विधि :
- भूमि पर दरी बिछाकर घुटनों के बल खड़े हो जाएं |
- दोनों घुटनो में थोड़ा अंतर रखें।
- श्वास भरते हुए धीरे-धीरे शरीर को पीछे की ओर झुकाकर दोनों हथेलियाँदोनों एड़ियों पर जमा दें।
- सामान्य रूप से श्वास लेते हुए इस स्थिति में 30 सैकेंड से 1 मिनट तक रहें और फिर धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आ जाएं।
- 2 मिनट तक विश्राम करने के बाद पुनः इस क्रिया को करें। इस तरह इस आसन को 3 बार करें।
लाभ :
- उष्ट्रासन रीढ़ में लचीलापन एवं चेहरे पर कान्ति बढ़ता है |
- इस आसन के नियमित अभ्यास से जीवनी शक्ति बढती है एवं युवावस्था अधिक समय तक बनी रहती है।
- उष्ट्रासन से घुटने, मूत्राशय, गुर्दे, छोटी आँत, लीवर, फेफड़े एवं गर्दन तक का भाग एक साथ प्रभावित होता है, जिससे फलस्वरूप यह अंग स्वस्थ्य बनते हैं एवं इनसे सम्बंधित रोग दूर होते हैं |
- यह आसन पेट के रोगों को दूर करने के साथ ही कामेन्द्रियो को पुष्ट करके यौन रोगों को भी दूर करता है।
- उष्ट्रासन के अभ्यास से पेट एवं गर्दन की अतिरिक्त चर्बी कम होती है |
- कमरदर्द एवं साइटिका, स्लिप डिस्क की समस्या में भी इस आसन से लाभ मिलता है तथा कंठ व श्वासनली की क्रियाशीलता भी बढती है।
- उष्ट्रासन के अभ्यास से महिलाओं की मासिक धर्म सम्बन्धी रोग दूर होते हैं।
निषेध :
- उच्च रक्तचाप , व कमर के तेज दर्द की अवस्था में उष्ट्रासन का अभ्यास नहीं करना चाहिए |
उष्ट्रासन - वीडियो देखें -
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