वभिन्न ऋतुओं में मौसम की दशाएं एक खास प्रकार की होती हैं। यह अवधि एक वर्ष को कई भागों में विभाजित करती है जिनके दौरान पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के परिणामस्वरूप दिन की अवधि, तापमान, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि मौसमी दशाएँ एक चक्रीय रूप में बदलती हैं। भारत में परंपरागत रूप से मुख्यतः छः ऋतुएं परिभाषित की गयी हैं।
ऋतु | हिन्दू मास | ग्रेगरियन मास |
वसन्त (Spring) | चैत्र से वैशाख | मार्च से अप्रैल |
ग्रीष्म (Summer) | ज्येष्ठ से आषाढ | मई से जून |
वर्षा (Rainy) | श्रावन से भाद्रपद | जुलाई से सितम्बर |
शरद् (Autumn) | आश्विन से कार्तिक | अक्टूबर से नवम्बर |
हेमन्त (pre-winter) | मार्गशीर्ष से पौष | दिसम्बर से 15 जनवरी |
शिशिर (Winter) | माघ से फाल्गुन | 16 जनवरी से फरवरी |
वसंत ऋतु :
शीत व ग्रीष्म ऋतु का सन्धिकाल वसन्त ऋतु होता है। इस समय में न अधिक सर्दी होती है न अधिक गर्मी होती है। इस मौसम में सर्वत्र मनमोहक आमों के बौर की सुगन्ध से युक्त सुगन्धित वायु चलती है। वसन्त ऋतु को ऋतुराज भी कहा जाता है।
वसन्त ऋतु में रक्तसंचार तीव्र हो जाता है जिससे शरीर में स्फूर्ति रहती है। शिशिर के बाद बसन्त ऋतु आती है और हेमन्त शिशिर का एकत्र कफ पिघलने लगता है, यह कफ का प्रकोप काल भी है। जिस प्रकार जल अग्नि को बुझा देता है उसी प्रकार वसंत ऋतु में पिघला हुआ कफ़ जठराग्नि को मंद कर देता है l यदि वसन्त ऋतु में आहार-विहार के उचित पालन पर पूरा ध्यान दिया जाये एवं बदपरहेजी न की जाये तो वर्तमान स्वास्थ्य रक्षा के साथ ही ग्रीष्म व वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य की रक्षा करने की शक्ति भी शरीर में आ जाती है।
वसन्त ऋतु में होने वाले रोग :
वसन्ते निचितः श्लेष्मा दिनकृभ्दाभिरितः।
चरक संहिता के अनुसार हेमन्त ऋतु में संचित हुआ कफ वसन्त ऋतु में सूर्य की किरणों से प्रेरित (द्रवीभूत) होकर कुपित होता है जिससे इस ऋतु में खाँसी, सर्दी-जुकाम, टॉन्सिल्स में सूजन, गले में खराश, शरीर में सुस्ती व भारीपन आदि की शिकायत होने की सम्भावना रहती है। जठराग्नि मन्द हो जाती है अतः इस ऋतु में आहार-विहार के प्रति सावधानी रखनी चाहिए।
वसन्त ऋतु में सेवन योग्य आहार :
- इस ऋतु में गरिष्ठ पदार्थों की मात्रा धीरे-धीरे कम करते हुए गर्मी बढ़ते हुए बन्द कर के सादा सुपाच्य आहार लेना प्रारंभ कर देना चाहिए।
- महर्षि चरक के अनुसार इस ऋतु में भारी, चिकनाईवाले, खट्टे और मीठे पदार्थों का सेवन व दिन में सोना वर्जित है।
- इस ऋतु में कटु, तिक्त, कषारस-प्रधान द्रव्यों का सेवन करना हितकारी है।
- वसन्त ऋतु में प्रातःकाल 15-20 नीम की नई कोंपलें चबा-चबाकर खाने से वर्षभर चर्मरोग, रक्तविकार, ज्वर आदि रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शक्ति पैदा होती है।
- इस ऋतु में जौ, चना, ज्वार, गेहूँ, चावल, मूँग, अरहर, मसूर की दाल, बैंगन, मूली, बथुआ, परवल, करेला, तोरई, अदरक, सब्जियाँ, केला, खीरा, संतरा, शहतूत, हींग, मेथी, जीरा, हल्दी आँवला आदि कफनाशक पदार्थों का सेवन करना अत्यंत लाभकारी होता है।
क्या करें :
- उबटन लगाना
- तेलमालिश
- धूप का सेवन
- हल्के गर्म पानी से स्नान
- योगासन व हल्का व्यायाम
क्या न खाएं :
- इस ऋतु में पचने में भारी पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए l ठन्डे पेय,आइसक्रीम, बर्फ के गोले ,चाकलेट, मैदा, खमीरी चीज़ें , दही आदि का इस ऋतु में बिलकुल त्याग कर देना चाहिए l
- गन्ना, आलू, भैंस का दूध, उड़द, सिंघाड़ा, खिचड़ी, खट्टे, मीठे, चिकने, पदार्थों का सेवन हानिकारक है। ये कफ में वृद्धि करते हैं।
क्या न करें :
इस ऋतु में दिन में सोना रोगों को आमंत्रण देने जैसा है क्योंकि इस ऋतु में दिन में सोने से कफ़ कुपित होता है l अतः वसंत ऋतु में दिन में नहीं सोना चाहिए l
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