Sunday, April 26

मिट्टी पट्टी का रोगों में प्रयोग

कब्ज:- कब्ज को समस्त रोगों की जननी कहा जाता है अतः कब्ज होते ही इसकी चिकित्सा तुरन्त करनी चाहिए। कब्ज की चिकित्सा निम्न विधि से करें -
 प्रातः शौच आदि से निवृत्त होकर खाली पेट पेड़ू पर गर्म पानी की थैली से 10 मिनट गर्म सेंक करने के बाद पेड़ू पर 45 मिनट के लिए गर्म मिट्टी की पट्टी लगाएं (गर्म पट्टी से आशय है, जैसा कि पीछे पट्टी बनाने की विधि में बताया जा चुका है कि मिट्टी की पट्टी लगाकर ऊपर से ऊनी कपड़े से ढक दें। ) जीर्ण कब्ज में इसे सुबह- शाम दोनों समय किया जा सकता है। शाम को भोजन से पहले ही यह प्रयोग करें।
बवासीर:- बवासीर कब्ज का ही परिणाम होती है इस रोग में मलद्वार के बाहर व अन्दर की नाड़ियां सूजन की वजह से फूल जाती हैं। इस रोग की चिकित्सा कब्ज की चिकित्सा विधि के अनुसार करें। इसके अतिरिक्त गूदा (मलद्वार) के मस्सों पर भी गीली मिट्टी की पुल्टिस ( गेंद जैसी ) रखें एवं उसे किसी गर्म ऊनी कपड़े से बाँध दें।
दाद:- दाद एक ऐसा चर्म रोग है जो जल्दी ठीक नहीं होता परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा से इससे मुक्ति पाई जा सकती है। इसके लिए दादग्रस्त स्थान पर 5 मिनट गर्म सेंक देने के बाद लगभग 30 मिनट के लिए गीली मिट्टी की ठण्डी पट्टी का प्रयोग करना चाहिए।
खुजली:- इस रोग में छोटी-छोटी फुंसियाँ निकलती हैं जिनमें खुजली एवं
जलन होती है। इस रोग की चिकित्सा निम्न विधि से करें-
प्रातः खाली पेट- पेड़ू पर गर्म सेंक 10 मिनट + पेड़ू पर गर्म मिट्टी की पट्टी 45 मिनट + नीम की पत्तियों को डालकर उबाले गए पानी का एनिमा।( एनिमा की विधि अंत में दी गई है )
खुजली किसी अंग विशेष में हो तो वहाँ पर 5 मिनट गर्म सेंक देकर दिन में दो बार 30 मिनट के लिए गीली मिट्टी की ठण्डी पट्टी लगाएं और यदि पूरे शरीर में हो तो पूरे शरीर का गीली मिट्टी स्नान लें।
हिचकी:- हिचकी एक ऐसी क्रिया है जो कभी न कभी प्रत्येक व्यक्ति को आती है, परन्तु सामान्य स्थिति में यह 1-2 मिनट में स्वतः बन्द भी हो जाती है पर यदि यह घंटों या कई दिनों तक बन्द न हो तो कष्टकारी हो जाती है तब इसे रोग की संज्ञा दी जाती है। यह स्थिति किसी गंभीर रोग की चेतावनी भी हो सकती है। इस अवस्था में निम्न उपचार लें:-
प्रातः खाली पेट- पेड़ू पर गर्म सेंक 10 मिनट + पेड़ू पर गर्म मिट्टी की पट्टी 45 मिनट लें।
सांयकाल में पुनः उपरोक्त उपचार करें।
ततैया, मधुमक्खी, बिच्छू आदि का विष उतारने के लिए:-
जहाँ पर विषैला काटे या डंक मारे, सर्वप्रथम उस स्थान को खूब ठण्डे पानी में भिगोएं या कपड़े की पट्टी को बार- बार ठण्डे पानी में भिगोकर रखें। 5 मिनट ठण्डा करने के बाद उस स्थान को हथेली से रगड़ें, तत्पश्चात गीली मिट्टी की ठण्डी पट्टी दिन में कई बार 30-30 मिनट के लिए लगाएं। जहर उतर जाएगा दर्द, सूजन समाप्त हो जाएगी।
एक्ज़िमा ( उकवत ):- उकवत एक ऐसा कष्टपूर्ण रोग है जो दवाओं से जड़ से ठीक नहीं होता परन्तु यदि सब्र एवं विश्वासपूर्वक इसकी प्राकृतिक चिकित्सा की जाए तो निश्चित रूप से इस रोग से मुक्ति मिल सकती है।
उपचार:-
प्रातः खाली पेट- पेड़ू पर गर्म सेंक- 10 मिनट।
पेड़ू पर गर्म मिट्टी की पट्टी- 45 मिनट + नीम की पत्तियों को डालकर उबाले गए पानी का एनिमा।
एक्ज़िमाग्रस्त स्थान पर गर्म सेंक- 5 मिनट,तत्पश्चात् गीली मिट्टी की लगभग एक इन्च मोटी गर्म पट्टी- 45 मिनट।
दोपहर:- एक्ज़िमाग्रस्त स्थान पर गर्म सेंक- 5 मिनट,तत्पश्चात् गीली मिट्टी की लगभग एक इन्च मोटी गर्म पट्टी- 45 मिनट।
सायंकाल:-एक्ज़िमाग्रस्त स्थान पर गर्म सेंक- 5 मिनट,तत्पश्चात् गीली मिट्टी की लगभग एक इन्च मोटी गर्म पट्टी- 45 मिनट।
आहार
एक्ज़िमा रोगी को चाहिए कि वह बिल्कुल सादा भोजन करे। नमक,मिर्च-मसाले,अचार, मुरब्बा एवं चीनी का पूर्णत्या त्याग कर दे। भोजन में हरी सब्जियों को उबाल कर लें साथ ही चोकर समेत आंटे (बिना छना आंटा ) की रोटी, सलाद व फलों का प्रयोग करें। इस रोग को ठीक होने में रोग की अवस्था के अनुसार तीन माह तक का समय लग सकता है। कुछ समय बाद उपरोक्त उपचार में परिवर्तन किया जा सकता है।
बुखार:-
बुखार की अवस्था में पेड़ू पर गीली मिट्टी की ठण्डी पट्टी दिन में 3-4 बार 30-30 मिनट के लिए लगाना चाहिए। अधिकांशतः 3-4 पट्टियों ही बुखार चला जाता है।
विशेष :-
तेज बुखार में यदि घबराहट बहुत बढ़ जाए तो पेड़ू पर गीली मिट्टी की ठण्डी पट्टी के साथ-साथ माथे पर भी गीली मिट्टी की ठण्डी पट्टी लगाएं।
कंपकंपी के साथ बुखार हो तो मिट्टी पट्टी का प्रयोग न करें।
बुखार की अवस्था में नींबू पानी, जूस या सूप के अतिरिक्त कोई ठोस आहार न लें।
पृथ्वी पर नंगे पैर चलने के लाभ:-

  1. नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
  2. नंगे पैर पृथ्वी के सम्पर्क में रहने से पैर मजबूत, स्वस्थ,सुडौल एवं रक्त संचरण बराबर होने से उनमे से गन्दगी एवं दुर्गन्ध निकल जाती है एवं बिबाई भी नहीं पड़ती।
  3. पाचन संस्थान सबल होता है एवं उच्च रक्तचाप व शरीर के बहुत सारे रोग आश्चर्यजनक रूप से दूर हो जाते हैं।
  4. सिरदर्द, गले की सूजन, जुकाम, पैरों और सिर का ठण्डा रहना आदि रोग दूर हो जाते हैं।

एनिमा की विधि
साधन:- एनिमा पाट, एक टेबल जिस पर आराम से लेटा जा सके, सरसों का तेल (लगभग 50 मिली)।
विधि:- पैरों की तरफ से टेबल के पायों के नीचे ईंट आदि लगाकर थोड़ा ऊँचा कर लें। एनिमा पाट को पैरों की तरफ स्टैण्ड पर या दीवार के सहारे टांग दें। पाट में आवश्यकतानुसार गुनगुना पानी भर लें। अब टेबल पर सीधे लेटकर पैरों को घुटनों से मोड़ लें तत्पश्चात् एनिमा पाट से लगी पाइप के नोजल पर थोड़ा सा तेल लगाकर गुदा द्वार से 2-3 इन्च अन्दर प्रवेश
करा दें तथा पानी खोल दें। पानी स्वतः आंत में पहुँचने लगेगा। पूरा पानी आंत में पहुँचने के बाद 2-3 मिनट दाहिनी करवट लेटें फिर 2-3 मिनट बाईँ करवट लेटें यदि प्रेशर न बना हो तो 10-15 मिनट टहलें, तत्पश्चात् शौच के लिए जाएं।

विभिन्न आयु वर्ग के लिए एनिमा में पानी की मात्रा

06 माह से 01 वर्ष के बच्चे को – 100 – 200 मिली.
01 वर्ष से 06 वर्ष के बच्चे को – 200 – 500 मिली.
06 वर्ष से 12 वर्ष के बच्चे को – 500 – 1000 मिली.
12 वर्ष से ऊपर – 1000 – 1200 मिली.

सवधानियाँ:-
  1. एनिमा के पानी का तापमान शरीर के तापमान के बराबर रहना चाहिए।
  2. एनिमा के बाद शौच के समय जोर नहीं लगाना चाहिए। अपने आप पानी के साथ जो मल निकले उसे निकलने देना चाहिए।


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