मुखं संमुद्रितं कृत्वा जिह्वामूलं प्रचालयेत्। शनैर्ग्रसेदमृतं तां माण्डूकीं मुद्रिकां विदुः ॥६२॥
वलितं पलितं वैव जायते नित्ययौवनम्। न केशे जायते पाको यः कुर्यान्नित्यमाण्डुकीम् ॥६३॥ श्रीघेरण्डसंहिता |
माण्डूकी मुद्रा की विधि :
सावधानियां :
मुद्रा करने का समय व अवधि :
माण्डूकी मुद्रा करने का सबसे उपयुक्त समय प्रातः एवं सायंकाल का है यह मुद्रा 5 मिनट से प्रारंभ करके धीरे-धीरे 15 मिनट तक बढ़ा सकते हैं |
चिकित्सकीय लाभ :
आध्यात्मिक लाभ :
माण्डुकी मुद्रा से इच्छाओं पर सयंम होता है एवं मन को नियंत्रित करने की शक्ति उत्पन्न होती है |
वलितं पलितं वैव जायते नित्ययौवनम्। न केशे जायते पाको यः कुर्यान्नित्यमाण्डुकीम् ॥६३॥ श्रीघेरण्डसंहिता |
माण्डूकी मुद्रा की विधि :
- सुखपूर्वक किसी आसन में बैठकर अपने मुंह को बंद कर लें । आँखें बंद रहें एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रहे
- जीभ को पूरे तालू के ऊपर दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे घुमाएं।
- जीभ को इस तरह से घुमाने के फलस्वरूप उत्पन्न लार का पान करें (निगलते रहें) योग शास्त्र में इस लार को सुधा या अमृत की संज्ञा दी गयी है।
सावधानियां :
- माण्डूकी मुद्रा करते समय आपका पूरा ध्यान जीभ के संचालन पर रहना चाहिए |
- आँखें बंद रखें एवं मन की आँखों से (अन्तःचक्षु ) से जीभ के क्रियाकलाप को देखते रहें |
- भोजन के तुरंत बाद या पहले माण्डूकी मुद्रा न करें | कम-से-कम 30 मिनट के अंतर पर कर सकते हैं |
मुद्रा करने का समय व अवधि :
माण्डूकी मुद्रा करने का सबसे उपयुक्त समय प्रातः एवं सायंकाल का है यह मुद्रा 5 मिनट से प्रारंभ करके धीरे-धीरे 15 मिनट तक बढ़ा सकते हैं |
चिकित्सकीय लाभ :
- बाल झड़ना, गंजापन एवं असमय सफेद हो रहे बालों को रोकने के लिए योगशास्त्र में माण्डुकी मुद्रा को सबसे श्रेष्ठ उपाय बताया गया है।
- माण्डुकी मुद्रा करने से शरीर में झुर्रियां पड़ना रुक जाता है तथा यौवन की प्राप्ति होती है।
- माण्डुकी मुद्रा के निरंतर अभ्यास से जीभ, गले और आंखों के रोग समाप्त हो जाते हैं |
- इस मुद्रा के प्रभाव से चेहरे एवं शरीर में चमक पैदा हो जाती है।
- माण्डुकी मुद्रा से पाचन सम्बन्धी रोग समाप्त हो जाते हैं |
आध्यात्मिक लाभ :
माण्डुकी मुद्रा से इच्छाओं पर सयंम होता है एवं मन को नियंत्रित करने की शक्ति उत्पन्न होती है |
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