Friday, April 17

शरीर में पंचतत्वों का कार्य

1-पृथ्वी तत्व 
हमारा शरीर पांच तत्त्वों (आकाश, वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी) से मिलकर बना है। पंचतत्व निर्मित हमारे शरीर की रक्षा केवल भोजन से नहीं होती, बल्कि उसके साथ-साथ इस काम के लिए बाकी चार तत्व (आकाश, वायु, अग्नि और जल) भी बहुत आवश्यक होते हैं। अर्थात पांचों तत्त्वों का हमारे शरीर के लिए विशेष महत्व होता है। इनमें से किसी भी तत्व का कम या अधिक मात्रा में होने से हमारे शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और हमारा शरीर रोगों से ग्रस्त हो जाता है। हम इन तत्वों की सहायता से विभिन्न प्रकार के रोगों से आसानी से बच सकते
 पृथ्वी तत्व से शरीर के सभी जैविक बल निष्क्रिय और चेतनाशून्य हो जाते हैं। अत: उन सबको सक्रिय रखने के लिए अधिक शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। अधिक वजन वाले, मांसल, चर्बीयुक्त व्यक्ति इस तत्व के उदाहरण हैं। ऐसे लोग निश्चित रहते हैं तथा उनमें कुछ भी प्राप्त करने की उत्सुकता नहीं होती है। ऐसे व्यक्ति जीवन में संघर्ष करने से घबराते हैं। इससे उनका शरीर आलसी और जीवन सुस्त (मन्द) हो जाता है। पृथ्वी तत्व जब तक हमारे शरीर में त्रुटिपूर्ण स्थिति में रहता है तो हम स्वार्थी और लोभी बनते जाते हैं। पृथ्वी तत्त्व एक तटस्थ तत्त्व होता है।

2- जल तत्व
 जल तत्व हमारे शरीर और जीवन के प्रवाह को सुरक्षित बनाये रखता है। जल की प्रकृति शीतल होती है। हमारे शरीर में लगभग 70 प्रतिशत पानी होता है अत: शरीर के तापमान और रक्त संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक ऋण तत्व होता है।

3-अग्नि तत्व 
 अग्नि तत्व  हमारे शरीर में अग्नि को उत्पन्न करके शरीर में उपस्थिति जल को उष्णता प्रदान करता है। अग्नि तत्व आंखों की दृष्टि को नियंत्रण में रखता है, तथा आहार के सेवन करने के बाद यही अग्नि तत्त्व हमारे भोजन का पाचन करके ऊर्जा और शक्ति प्रदान करता है। अग्नि भूख और प्यास की वृद्धि करती है। यह स्नायु की स्थिति को उसकी स्वाभाविक स्थिति में बनाये रखती है और चेहरे को आकर्षक बनाती है। यह हमारे विचारों को शुद्ध बनाती है तथा मस्तिष्क के विकारों को नष्ट करके उसे शक्तिशाली बनाती है। अग्नि तत्व हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को उत्पन्न करती है जो हमें रोगों से बचाती है। अग्नि तत्व हमारे शरीर के लिए बहुत अधिक उपयोगी होता है। शरीर में अग्नि तत्व की कमी होने पर एनीमिया, पीलिया, पाचन आदि से सम्बन्धित परेशानियां उत्पन्न होती हैं। हमारे शरीर में अग्नि तत्व का अभाव होने से बेहोशी, विभिन्न प्रकार के मानसिक विकार, व्यर्थ की उलझनें और तनाव, आंखों की कमजोरी, त्वचा सम्बन्धी रोग, मोतियाबिंद तथा पेट की गैस आदि विकार उत्पन्न होते हैं।

4- वायु तत्व 
वायु तत्व ही जीवन होता है। यह एक शक्ति होती है और शरीर के प्रत्येक भाग का संचालन करती है। यह हृदय की क्रिया और रक्त के संचार को नियंत्रित रखती है और शारीरिक संतुलन को बनाये रखती है। यह श्वसन और मल-मूत्र की गति में मदद करती है। यह आवाज उत्पन्न करती है। यह मानसिक शक्ति और शारीरिक क्षमता को बढ़ाती है। यह अपने आप में गति करने में असमर्थ पित्तरस और कफ को यह गति देती है। यह धन तत्व है।

5-आकाश तत्व 
सृष्टि के निर्माण से पहले जब सम्पूर्ण जीवों के परमात्मा के अलावा कहीं पर कुछ भी नहीं था। सृष्टि के आरम्भ में सर्वप्रथम ईश्वर की चेतनाशक्ति की प्रेरणा से शब्द तन्मात्र उत्पन्न हुआ, जिससे आत्मा को बोध कराने वाले `आकाश` का जन्म हुआ। अन्य चारों तत्वों को अवकाश देना, सबके भीतर और बाहर रहना तथा प्राण, इन्द्रिय, और मन का आश्रय होना- ये सभी आकाश तत्व के कार्य, रूप और लक्षण होते हैं।
आक्सीजन को सांस के द्वारा हम अपने शरीर के अन्दर लेते हैं। इसलिए शरीर में पोल (खाली स्थान) भी होना चाहिए। यदि यह सांस लेने की क्रिया बंद हो जाए और इसमें किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न हो जाए तो इससे हमारे शरीर को बहुत अधिक कष्ट होता है। जिसके परिणामस्वरूप हार्ट अटैक, लकवा, मूर्छा आदि विकार होते हैं। यह ऋण तत्व होता है।

रामनाम से प्राकृतिक चिकित्सा का संबन्ध :
पंच महाभूत प्राकृतिक चिकित्सा के साधन तो हैं ही किन्तु उनका मूल आधार राम-नाम-तत्व होता है। इसे महत्तत्व कहते हैं | अन्य सभी तत्वों को रोगनिवारक शक्ति महत्तत्व से ही प्राप्त होती है | रामनाम के बिना पूरी की पूरी प्राकृतिक चिकित्सा अधूरी है। कि प्रत्येक प्राणी के भीतर आरोग्य प्रदान करने वाली एक शक्ति होती है जो उसे स्वस्थ और निरोग रखती है। वही प्राकृतिक शक्ति आवश्यकता पड़ने पर शरीर को स्वच्छ और निरोग बनाने के लिए रोगों की उत्पत्ति भी करती है तथा उन रोगों को नष्ट भी करती है। उसी शक्ति को सभी लोग अलग-अलग नामों जैसे शक्ति, परमात्मा, अंतरात्मा तथा कोई `राम` कहकर पुकारता है। इस प्रकार यदि हम प्राकृतिक चिकित्सा को ईश्वरीय चिकित्सा कहें तो उचित ही होगा क्योंकि इस चिकित्सा में हमें अपना काम ईश्वर के ऊपर छोड़ देना चाहिए जो वही और केवल वही कर सकता हैं। जब हम किसी व्यक्ति का उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से कर रहे होते हैं तो हमें उसका उपचार केवल उसके शारीरिक क्रिया के द्वारा ही नहीं करना चाहिए बल्कि उसके मन और आत्मा का उपचार करना चाहिए। जब तक रोगी व्यक्ति का मन, आत्मा तथा शरीर निरोग नहीं होगा तब तक रोगी व्यक्ति का रोग भी ठीक नहीं होगा जिस व्यक्ति का मन, आत्मा तथा शरीर तीनों निरोग होगा वही व्यक्ति निरोगी हो सकेगा। प्राकृतिक चिकित्सा के उपचार में सबसे समर्थ उपचार रामनाम है। ईश्वर की स्तुति और सदाचार का हर तरह के रोगों को रोकने का अच्छे से अच्छा और सस्ते से सस्ता उपचार है।
कोई भी मनुष्य यदि राम नाम का जाप सच्चे दिल से करता है तथा वह हर एक बुरे ख्याल को तुरन्त दूर कर देता है तो उसे बहुत ज्यादा शांति मिलती है जिसके फलस्वरूप उसके कई सारे रोग तो अपने आप ही ठीक हो जाते हैं।

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