संस्कृत शब्द मूल का अर्थ आधार या जड़ है । यहाँ पर मूल का अर्थ मलद्वार एवं मलाशय है । शोधन का अर्थ शुद्ध करना या धोना है । इस प्रकार मूलशोधन की परिभाषा है - वह क्रिया जिससे मलद्वार और मलाशय की सफाई की जाती है । इस मूलशोधन क्रिया के अन्य कई नाम हैं , जैसे - मूलधौति व गणेश क्रिया । गणेशजी का मूलाधार चक्र से संबंध होता है । इसलिये भी इसका नाम गणेश क्रिया पड़ा है । इस क्रिया को चकरी कर्म भी कहा जाता है , क्योंकि उँगली को अंदर में चकरी की तरह गोल - गोल घुमाया जाता है ।
मूलशोधन एक सरल ,
किन्तु प्रभावशाली क्रिया है । इस विधि में उँगली से मलद्वार एवं मलाशय की सफाई
करनी होती है । सभवतः आपको यह सबसे कष्टकारक और घिनौना योगाभ्यास प्रतीत हो , परन्त यही
आपके समग्र जीवन को बदल सकता है , विशेषतः आप यदि कब्ज या
बवासीर ( हेमोराइड ) से पीड़ित हैं ।
यह अति सरल अभ्यास है
परन्तु इसके अनेक अप्रत्यक्ष लाभ होते हैं । आप अपनी झिझक को दूर करके स्वयं इस
क्रिया को करने का प्रयास करें । परम्परानुसार मूल शोधन के लिए हल्दी की जड का
प्रयोग किया जाता है , क्योंकि इसका औषधि के रूप
में भी उपयोग होता है । यह रोगानु - रोधक तथा रक्त शुद्धि - कारक है एवं शरीर की
गंदगी को बाहर निकालती है ।
हल्दी की जड़ सब जगह उपलब्ध
नहीं है ,
अतः मलशोधन हेतु हल्दी की जड़ के स्थान पर उँगली का प्रयोग किया जा
सकता है । पर ध्यान रखें कि, आपके नाखून छोटे हों तथा अभ्यास
के बाद हाथों को अच्छी तरह धो लें ।
लाभ
इस क्रिया से प्राप्त होने
वाले लाभों को जानने से पहले शरीर के इस भाग की संरचना को संक्षिप्त में समझ लेना
उपयक्त होगा । वास्तव में यह दो भागों में विभक्त है - पहला गुदा या मलद्वार और
दूसरा मलाशय । गुदा दो अवरोधिनियों में विभक्त है . जिन्हें इच्छानुसार प्रसारित व
संकुचित किया जा सकता है । आप इसे करके स्वयं समझ सकते हैं । ये अवरोधिनी -
पेशियाँ मलत्याग का समय आने तक गुदा को बंद रखती हैं । वास्तव में मलद्वार लगभग दो
सेंटीमीटर लम्बा है तथा उसके बाद वह मलाशय में विलीन हो जाता है । मलाशय थोड़ी दूर
तक ऊपर जाकर अवरोही बडी आंत के निचले भाग में मिल जाता है । जब आप मलशोधन हेतु
अपनी उँगली भीतर डालते हैं तो कुछ उभरा हुआ भाग मालूम होता है । इन उभरे हए भागों
की संख्या सात या आठ है तथा इनकी ऊँचाई लगभग एक सेंटीमीटर होती है । इस भाग में
कुछ वाल्व भी होते हैं तथा स्नायु एवं रक्त वाहिकाएँ बहुतायत से होती हैं । ये
रक्त वाहिकाएँ ही बवासीर के रूप में प्रसारित हो जाती हैं
लाभ
1 . इस
क्रिया से स्नाय और रक्त वाहिकाएँ उत्प्रेरित होती हैं , जिससे
उत्सर्जन प्रणाली को यथोचित रूप से कार्य करने हेत प्रोत्साहन । मिलता है ।
2 . इससे
नियमित एवं तनाव - रहित मल - त्याग की आदत को । प्रोत्साहन मिलता है ।
3 . यह
क्रिया कठोर , जमे हए तथा दुर्गंधयुक्त व्यर्थ पदार्थों को
निकाल कर सम्पूर्ण भाग की सफाई करती है ।
4 . यह
क्रिया कब्ज और बवासीर आदि रोगों का निराकरण करती है तथा उन्हें पनपने से रोकती है
।
कब्ज आधुनिक जीवन का रोग
है । इस रोग के मुख्य कारण हैं - अनियमित शौच जाना व मलत्याग के समय अनावश्यक दबाव
डालना ,
गरिष्ठ भोजन करना , जैसे मैदा से निर्मित
ब्रेड आदि का सेवन इत्यादि ।
कब्ज होने पर बड़ी आँत का
भाग रोगग्रस्त हो जाता है । । कब्ज का निराकरण करना अत्यन्त आवश्यक है ,
क्योंकि इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव शरीर के अन्य अंगों पर भी पड़ता है
। यदि मलोत्सर्ग ठीक से होने लगे तो पाचन क्षेत्र के शेष भाग भी ठीक से काम करने
लगेंगे । जो लोग कब्ज से पीड़ित हैं वे नियमित रूप से मूलशोधन का अभ्यास करें । यह
अभ्यास है तो कछ ही मिनटों का , मगर इससे मिलने वाले लाभ बहुत
हैं ।
कब्ज के साथ बवासीर भी एक
सर्व सामान्य रोग है । यह सीधे कब्ज से अथवा रक्त - प्रवाह में रुकावट एवं जमने से
भी हो सकता है । मलाशय के अंतिम भाग के समीप गुच्छों या जालिकाओं के आकार की
असंख्य रक्त - वाहिका होती हैं । कब्ज के दौरान मलाशय में कड़ा मल संगृहीत होने
लगता है तथा वह इन पतली दीवालों वाली रक्त वाहिकाओं पर दबाव डालता है । । इससे
रक्त का प्रवाह धीमा तथा अवरुद्ध हो जाता है तथा वह जमने लगता है । यह जमा हुआ
रक्त ( थ्रोम्बी ) रक्त वाहिकाओं को प्रसारित होने को बाध्य करता है ताकि कुछ और
रक्त प्रवाहित हो सके । यह फैलाव अंदर ही ऊपर की ओर बढ़ता है | फैली हई रक्त - वाहिकाएँ कड़े व कठोर मल के कारण और प्रसारित होती हैं ।
इस प्रकार मलोत्सर्ग के समय वाहिकाओं में प्रदाह , उत्तेजना
तथा दर्द उत्पन्न होता है । चूँकि इस क्षेत्र में रक्त अधिक मात्रा में रहता है और वाहिकाएं खिचने के कारण सामान्य
से पतली हो गई होती हैं , अत वे थोड़ा भी दबाव सहन नहीं कर
पातीं और अति शीघ्र रक्त स्रवित होने लगता है तथा पपड़ी जमने लगती है । यही बवासीर
की पीड़ादायक । अवस्था है । इसके निराकरन हेतु आप नियमित रूप से मूलशोधन का अभ्यास
करें , परन्तु सावधानी अवश्य रखें । यदि आवश्यक हो तो इस
हेतु उँगली पर किसी चिकने पदार्थ का लेप किया जा सकता है । इससे असुविधा नहीं होगी
तथा वह स्थल शुष्क प्रतीत नहीं होगा ।
अभ्यास का समय
यह
आपकी परिस्थिति पर निर्भर करता है । मलशोधन से जो उत्तेजना उत्पन्न होती है ,
वह क्रमाकंचन की प्रक्रिया शुरू कर देती है । अतः जो कब्ज से पीड़ित
हैं , उन्हें मलत्याग से पूर्व मूलशोधन की क्रिया करनी
चाहिये । यदि आपको नियमित शौच होता है तो मूलशोधन का अभ्यास शौच के बाद करें ।
अभ्यास
- इस अभ्यास हेतु उकड़ू बैठना
सर्वोत्तम है । भारतीय लोग शौच हेतु उकड़ू ही बैठते हैं । उकड़ू बैठने से पेट पर
दबाव पड़ता है , जिससे मल को नीचे मलद्वार की ओर सरकने में
सहायता मिलती है । यदि आप शौच के लिये उकड़ू न बैठते हों तो कोई बात नहीं । कम से
कम मूलशोधन की क्रिया करते समय आपको उकड़ू बैठना । चाहिये । आप शौचालय में कमोड पर
भी उकड़ू बैठ सकते हैं, परन्तु सावधानी रखें ।
- उकडूं बैठ जायें ।
- तर्जनी या माध्यमा उँगली
को मलद्वार में डालें । आवश्यकता हो तो घी ,थोड़ा तेल
या पानी उँगली में लगाया जा सकता है ।
- पहले उँगली को करीब दो सेंटीमीटर अंदर डालें । उसके बाद उँगली को अंदर दोनों दिशाओं में धीरे - धीरे गोल घुमायें ।
- इस प्रकार करने पर धीरे - धीरे आप अपनी उँगली को मलाशय में और आगे प्रवेश कराने में सक्षम होंगे । बल प्रयोग न करें । इससे अवरोधिनी की मांसपेशियाँ शिथिल हो जायेंगी । उँगली को घुमाना और यथा संभव अंदर डालना लगातार करते जायें । इससे मलाशय के स्नाय उत्तेजित होंगे और उनकी कार्यप्रणाली सुधरेगी ।
- अब उँगली बाहर निकालकर अच्छी तरह धो लें ।
- पुनः ऊपर बतलाये अनुसार उँगली को अंदर डालकर कछ देर घुमायें । पुनः उँगली को निकालकर धो डालें । इसी प्रकार कई बार करें ।
- आपको उँगली के द्वारा
मलद्वार और मलाशय की दीवालों पर सौम्य , परन्तु
स्थिर दबाव डालना है ।
- यदि आप इस अभ्यास को अधिक प्रभावशाली बनाना चाहें तो अंदर ऊँगली डालते समय मलद्वार की अवरोधिनी को बारी - बारी से संकुचित एवं मुक्त करें । इससे वहाँ के स्नायओं में उत्तेजना उत्पन्न होगी और मलाशय में रक्त का प्रवाह सुचारू रूप से होने लगेगा । परिणामस्वरूप स्वास्थ्य उन्नत होगा और शरीर के इस महत्वपूर्ण अंग की कार्यप्रणाली में सुधार आयेगा ।
सावधानियाँ
·
उँगली के नाखून अच्छी तरह
काट लें ,
क्योंकि मलद्वार तथा मलाशय अत्यधिक संवेदक अंग हैं और नाखूनों से
क्षति पहँच सकती है ।
·
यदि आप नाखून काटना नहीं
चाहते तो आपको हल्दी की जड़ का प्रयोग करना चाहिये ।
·
अभ्यास के बाद हाथों को
अच्छी तरह साफ करें ।
·
यदि आप बवासीर से पीड़ित
हों तो उँगली अंदर डालते समय सावधान रहें । इस क्रिया से आपको रोग मुक्त होने में
मदद मिलेगी परन्त इसके लिये उँगली डालते समय और मालिश करते समय आपको सावधानी रखनी
होगी । दर्द में जैसे - जैसे कमी होती जाये , वैसे -
वैसे आप मालिश थोड़े दबाव के साथ कर सकते हैं । इस समय आपको अपने सामान्य विवेक का
उपयोग करना चाहिये ।
· अभ्यास के दौरान अपने हाथों को धोने के लिए ठंडे
पानी का प्रयोग करें । यदि संभव हो तो मलद्वार को भी ठंडे पानी से धोयें । यह बहत
महत्वपूर्ण है , क्योंकि ठंडा पानी उस क्षेत्र में रक्त के
प्रवाह को उत्तेजित करता है । साथ ही ठंडा पानी रक्त वाहिकाओं का संकुचन करता है ,
जो बढ़ी शिराओं को यथा स्थान ले जाता है । इस हेतु गर्म पानी का
उपयोग करने से उक्त क्रिया विपरीत दिशा में होने लगती है , अतः
हमेशा ठंडे पानी का ही प्रयोग करना चाहिये ।
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