोन से उनका रोग ठीक हो जाता है। वायु सिर्फ अग्नि क्षेत्र से साफ होती है, इसलिए हमारे बड़े-बूढों ने यज्ञ करने का विधान रखा था
वायु तत्व ही जीवन होता है। यह एक शक्ति है जो शरीर के हर भाग को चलाती है। वायु दिल की क्रिया खून के बहाव को काबू में रखती है और शारीरिक संतुलन को बनाए रखती है। यह सांस लेने और टट्टी-पेशाब को लाने में मदद करती है। यह आवाज पैदा करती है। वायु दिमागी ताकत और याददाश्त को बढ़ाती है।कलती रहती है।
वायु सेवन की विधि :
`वायु सेवन´ और `पवन सेवन´ होती तो एक ही क्रिया है लेकिन इस क्रिया के नाम दो हैं। `वायु सेवन´ को अंग्रेजी में एअर बाथ या मांर्निग वाक कहते हैं। इसको आम भाषा में हवाखाना या टहलना भी कहा जाता है।
वायु स्नान (ताजी हवा खाना)-
शरीर को ताजी हवा खिलाना वायु स्नान कहलाता है। त्वचा के रोमकूपों को खुला और सक्रिय बनाए रखने के लिए वायु स्नान बहुत जरूरी है। जो लोग हर मौसम में अपने शरीर को पूरी तरह से कपड़ों में ढककर रखते हैं उन्हें बड़ी जल्दी रोग पकड़ लेते हैं। गर्मी के मौसम में कम कपड़े पहनकर सुबह के समय खुली हवा में वायु स्नान करें या रात को छत पर खुले आसमान के नीचे सोकर भी वायु स्नान किया जा सकता है। बारिश के मौसम में या सर्दियों में बरामदे या कमरे की खिड़की को खोलकर सोने से भी शरीर का वायु स्नान हो जाता है। रात को सोते समय मुंह नहीं ढकना चाहिए और घर की खिड़की खोलकर सोना चाहिए।
`वायु सेवन´ एक ऐसा स्नान है जिसके जरिये शरीर की अंदर और बाहर दोनों से ही अच्छी तरह सफाई हो जाती है। अगर `वायु सेवन´ को बिना कपड़ों के किया जाए तो यह बहुत लाभकारी होता है। जिस तरह हम हर समय नाक से सांस लेते हैं उसी तरह से हमारे शरीर की त्वचा के अनगिनत छिद्रों द्वारा सांस लेना भी बहुत जरूरी है। जिस तरह से घर को साफ और पवित्र बनाने के लिए घर की खिड़कियां और दरवाजे खोलकर घर के अंदर ताजी हवा का आना जरूरी है, उसी तरह से शरीर में भी त्वचा के छिद्रों से होकर ताजी हवा का जाना जरूरी है। अगर हर समय शरीर पर कपड़े पहनकर रहा जाए तो इससे शरीर पीला सा हो जाता है और त्वचा के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं, नतीजतन व्यक्ति को रोजाना कब्ज होना, दिल में दर्द होना और डायबिटीज जैसे भयानक रोग सताने लगते हैं। जब `वायु सेवन´ करने वाला व्यक्ति बिल्कुल शुद्ध वातावरण में नंगे बदन सही तरीके से घूमने लगता है तो वह जैसे सारे संसार के आनंद को अपने अंदर ग्रहण करता है, आकाश से वार्तालाप करता है, फेफड़ों को जो ऑक्सीजन मिलती है जोकि `प्रकृति माता´ के स्तन का अमृत ही है। पूरे साल `वायु सेवन´ का सुखपूर्वक और आनंदपूर्वक लाभ लिया जा सकता है। सर्दी के दिनों में `वायु सेवन´ करने से जो सुख मिलता है उसको बताया नहीं जा सकता। एक बहुत ही प्रसिद्ध विचारक जूलिएट सैनफोर्ड ने कहा था- `वायु सेवन´ करना न केवल जीवन की एक जरूरत है, बल्कि यह एक कला भी है, खुशी है, पौष्टिक तत्व है, प्रकृति का वरदान है तथा यह संसार का सबसे अच्छा व्यायाम है।
पूरी दुनिया में संसार की बहुत सी पद्धतियां पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ सिर्फ शरीर की मांसपेशियों को मजबूत करने वाली होती हैं और कुछ फेफड़ों और उनसे सम्बंधित अवयवों को मजबूत करने वाली होती हैं, लेकिन जितना आसान और स्वाभाविक व्यायाम टहलने का है, उस तरह का व्यायाम किसी दूसरे व्यायाम पद्धति में नहीं है। टहलने से बच्चे, बूढ़े और जवान सभी उम्र के लोग बराबर ही लाभ पा सकते हैं। यह इस व्यायाम की सबसे बड़ी खासियत है। इसके अलावा इसकी दूसरी विशेषता यह हैं कि इससे किसी का जी नहीं भर सकता। जबकि दूसरे व्यायामों को लोग कुछ दिनों तक करने के बाद अक्सर ऊबकर छोड़ दिया करते हैं। जो लोग हरदम नर्म-मुलायम गद्दे-तकियों पर ही बैठे रहते हैं या जिन लोगों को ज्यादा मानसिक और शारीरिक मेहनत नहीं करनी पड़ती, उन लोगों के लिए टहलने से बढ़कर लाभकारी दूसरा कोई व्यायाम नहीं हो सकता। टहलने में अच्छी बात यह है कि इससे टहलने से मन को आराम भी मिलता है और शरीर की कसरत भी हो जाती है। एक व्यक्ति जो बिल्कुल स्वस्थ हो वह पूरी रात अच्छी तरह से सोने के बाद जब सुबह के समय उठकर ताजी हवा खाने के लिए जाता है तो उसका मन दुनिया की सारी दुख-परेशानियों को भूलकर जिस मानसिक सुकून को महसूस करता है उसको तो बताया ही नहीं जा सकता, इसको तो सिर्फ वही व्यक्ति जानता है जिसने इसका आनंद लिया हो। बहुत से लोग जो दूसरे तरह की कसरत नहीं कर सकते, उनके लिए टहलने का कसरत बहुत ही आसान और जरूरी है। इससे सिर से लेकर पैरों तक की कसरत हो जाती है। टहलने पर दिल के धड़कने की गति 1 मिनट में 72 बार से बढ़कर 1 मिनट में 82 बार हो जाती है। टहलते समय हमारी सांस भी बड़ी तेजी से चलने लगती है जिससे ज्यादा ऑक्सीजन खून में पहुंचकर खून को साफ करती है।
विशेष-
`वायु सेवन´ अर्थात् टहलते समय एक बात बहुत ज्यादा ध्यान देने वाली यह है कि यह `वायु सेवन´ सिर्फ प्राकृतिक ताजी हवा में ही करने से लाभ मिलता है। बिजली आदि के पंखों आदि से यह स्नान बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि `वायु सेवन´ के लिए किसी भी तरह की नकली वायु का सेवन करना हानिकारक होता है। पंखे की हवा घूमती हुई और तेज होती है। ऐसी वायु उदान वायु को खराब कर देती है और व्यान वायु को रोक देती है जिससे व्यक्ति का सिर घूमने लगता है तथा उसके शरीर के जोड़ों में दर्द करने वाला गठिया रोग हो जाता है।
• कपड़े के पंखे से हवा करने से पसीना, थकावट और सिर घूमना आदि रोग दूर हो जाते हैं।
• ताड़ के पंखे की हवा वात-पित्त और कफ को कुपित करती है।
• बांस के पंखे से हवा करने से गर्म हवा आती है और यह रक्तपित्त को कुपित करती है।
• अम्बर, खस, मोर के पंखों तथा बेंत के पंखों की हवा ठंडी और दिल को प्रसन्नता देने वाली होती है।
• प्रदूषण वाली वायु का सेवन करने से व्यक्ति को खांसी, फेफड़ों में जलन, भोजन का न पचना और कमजोरी जैसे रोग हो जाते हैं।
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