By- Dr. Kailash Dwivedi
अथ वज्रोलीमुद्राकथनम्।
धरामवष्टभ्य करयोस्तलाभ्याम् ऊर्ध्वं क्षिवेत्पादयुगंशिरः खे। शक्तिप्रबोधाय चिरजीवनाय वज्रालिमुद्रां कलयो वदन्ति ॥४५॥
अयं योगो योगश्रेष्ठो योगिनां मुक्तिकारणम्। अयंहितप्रदोयोगो योगिनां सिद्धिदायकः ॥४६॥
एतद्योगप्रसादेन बिन्दुसिद्धिर्भवेद्ध्रवम्। सिद्धे बिन्दौ महायत्ने किं न सिद्ध्यतिभूतले ॥४७॥
भोगेन महता युक्तो यदि मुद्रां समाचरेत्। तथापि सकला सिद्धिस्तस्य भवति निश्चितम् ॥४८॥
प्रथम विधि :
- किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएँ |
- दोनों हाथ घुटनों पर रखें,आँखे बंद रखें |
- अन्तः कुम्भक (श्वास अन्दर रोककर) की स्थिति में गुदा द्वार एवं अंडकोष के बीच की सिवनी जैसे भाग को उपर की ओर संकुचित करें तत्पश्चात श्वास को बाहर निकालकर पेट को शिथिल करते हुए पेट के नीचे के भाग को इस तरह से खींचे जैसे मल-मूत्र के वेग को रोकते समय खींचते हैं |
- आराम से जितनी देर इस स्थिति में रह सकते हैं,रहें तत्पश्चात सामान्य स्थिति में आ जाएँ |
दूसरी विधि :
वज्रोली मुद्रा की दूसरी विधि हठयोग के अंतर्गत आती है,इस क्रिया में प्रारंभ में रबड़ का कैथेटर मूत्र मार्ग में प्रतिदिन एक-एक इंच बढ़ाते हुए 10-12 इंच तक प्रवेश कराया जाता है,तत्पश्चात चांदी या कांच की नली को मूत्रमार्ग में 10-12 इंच तक प्रवेश कराया जाता है | अभ्यास सिद्ध हो जाने पर इस नली से जल को अंदर खींचने का अभ्यास किया जाता है,जल खींचने का अभ्यास हो जाने पर क्रमशः दूध,शहद और पारा को खींचने का अभ्यास सिद्ध किया जाता है | यह बहुत ही उच्च कोटि की क्रिया है एवं योग्य गुरु के निर्देशन के वगैर करना पूर्णतया निषिद्ध है,इसलिए साधक इस बात का विशेष ध्यान रखें |
सावधानी :
वज्रोली मुद्रा की प्रथम विधि को सरलता पूर्वक कोई भी व्यक्ति कर सकता है,परन्तु दूसरी विधि कठिन है इसमें जरा सी असावधानी होने पर भयंकर रोग होने का खतरा रहता है अतः इसे किसी योग्य गुरु के निर्देशन में ही करना उचित है |
मुद्रा करने का समय व अवधि :
इस मुद्रा को प्रातः-सायं खाली पेट किया जा सकता है | प्रारंभ में 5 बार से शुरू करके प्रतिदिन धीरे-धीरे इसे 21 बार तक ले जाना चाहिए | अभ्यास परिपक्व हो जाने पर अधिक बार भी किया जा सकता है |
चिकित्सकीय लाभ :
- वज्रोली मुद्रा करने से स्वप्नदोष एवं शीघ्रपतन रोग नष्ट हो जाते हैं |
- इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर की शक्ति,सुन्दरता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है |
आध्यात्मिक लाभ :
- वज्रोली मुद्रा की दूसरी विधि सिद्ध हो जाने पर साधक अलौकिक शक्तियों का स्वामी बन जाता है |
- वज्रोली मुद्रा के नियमित अभ्यास से वीर्य उर्ध्वगामी होकर ब्रहमचर्य की रक्षा होती है |
- इस मुद्रा के अभ्यास से मन तथा इन्द्रिय निग्रह होता है |
- कुण्डलिनी जागरण में इस मुद्रा का विशेष महत्त्व है |
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