. By- Dr. Kailash Dwivedi
(साभार - osho.com)
यह ध्यान एक तेज, तीव्र और गहरा तरीका है शरीर- मन मे बने हुए पुराने , पैटर्न को तोड़ने का जो हमे अतीत में कैद रखता है और जो हमें स्वतंत्रता,साक्षी, मौन और शांति का अनुभव कराता है जो इन जेल की दीवारों के पीछे छिपा हुआ है।
यह ध्यान सुबह भोर में किया जाना चाहिये जब "पूरी प्रकृति जिंदा हो जाती है, रात चली गई है, सूरज ऊग रहा है और सब कुछ जागरूक और सतर्क हो जाता है।"
निर्देश :
यह ध्यान एक घंटे का है और इसके पांच चरण हैं। अपनी आँखें पूरी समय बंद रखें,यदि आवश्यक हो, तो आंखों पर पट्टी का उपयोग कर सकते है।
यह ऐसा ध्यान है जिसमें आपको लगातार सतर्क,जागरूक,सचेत रहना होगा चाहे जो भी आप करें। साक्षी बनें रहें और जब आप चौथे चरण में पूरी तरह से स्थिर , निष्क्रिय हो गये हैं, तो यह सतर्कता अपने चरम पर आ जाएगी।
चरण - 1 :
नाक से अराजकपूर्ण श्वास लें, श्वास तेज़, गहरी और अनियमित हो, उसमें कोई तरीका न हो और ज़ोर हमेशा श्वास बाहर फेंकने पर हो। शरीर स्वयं श्वास भीतर लेने की चिंता ले लेगा। श्वास फेफड़ों तक गहरी जानी चाहिये। श्वास जितनी शीघ्रता से और त्वरा से ले सकें, लें । और ध्यान रहे कि श्वास गहरी रहे। और फिर थोड़ी और त्वरा और तेज़ी लाएं जब तक कि आप वस्तुत: श्वास ही न हो जाएं। ऊर्जा को संगठित करने के लिये अपनी स्वाभाविक दैहिक क्रियाओं को प्रयोग में लायें। ऊर्जा को बढ़ता हुआ अनुभव करें परंतु पहले चरण में अपने को ढीला मत छोड़ें।
चरण - 2 :
विस्फोटित हो जाएं! जो कुछ भी बहर फेंक्ने जैसा हो उसे बाहर फेंक दें। अपने शरीर का अनुसरण करें। जो भी आता है, अपने शरीर को उसे प्रकट करने की स्वतंत्रता दे। पूर्णतया पागल हो जायें। चीखें, चिल्लाएं, रोएं, कूदें, नाचें, हंसें; स्वयं को बेहिसाब छोड़ दें। कुछ भी न बचाएं, पूरे शरीर को गति करने दें। अपने रेचन की शुरुआत करने के लेए थोड़ा सा अभिनय भी आपको खुलने में सहायता देता है। फिर जो भी हो रहा हो उसमें अपने मन को हस्तक्षेप ना करने दें। होशपुर्वक पागल हो जाएं! समग्र हो जाएं।
चरण - 3 :
अपने हाथो को सिर के ऊपर सीधा उठा कर रखें और जितनी गहराई से संभव हो "हू! हू! हू!" की ध्वनि करते हुए ऊपर नीचे कूदें । हर बार जब भी आपके पांव धरती पर आयें तो पूरे पांव के तलवे को धरती को छूने दें, ताकि ध्वनि आपके काम-केंद्र पर गहराई से चोट कर सके। आपके पास जितनी शक्ति हो लगा दें, अपने को पुरी तरह थका दें।
चरण - 4 :
रुक जायें! जहाँ भी, जिस स्थिति में भी हों, वहीं जम जाए। शरीर को किसी तरह से भी संभालें नहीं। जारा सी खांसी या हलन -- चलन आपकी ऊर्जा के प्रवाह को बाहर बहा देंगी और पूरा प्रयास खो जायेगा। आपके भीतर जो कुछ भी हो रहा है उसके साक्षी बने रहें।
चरण - 5 :
उत्सव मनायें। आनदित हो और पूर्ण के प्रति अपना अहोभाव प्रकट करते हुए संगीत के साथ नृत्य करें। इस अनुभव को दिन भर की अपनी चर्या में फैलने दें।
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