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हिन्दी- गिलोय
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अंग्रेजी- गुलाचा
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संस्कृत- गुडूची
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मराठी- गुलबेल
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बंगाली- गुलंच
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फारसी- गलोय
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गुजराती- गलो
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तेलगू- तियातिज
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अरबी- गिलाइ
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लैटिन- टिनोस्पोरा कोर्डिफोलिया
रंग: - गिलोय हरे रंग की होती है।
स्वाद: - गिलोय खाने में तीखी होती है।
स्वरूप: - गिलोय एक प्रकार की बेल होती है जो बहुत लम्बी होती है।
इसके पत्ते पान के पत्तों के समान होते हैं। इसके फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लगते
हैं। इसके फल मटर के दाने के जैसे होते हैं।
प्रकृति: - गिलोय की प्रकृति गर्म होती है।
मात्रा: - गिलोय की 20 ग्राम मात्रा में सेवन कर सकते हैं।
गुण: - गिलोय पुरानी पैत्तिक और रक्तविकार वाले बुखारों का ठीक
कर सकती है। यह खांसी, पीलिया, उल्टी और बेहोशीपन को दूर करने के लिए
लाभकारी है। यह कफ को छांटता है। धातु को पुष्ट करता है। भूख को खोलता है। वीर्य
को पैदा करता है तथा उसे गाढा करता है, यह मल का अवरोध करती है तथा दिल को बलवान
बनाती है। गिलोय गुण में हल्की, चिकनी, प्रकृति में गर्म, पकने
पर मीठी, स्वाद
में तीखी, कड़वी, खाने
में स्वादिष्ट, भारी, शक्ति तथा भूख को बढ़ाने वाली, वात-पित्त
और कफ को नष्ट करने वाली, खून को साफ करने वाली, धातु
को बढ़ाने वाली, प्यास, जलन, ज्वर, वमन, पेचिश, खांसी, बवासीर, गठिया, पथरी, प्रमेह, नेत्र, केश और चर्म रोग, अम्लपित्त, पेट
के रोग, मूत्रावरोध
(पेशाब का रुकना), मधुमेह, कृमि और क्षय (टी.बी.) रोग आदि को ठीक करने
में लाभकारी है।
गिलोय
का उपयोग:
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घी के साथ गिलोया का सेवन करने से वात रोग नष्ट होता है।
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गुड़ के साथ गिलोय का सेवन करने से कब्ज दूर होती है।
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खाण्ड के साथ गिलोया का सेवन करने से पित्त दूर होती है।
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शहद के साथ गिलोय का सेवन करने से कफ की शिकायत दूर होती
है।
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रेण्डी के तेल के साथ गिलोय का उपयोग करने से गैस दूर होती
है।
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सोंठ के साथ गिलोय का उपयोग करने से गठिया रोग ठीक होता है।
गिलोय में गिलोइन नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा
अल्कोहल ग्लिस्टेराल, बर्बेरिन एल्केलाइड, अनेक
प्रकार की वसा अम्ल एवं उड़नशील तेल पाये जाते हैं। पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फास्फोरस
और तने में स्टार्च भी मिलता है। कई प्रकार के परीक्षणों से ज्ञात हुआ की वायरस पर
गिलोय का प्राणघातक असर होता है। इसमें सोडियम सेलिसिलेट होने के कारण से अधिक
मात्रा में दर्द निवारक गुण पाये जाते हैं। यह क्षय रोग के जीवाणुओं की वृद्धि को
रोकती है। यह इन्सुलिन की उत्पत्ति को बढ़ाकर ग्लूकोज का पाचन करना तथा रोग के
संक्रमणों को रोकने का कार्य करती है।
रक्तपित्त (खूनी पित्त):
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10-10 ग्राम मुलेठी, गिलोय, और मुनक्का को लेकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े को 1 कप
रोजाना 2-3 बार पीने से रक्तपित के रोग में लाभ मिलता है।
खुजली :
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हल्दी को गिलोय के पत्तों के रस के साथ पीसकर खुजली वाले
अंगों पर लगाने और 3 चम्मच गिलोय का रस और 1
चम्मच शहद को मिलाकर सुबह-शाम पीने से खुजली पूरी तरह से खत्म हो जाती है।
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बवासीर, कुष्ठ और पीलिया:
7 से 14 मिलीलीटर गिलोय के तने का ताजा रस शहद के
साथ दिन में 2 बार सेवन करने से बवासीर, कोढ़
और पीलिया का रोग ठीक हो जाता है।
चेहरे के दाग-धब्बे:
गिलोय की बेल पर लगे फलों को पीसकर चेहरे पर मलने से चेहरे
के मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।
शीतपित्त (खूनी पित्त):
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10 से 20 ग्राम गिलोय के रस में बावची को पीसकर लेप
बना लें। इस लेप को खूनी पित्त के दानों पर लगाने तथा मालिश करने से शीतपित्त का
रोग ठीक हो जाता है।
घाव (व्रण):
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4 ग्राम से 6 ग्राम गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव
ठीक हो जाता है।
उपदंश (फिरंग):
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गिलोय के काढ़े में 10-20 मिलीलीटर अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से
उपदंश रोग में लाभ मिलता है। इसको खाने से खून साफ होता है और गठिया-रोग भी ठीक हो
जाता है।
कुष्ठ (कोढ़):
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100 मिलीलीटर बिल्कुल साफ गिलोय का रस और 10
ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण 1 लीटर उबलते हुए पानी में मिलाकर किसी बंद
बर्तन में 2 घंटे के लिये रखकर छोड़ दें। 2 घंटे
के बाद इसे बर्तन में से निकालकर मसलकर छान लें। इसमें से 50 से 100 ग्राम की मात्रा प्रतिदिन दिन में 3 बार सेवन करने से खून साफ होकर कुष्ठ (कोढ़)
रोग ठीक हो जाता है।
सफेद दाग:
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सफेद दाग के रोग में 10 से 20 मिलीलीटर गिलोय के रस को रोजाना 2-3 बार कुछ महीनों तक सफेद दाग के स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है।
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