Thursday, April 23

शाम्भवी मुद्रा : SHAMBHAVI MUDRA

अथ शाम्भवीमुद्राकथनम्।
नेत्राञ्जनं समालोक्य आत्मारामं निरीक्षयेत्। साभवेच्छाम्भवी मुद्रा सर्वतन्त्रेषुगोपिता ॥६४॥
अथ शाम्भवीमुद्रायाः फलकथनम्। वेदशास्त्र पुराणानि सामान्य गणिका इव। इयन्तु शाम्भवीमुद्रा गुप्ताकुलवधूरिव ॥६५॥
स एव आदिनाथश्च न च नारायणः स्वयम्। स च ब्रह्मा सृष्टिकारी यो मुद्रां वेत्ति शाम्भवीम् ॥६६॥
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं सत्यमुक्तं महेश्वरः। शाम्भवीं यो विजानाति स च ब्रह्म न चान्यथा ॥६७॥॥श्रीघेरण्डसंहिता ॥
विधि :
  1. पदमासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ |
  2. दोनों हाथ घुटनों पर रखें, रीढ़ की हड्डी सीधी रहे |
  3. पूरी श्वास बाहर निकालने के साथ मूलबन्ध एवं उड्डियान बन्ध लगा लें |
  4. अपनी दृष्टि को नासिका के अग्रभाग या दोनों भौहों के बीच (भ्रूमध्य ) में स्थिर कर दें एवं एकाग्र मन से ईश्वर का ध्यान करें |
मुद्रा करने का समय व अवधि : 
इस मुद्रा को शुरुआत में जितनी देर हो सके करें और बाद में धीरे-धीरे इसका अभ्यास बढ़ाते जाएं।




सावधानियां : 

गर्दन को बिल्कुल सीधी अवस्था में रखकर पलकों को बिना झपकाएं देखते रहें। आपकी पलकें और आंखें खुली हों पर दिमाग बिल्कुल ध्यान में लगा हुआ हो। जो व्यक्ति त्राटक आसन करते हैं वे इस मुद्रा को बहुत ही अच्छी तरह से कर सकते हैं। शाम्भवी मुद्रा पूरी तरह से तभी सिद्ध हो सकती है जब इस मुद्रा को करने वाले की आंखें खुली हों लेकिन वे किसी भी चीज को न देख रही हों।

 चिकित्सकीय लाभ : 
शाम्भवी मुद्रा को करने से दिल और दिमाग को शांति मिलती है। इस मुद्रा को करने से योगी का ध्यान दिल में स्थिर होने लगता है।

आध्यात्मिक लाभ : 
इस मुद्रा में ध्यान परिपक्व हो जाने पर ज्योति दर्शन होता है,जो साधक को आत्म साक्षात्कार की ओर ले जाती है |

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