By- Dr.Kailash Dwivedi
विधि :
- किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठकर पूरी शक्ति से श्वास को एक बार में ही बाहर निकल दें |
- श्वास को बाहर निकालकर मूलबंध (गुदा द्वार को संकुचित करें) और उड्डीयान बंध (पेट को यथाशक्ति अंदर सिकोड़ें) लगाकर आराम से जितनी देर रोक सकें,श्वास को बाहर ही रोककर रखें |
- जब श्वास अधिक समय तक बाहर न रुक सके तब बंधों को खोलकर धीरे-धीरे श्वास को अंदर भरें | यह एक चक्र पूरा हुआ |
- श्वास भीतर लेने के बाद बिना रोके पुनः बाहर निकालकर पहले की तरह बाहर ही रोककर रखें | इस प्रकार 3 से 21 चक्र किये जा सकते हैं |
लाभ :
- इस प्राणायाम से मन की चंचलता दूर होकर वृत्ति निरोध होता है |
- इससे बुद्धि सूक्ष्म एवं तीव्र होता है |
- वीर्य स्थिर होकर स्वप्नदोष और शीघ्रपतन छुटकारा मिलता है |
सावधानियाँ :
- यह प्राणायाम प्रातः खाली पेट करें |
- श्वास बाहर इतना नही रोकना चाहिए कि लेते समय झटके से श्वास अंदर जाए और उखड़े हुए श्वास को 5-6 सामान्य श्वास लेकर ठीक करना पड़े |
- प्राणायाम के 30 मिनट बाद ही कुछ खाएं - पियें |
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