तड़ाग का अर्थ होता है –तालाब, अर्थात जैसे तालाब में पानी होता है उसी प्रकार से पेट को वायु से भरने की क्रिया को तड़ागी मुद्रा कहा जाता है |
अथ तडागीमुद्राकथनम्।
उदरं पश्चिमोत्तानं कृत्वा च तडागाकृतिम्। ताडागी सा परामुद्रा जरामृत्यु विनाशिनी ॥६१॥श्रीघेरण्डसंहिता ||
प्रथम विधि :
सावधानियां :
मुद्रा करने का समय व अवधि :
तड़ागी मुद्रा को प्रातः-सायं खाली पेट करना चाहिए | इस मुद्रा को प्रारंभ में 10 बार करना चाहिए तत्पश्चात यथाशक्ति धीरे-धीरे 21 बार तक संख्या बढ़ाना चाहिए ।
चिकित्सकीय लाभ :
आध्यात्मिक लाभ :
तड़ागी मुद्रा के अभ्यास से मणिपुरक चक्र पर एकाग्रता बढ़ती है।
अथ तडागीमुद्राकथनम्।
उदरं पश्चिमोत्तानं कृत्वा च तडागाकृतिम्। ताडागी सा परामुद्रा जरामृत्यु विनाशिनी ॥६१॥श्रीघेरण्डसंहिता ||
प्रथम विधि :
- शवासन में लेट जाएँ, जिस नासिका से श्वर चल रहा हो उससे श्वास को अन्दर खींचते हुए पूरक करें (श्वास अंदर भरें)|पूरक करते समय पेट को वायु से इस प्रकार फुलाएं जैसे तालाब में पानी भरा हो |
- श्वास को अंदर ही रोकें (अन्तः कुम्भक करें) एवं वायु को पेट में इस प्रकार हिलाएं जैसे तालाब का जल हिलता है |
- आराम से जितनी देर यह क्रिया कर सकते हों उतनी देर करें तत्पश्चात धीरे-धीरे श्वास को बाहर निकाल दें |
- एक मिनट सामान्य श्वास-प्रश्वास के साथ विश्राम करें,तत्पश्चात इस क्रिया को पुनः दोहराएँ |
दूसरी विधि :
- जैसे पश्चिमोत्तान आसन में बैठते हैं उसी तरह से जमीन पर बैठकर अपने दोनों पैरों को सामने की ओर अलग-अलग दिशा में सीधा फैला लें एवं आगे की ओर झुककर अपने दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठों को पकड़ लें।
- श्वास अन्दर भरते हुए पेट स्नायुओं को बाहर की ओर फैलाएं । आराम से जितनी देर श्वास अन्दर रोक सकते हों उतनी देर तक रोककर रखें तत्पश्चात धीरे-धीरे श्वास को बाहर निकालकर दोनों अंगूठों को पकड़े-पकड़े ही शरीर को ढीला छोड़ दें। कुछ देर रुककर पुनः इस क्रिया को करें
सावधानियां :
- तड़ागी मुद्रा को सदैव खाली पेट ही करना चाहिए |
- शक्ति के अनुसार ही अन्तः कुम्भक करना चाहिए,जबरदस्ती करने से हानि हो सकती है |
- जिन व्यक्तियों के गर्दन,कमर अथवा रीढ़ के अन्य किसी हिस्से में दर्द हो उन्हें यह मुद्रा लेटकर करनी चाहिए |
मुद्रा करने का समय व अवधि :
तड़ागी मुद्रा को प्रातः-सायं खाली पेट करना चाहिए | इस मुद्रा को प्रारंभ में 10 बार करना चाहिए तत्पश्चात यथाशक्ति धीरे-धीरे 21 बार तक संख्या बढ़ाना चाहिए ।
चिकित्सकीय लाभ :
- तड़ागी मुद्रा पेट की सर्व रोगहारी मुद्रा है |इसके नियमित अभ्यास से पेट के समस्त रोग समूल नष्ट हो जाते हैं |
- इस मुद्रा को करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है |
आध्यात्मिक लाभ :
तड़ागी मुद्रा के अभ्यास से मणिपुरक चक्र पर एकाग्रता बढ़ती है।
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