By- Dr. Kailash Dwivedi
- प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त (4-6 बजे ) के मध्य अर्थात सूर्योदय से पूर्व बिस्तर छोड़ दें।
- सुबह दंतधावन एवं शौचादि से पूर्व तांबे के लोटे में रात्रि को रखा पानी पीयें,इससे मल खुलकर आता है तथा कब्ज की शिकायत नहीं होती है।
- नाश्ता या भोजन हमेशा भूख से थोड़ा कम करें तथा योग्य आहार का ही सेवन करें तथा भोजन के साथ - साथ पानी पीने क़ी प्रवृति से बचें।
- दिनचर्या में जानबूझकर,अनजाने में या असयंमित होकर किये गए आचरण को प्रज्ञापराध की श्रेणी में रखा जाता है,इससे से बचें क्योंकि यह सभी प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोगों का कारण है।
- आहार स्वयं एक औषधि है,अत:ज्ञानेन्द्रिय को वश में करते हुए ही भोजन सहित अन्य आचरण करना स्वस्थ रहने में मददगार होता है।
- आयुर्वेद के अनुसार शुद्ध जल एवं वायु का सेवन रोगों से मुक्ति का मार्ग है।
- भोजन में गाय के दूध का सेवन आयुर्वेद में जीवनीय माना गया है तथा यह स्वयं में एक रसायन औषधि है जिसके नित्य सेवन से बुढापा देर से आता है।
- एक हरड का नित्य सेवन लम्बी आयु देता है,कहा भी गया है की मां कभी नाराज हो सकती है परन्तु हरड़ नहीं।
- साल में एक बार शरीर रूपी मशीन का शोधन प्राकृतिक चिकित्सक के निर्देश में अवश्य करवाएं, जिससे लम्बी एवं रोगरहित आयु प्राप्त होती है।
- रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने के लिए आंवले का सेवन नित्य करें।
- घी का नियंत्रित मात्रा में प्रयोग करें।
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