Tuesday, December 27

चोकर है गुणों की खान - इसे फेकिये मत ..


By- Dr. Kailash Dwivedi 
प्रकृति का एक सिद्धांत है कि – प्रकृति प्रदत्त प्रत्येक वस्तु का रूप परिवर्तित किये बिना प्रयोग किया जाय तो वह स्वास्थ्य के लिए हितकर होगा | यदि आवश्यक हो तो उसका उतना ही रूप परिवर्तित किया जाय जितने में वह खाने योग्य हो जाय | उदहारण के तौर पर गेहूं को प्राकृतिक स्वरुप में अंकुरित कर लिया जा सकता है परन्तु अधिक मात्रा में नहीं, इसलिए गेहूं का आंटा बनाकर उसे बिना छाने आंटे की रोटी के रूप में प्रयोग करना उत्तम है | आंटे को मैदा बनाकर उसे पूड़ी-कचौड़ी के रूप में प्रयोग करना अहितकर है |
गेहूं का एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाग होता है जिसे हम सब चोकर के नाम से जानते हैं | यह गेहूं का बाह्य आवरण होता है जो पिसने के बाद गेहूं की भूसी (चोकर) में परिवर्तित हो जाता है | चोकर अपने अन्दर लगभग सभी विटामिन्स एवं मिनरल्स को समेटे होता है, परन्तु अधिकतर लोग आंटे को छानकर बची हुयी चोकर को अनुपयोगी समझकर उसे फेंक देते हैं जबकि प्रति १०० ग्राम चोकर में – १०.०% जल, १४.०% प्रोटीन, ४.४% वसा , ०.८% खनिज लवण, २९.५% कार्बोज होता है जो कि आंटे कि तुलना में कहीं अधिक है | इस लेख में चोकर के गुण एवं इसका विभिन्न रोगों में प्रयोग की जानकारी दे रहे हैं-

चोकर के गुण एवं उपयोग :

  • चोकर में पर्याप्त मात्रा में पोटाश होता है जो बड़ी आंत एवं शरीर के अन्य अंगों को कैंसर से बचाता है 
  • आंटे में चोकर मिलाने से कब्ज की शिकायत नहीं रहती बल्कि यदि कब्ज है तो वह दूर हो जाती है |
  • चोकर एक उत्तम प्रकार का मृदु रेचक [ दस्तावर ]होता है, परन्तु इससे मल पतला नहीं होता बल्कि मुलायम होकर बंधा हुआ मल , बिना जोर लगाये आसानी से निकल जाता है |
  • चोकर में लगभग सभी विटामिन एवं मिनरल मौजूद हैं, अतः यह एक पौष्टिकता से परिपूर्ण खाद्य है |
  • चोकर में फाईबर की मात्रा अधिक होने के कारण यह आंत में चिपका हुआ मल निकाल देता है |
  • रक्त एवं चोकर दोनों क्षारधर्मी होने के कारण यह शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाता है |
  • चोकर के प्रयोग से बबासीर व भगंदर जसे रोग नहीं होते तथा Prolaps of Anus ( कांच निकलना ) जसे रोग भी पास नहीं आते |
  • पेट के सभी रोगों में चोकर बहुत ही लाभकारी है |
  • चोकर के निरंतर प्रयोग से भूख न लगना , सिरदर्द , जुकाम , अजीर्ण , मन्दाग्नि , आदि रोग नहीं होते यदि होते भी हैं तो चोकर के प्रयोग से नष्ट हो जाते हैं |
  • चोकर का आभाव नेत्र रोग , चर्म रोग , ह्रदय रोग, व दुर्बलता को जन्म दे सकता है |


  • चोकर को प्रयोग करने का तरीका :

  • चोकर के प्रयोग का सबसे सरल व सुलभ तरीका यह है कि चोकर समेत आंटे की रोटी बनाकर खायी जाए 
  • आंटे की रोटी आलू + चोकर या मूली/प्याज + चोकर मिलाकर बनायीं जा सकती है
  • सूजी की तरह चोकर का हलवा बनाकर खाया जा सकता है |
  • लगभग २०० ग्राम चोकर + 50 ग्राम देशी घी लोहे की कढाई में डालकर धीमी आंच पर तब तक भूनें जब तक चोकर का रंग भूरा न हो जाय एवं उसमें सोंधेपन की खुशबु न आने लग जाय | इस चोकर को किसी कांच या स्टील के बर्तन में भरकर रख लें | इस चोकर की १-२ चम्मच की मात्रा सब्जी / दाल / दूध आदि खाद्यों में मिलाकर खाया जा सकता है | इससे यह खाद्य स्वादिष्ट होने के साथ ही पौष्टिक भी बन जायेंगे |

रोगों में चोकर का प्रयोग :

शारीरिक  निर्बलता :
मिटटी के बर्तन में भुने हुए गेहूं लेकर पीस लें | लगभग १५ ग्राम की मात्रा में इस पाउडर को लेकर २० मिली. पानी में धीमी  आंच पर ५ मिनट तक पकाएं  | पकाते से  समय इसे चम्मच चलाते रहें तत्पश्चात आवश्यकतानुसार दूध व गुड या चीनी मिलकर सेवन करें |
अपच और रक्ताल्पता का आपस में गहरा सम्बन्ध है | अधिकतर पाचन की गड़बड़ी से ही रक्तहीनता आती है क्योंकि जब पाचन ही नहीं होगा तो अवशोषण भी ठीक से नहीं हो पाता  फलस्वरूप शरीर में रक्त नहीं बनता और व्यक्ति एनीमिक हो जाता है | पाचन तंत्र की सबलता हेतु चोकर समेत आंटे की रोटी का प्रयोग करना चाहिए |
भूख न लगना :
गेहूं के चोकर को पानी में भिगो दें ४-५ घंटे बाद इसे चाय की तरह गर्म करके गुड और दूध मिलाकर सेवन करें | इससे भूख लगने लगेगी एवं बल-वीर्य में बृद्धि होगी | आलस्य भी दूर होगा |
बबासीर :
चोकर समेत आंटे की रोटी में गाय का घी लगाकर सेवन करें , साथ में १-२ मूली भी खाएं | बबासीर समाप्त हो जाएगी |
५०० ग्राम चोकर + १०० ग्राम नमक को तीन लीटर पानी में उबालें | उबलने के बाद उसे छानकर शरीर को धोने से कुजली समाप्त हो जाती है |
कील-मुंहासा :
१०० ग्राम चोकर को लगभग २०० मिली. पानी में शाम को भिगो दें | प्रातः इस चोकर को मसल कर चहरे की धीरे-धीरे मालिश करें | रात्रि सोने से पहले लगभग दो चम्मच ब्रानवीटा दूध में मिलाकर लें | कुछ ही दिनों में मुहांसों से छुटकारा मिल जायेगा |
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