शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए प्राचीन काल से ही जल के आंतरिक एवं बाह्य रूप में विविध प्रयोग होते आ रहे हैं | इन प्रयोगों को समझ कर यदि वैज्ञानिक ढंग से प्रयोग किया जाये तो निश्चि त रूप से हमारा स्वास्थ्य अधिक उन्नत होगा | इस लेख में प्रस्तुत है गर्म जल स्नान के कुछ चिकित्सकीय प्रयोग, रोगनिवारण में उनकी भूमिका एवं सावधानियां |
विधि :
किसी ऐसे टब, जिसमे आराम से लेटा जा सके में हल्का गर्म पानी (लगभग 92 से 100 डिग्री फारनहाईट) भरकर लेट जाएँ | यह स्नान 92 डिग्री फारनहाईट से प्रारंभ कर 97, 100 डिग्री फारनहाईट तक ले जाना चाहिए तथा स्नान को समाप्त करने के पहले जल के तापमान को धीरे-धीरे कम करते हुए 92 डिग्री फारनहाईट तक लाना चाहिए | तापमान कम-ज्यादा करने के लिए लिए टब में गर्म -ठंडा जल मिला सकते हैं | इस प्रयोग में ध्यान रखें कि सिर गर्म पानी में न डूबे | यदि सिर में गर्मी महसूस हो रही हो तो ठन्डे पानी में भिगोकर एक छोटा तौलिया माथे पर रख लें | 30 मिनट से 1 घंटा तक इस स्नान को किया जा सकता है
लाभ :
क्रिया –प्रतिक्रिया :
सुसम जल के स्नान में प्रारंभ में प्रयोग किए जाने वाले जल का तापमान शरीर के ताप से कम होने के फलस्वरूप शरीर में अपेक्षाकृत अधिक गर्मी उत्पन्न होने की क्रिया सतेज हो जाती है | इसमें प्रभाव से त्वचा में फैलाव आता है एवं त्वचा के छिद्रों में स्थित लवण आदि पदार्थों से युक्त पसीना निकलने लगता है जिससे अनेकों दूषित तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं |
2 से 5 मिनट तक गर्म पानी से स्नान करने के लाभ निम्नवत हैं –
सावधानियां :
गर्म पैर स्नान को करने के लिए आवश्यक साधन :
बाल्टी - 1
गर्म पानी 8-10 ली.
कुर्सी या स्टूल – 1
कम्बल – 1
छोटा तौलिया – 1
विधि :
पैरों के गर्म स्नान के लिए एक बाल्टी में गर्म पानी भर लें। ध्यान रखें कि बाल्टी में पानी उतना ही रखें जितना कि घुटने तक आ सके। पानी हल्का गर्म रहने पर एक कुर्सी पर बैठ जाएं और पैरों को पानी में रखें। जब पानी धीरे-धीरे ठंडा होने लगे तो उसमें से पानी निकाल लें और ऊपर से गर्म पानी मिला दें। साथ ही एक कम्बल से सिर को छोड़कर पूरे शरीर को ढककर रखें। कम्बल को ऐसे लपेटे की बाल्टी समेत पूरा शरीर कम्बल से ढक जाए। इस स्नान में शुरू में और बीच-बीच में हल्का गर्म पानी थोड़ा-थोड़ा करके पीते रहें। साथ ही सिर पर एक पानी से भीगा हुआ तौलिया रखें। यह स्नान 10-20 मिनट तक करें। स्नान के बाद शरीर पर आए पसीने को तौलिये से अच्छी तरह पोंछकर सुखा लें। यदि इच्छा हो तो इसके बाद ठंडे पानी से साधारण स्नान भी कर सकते हैं।
लाभ :
सावधानी :
मिर्गी के रोगी इस उपचार को न करें |
स्नायु दौर्बल्य एवं अनिद्रा का अमोघ उपचार – सुसम जल स्नान (neutral bath):
विधि :
किसी ऐसे टब, जिसमे आराम से लेटा जा सके में हल्का गर्म पानी (लगभग 92 से 100 डिग्री फारनहाईट) भरकर लेट जाएँ | यह स्नान 92 डिग्री फारनहाईट से प्रारंभ कर 97, 100 डिग्री फारनहाईट तक ले जाना चाहिए तथा स्नान को समाप्त करने के पहले जल के तापमान को धीरे-धीरे कम करते हुए 92 डिग्री फारनहाईट तक लाना चाहिए | तापमान कम-ज्यादा करने के लिए लिए टब में गर्म -ठंडा जल मिला सकते हैं | इस प्रयोग में ध्यान रखें कि सिर गर्म पानी में न डूबे | यदि सिर में गर्मी महसूस हो रही हो तो ठन्डे पानी में भिगोकर एक छोटा तौलिया माथे पर रख लें | 30 मिनट से 1 घंटा तक इस स्नान को किया जा सकता है
लाभ :
- सुसम अथवा हलके गर्म जल से भरे टब में लेटने से रक्त प्रवाह बढ़ता है एवं शरीर का शिथिलीकरण हो जाता है फलस्वरूप अनिद्रा एवं स्नायु दौर्बल्य दूर करने में अत्यधिक लाभ मिलता है |
- स्नायु संस्थान के रोग जैसे – हिस्टीरिया, मिर्गी, लकवा के अतिरिक्त क्षय, गुदा सम्बन्धी रोग, उच्चरक्तचाप, दस्त, मन्दाग्नि आदि रोगों में लाभकारी है |
- ऐसे व्यक्ति जोकि लम्बी बीमारी से गुजरे हैं , उनके लिए सुसम जल का स्नान बहुत लाभ करता है |
- सुसम जल के प्रयोग से त्वचा में असाधारण रूप से निखार आ जाता है |
क्रिया –प्रतिक्रिया :
सुसम जल के स्नान में प्रारंभ में प्रयोग किए जाने वाले जल का तापमान शरीर के ताप से कम होने के फलस्वरूप शरीर में अपेक्षाकृत अधिक गर्मी उत्पन्न होने की क्रिया सतेज हो जाती है | इसमें प्रभाव से त्वचा में फैलाव आता है एवं त्वचा के छिद्रों में स्थित लवण आदि पदार्थों से युक्त पसीना निकलने लगता है जिससे अनेकों दूषित तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं |
त्वचा की कार्यशीलता बढ़ाये 2 से 5 मिनट का गर्म स्नान (Hot Bath) :
2 से 5 मिनट तक गर्म पानी से स्नान करने के लाभ निम्नवत हैं –
- मांसपेशियों को फैलाता है एवं स्नायु संस्थान व शरीर को शिथिलता प्रदान करता है |
- त्वचा की कार्यशीलता को बढ़ाता है |
- पोषण शक्ति को मजबूत करता है |
- श्वास क्रिया को बढाता है |
सावधानियां :
- वृद्ध एवं कमजोर व्यक्तियों तथा ह्रदय रोगियों को अधिक गर्म जल के स्नान नहीं देना चाहिए |
- यदि गर्म स्नान लेना है तो भोजन के एक-डेढ़ घंटा पहले ले लेना चाहिए एवं स्नान के एक दो घंटा बाद ही भोजन करना उचित है |
- सिर पर गर्म जल नहीं डालना चाहिए |
गर्म पैर स्नान (HOT FOOT BATH)- यह स्नान दिला सकता है कई रोगों से मुक्ति :
गर्म पैर स्नान को करने के लिए आवश्यक साधन :
बाल्टी - 1
गर्म पानी 8-10 ली.
कुर्सी या स्टूल – 1
कम्बल – 1
छोटा तौलिया – 1
विधि :
पैरों के गर्म स्नान के लिए एक बाल्टी में गर्म पानी भर लें। ध्यान रखें कि बाल्टी में पानी उतना ही रखें जितना कि घुटने तक आ सके। पानी हल्का गर्म रहने पर एक कुर्सी पर बैठ जाएं और पैरों को पानी में रखें। जब पानी धीरे-धीरे ठंडा होने लगे तो उसमें से पानी निकाल लें और ऊपर से गर्म पानी मिला दें। साथ ही एक कम्बल से सिर को छोड़कर पूरे शरीर को ढककर रखें। कम्बल को ऐसे लपेटे की बाल्टी समेत पूरा शरीर कम्बल से ढक जाए। इस स्नान में शुरू में और बीच-बीच में हल्का गर्म पानी थोड़ा-थोड़ा करके पीते रहें। साथ ही सिर पर एक पानी से भीगा हुआ तौलिया रखें। यह स्नान 10-20 मिनट तक करें। स्नान के बाद शरीर पर आए पसीने को तौलिये से अच्छी तरह पोंछकर सुखा लें। यदि इच्छा हो तो इसके बाद ठंडे पानी से साधारण स्नान भी कर सकते हैं।
लाभ :
- तीव्र सर्दी, माइग्रेन, अस्थमा, हृदय रोग व थकान की अवस्था में गर्म पानी का पैर स्नान जादू सा असर करता है।
- सामान्य अवस्था में इस प्रयोग को करने से शरीर स्फूर्ति का अनुभव करता है।
- इस प्रयोग को अस्थमा रोग की तीव्र अवस्था में भी कराया जाए तो अस्थमा रोगी को तुरंत लाभ मिलता है।
- आधाशीशी दर्द की प्रारंभिक स्थिति में इस प्रयोग को किया जाए तो आशातीत लाभ मिलता है।
- शारीरिक रूप से थकने पर यदि पैर स्नान किया जाए तो थकान में बहुत राहत मिलती है।
- इस स्नान से सर्दी-जुकाम, बेहोशी आदि रोग दूर होते हैं।
- यह नींद का न आना तथा दमा के रोग को ठीक करता है।
- जिन स्त्रियों का मासिकधर्म आना बन्द हो गया हो उन्हें यह स्नान करना चाहिए। इससे मासिकधर्म की परेशानी दूर होती है। इस स्नान को 20 से 30 मिनट तक किया जाए तो अधिक लाभ होता है।
- यदि रोगी की नाक बहती है और उसे गर्म पानी का पैर स्नान करा दिया जाए तो बहती नाक कुछ ही समय में बहना बंद हो जाती है।
- पैर स्नान वाष्प स्नान का श्रेष्ठ विकल्प है।
- गर्म पानी का पैर स्नान करने से हृदय, मस्तिष्क व फेफड़ों में रक्त का प्रवाह कम होता है व शरीर आराम का अनुभव करता है।
- यह स्नान उच्चरक्तचाप को नियंत्रित करता है |
सावधानी :
मिर्गी के रोगी इस उपचार को न करें |
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