जहां सूर्य की किरणें पहुंचती हैं, वहां रोग के कीटाणु स्वत: मर जाते हैं और रोगों का जन्म ही नहीं हो पाता| सूर्य अपनी किरणों द्वारा अनेक प्रकार के आवश्यक तत्वों की वर्षा करता है और उन तत्वों को शरीर में ग्रहण करने से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं| शरीर को कुछ ही क्षणों में झुलसा देने वाली गर्मियों की प्रचंड धूप से भले ही व्यक्ति स्वस्थ होने की बजाय उल्टे बीमार पड जाए लेकिन प्राचीन ग्रंथ अथर्ववेद में सबेरे धूप स्नान हृदय को स्वस्थ रखने का कारगर तरीका बताया गया है| उसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति सूर्योदय के समय सूर्य की लाल रश्मियों का सेवन करता है उसे हृदय रोग कभी नहीं होता| सूर्य पृथ्वी पर स्थित रोगाणुओं कृमियों' को नष्ट करके प्रतिदिन रश्मियों का सेवन करने वाले व्यक्ति को दीर्घायु भी प्रदान करता है| सूर्य की रोग नाशक
शक्ति के बारे में अथर्ववेद के एक मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि सूर्य औषधि बनाता है, विश्व में प्राण रूप है तथा अपनी रश्मियों द्वारा जीवों का स्वास्थ्य ठीक रखता है, किन्तु ज्यादातर लोग अज्ञानवश अन्धेरे स्थानों में रहते है और सूर्य की शक्ति से लाभ नहीं उठाते | अथर्ववेद में कहा गया है कि सूर्योदय के समय सूर्य की लाल किरणों के प्रकाश में खुले शरीर बैठने से हृदय रोगों तथा पीलिया के रोग में लाभ होता है| प्राकृतिक चिकित्सा में
आन्तरिक रोगों को ठीक करने के लिए भी नंगे बदन सूर्य स्नान कराया जाता है | आजकल जो बच्चे पैदा होते
ही पीलिया रोग के शिकार हो जाते हैं उन्हें सूर्योदय के समय सूर्य किरणों में लिटाया जाता है जिससे अल्ट्रा -वायलेट किरणों के सम्पर्क में आने से उनके शरीर के पिगमेन्ट सेल्स पर रासायनिक प्रतिक्रिया प्रारम्भ हो जाती है और बीमारी में लाभ होता है| डाक्टर भी नर्सरी में कृत्रिम अल्ट्रावायलेट किरणों की व्यवस्था लैम्प
आदि जला कर भी करते हैं| वेदों में सूर्य पूजा का महत्व है| प्राचीन ऋषि-मुनियों ने सूर्य शक्ति प्राप्त करके प्राकृतिक जीवन व्यतीत करने का सन्देश मानव जाति को दिया था| सूर्य चिकित्सा पूर्ण रूप से एक प्राकृतिक उपचार है अब यह वैज्ञानिक पद्धति भी है और एक धार्मिक अनुष्ठान भी है। पुराने समय से जब सूर्य उपासना होती थी उसमे लोगो की श्रद्धा और विश्वास का समन्वय था, वो अब भी चला आ रहा है ...
पहले सूर्य पूजा को सिर्फ़ एक धार्मिक अनुष्ठान माना जाता था। पर अब इसे वैज्ञानिक पुष्टि मिलती जा रही है , और अब यह चिकित्सा पद्धति के रूप मे अग्रसर हो रहा है। एक गलत अवधारणा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इससे हानि होने की सम्भावना है जैसे कि कई तरह के कई चर्म रोग हो जाते हैं पर सही तरीके से इसका सेवन करें तो बस फायदे ही फायदे हैं.. और यह तो हम सब जानते हैं कि "अति सर्वत्र वर्जयेत " ।
ध्यान रहे की सुर्य चिकित्सा दिखता तो आसान है पर विशेषज्ञ से सलाह लिये बिना ना ही शुरू करें। जैसा की हम जानते हैं कि सूर्य की रोशनी में सात रंग शामिल हैं .. और इन सब रंगो के अपने अपने गुण और लाभ है ...
1. लाल रंग : यह ज्वार, दमा, खाँसी, मलेरिया, सर्दी, ज़ुकाम, सिर दर्द और पेट के विकार आदि में लाभ कारक है
2. हरा रंग : यह स्नायुरोग, नाडी संस्थान के रोग, लिवर के रोग, श्वास रोग आदि को दूर करने में सहायक है
3. पीला रंग : चोट ,घाव रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग, अतिसार आदि में फ़ायदा करता है
4. नीला रंग : दाह, अपच, मधुमेह आदि में लाभकारी है
5. बैंगनी रंग : श्वास रोग, सर्दी, खाँसी, मिर् गी ..दाँतो के रोग में सहायक है
6. नारंगी रंग : वात रोग . अम्लपित्त, अनिद्रा, कान के रोग दूर करता है
7. आसमानी रंग : स्नायु रोग, यौनरोग, सरदर्द, सर्दी- जुकाम आदि में सहायक है |
सुरज का प्रकाश रोगी के कपड़ो और कमरे के रंग के साथ मिलकर रोगी को प्रभावित करता है। अतः दैनिक जीवन मे हम अपने जरूरत के अनुसार अपने परिवेश एव कपड़ो के रंग इत्यादि मे फेरबदल करके बहुत सारे फायदे उठा सकते हैं। हमे जिस रंग की ज़रूरत हो हम उसका इस्तेमाल करके अपने रोग दूर
कर सकते हैं । सुर्य चिकित्सा मे पानी, क्रिस्टल, सुर्य स्नान, सुर्य प्राणायाम, इत्यादि तरीके अपनाये जाते हैं,
जो रोगी की बीमारी एवं दशा देखकर निर्धारित किया जाता है। सूर्य नमस्कार योग तो अपने आपमे संपन्न योग है, इससे मिलने वाले लाभ से कोई भी अनभिज्ञ नही है। अब तो सूर्य मंत्रो को और सुबह जल- अर्घ्य को भी महत्वता मिलती जा रही है। जलार्पण के लिये भी निर्दिष्ट नियम हैं, और इसका पालन करके हम कई तरह के समस्याओ से निजात भी पा सकते हैं।
इस तरह हम कह सकते हैं कि आज के दौर मे सुर्य चिकित्सा हमारे जीवन के हरेक पहलू मे कारगर है, शायद इसी कारण से हमारे पुर्वजो ने सुर्य उपासना पर बल दिया था, ताकि हम रोज ही खुद को सुख समृद्धि के
दिशा मे अग्रसित हो।
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