अथ महाबन्धकथनम्।
वामपादस्य गुल्फेन पायुमूलं निरोधयेत्।
दक्षापादेन तद्गुल्फं संपीड्य यत्नतः सुधीः ॥१८॥
शनैः शनैश्चालयेत् पार्ष्णिं योनिमाकुञ्चयेच्छनैः।
जालन्धरे धारयेत्प्राणं महाबन्धोनिगद्यते ॥१९॥
अथ महाबन्धस्य फलकथनम्।
महाबन्ध परोबन्धो जरामरणनाशनः।
प्रसादादस्य बन्धस्य साधयेत् सर्ववाञ्छितम् ॥२०॥
(महाबन्ध तीन बन्धों - मूलबन्ध, जालन्धर बन्ध और उड्डीयान बन्ध के मिलाने से बनता है)।
विधि :
मुद्रा करने का समय व अवधि :
प्रारंभ में इस आसन मुद्रा को प्रातः – सायं खाली पेट 5 बार करना चाहिए ।
सावधानियां :
चिकित्सकीय लाभ :
महाबन्ध के अभ्यास से इड़ा,पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ी का संगम होता है एवं प्राण उर्ध्यगामी होकर कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है |
वामपादस्य गुल्फेन पायुमूलं निरोधयेत्।
दक्षापादेन तद्गुल्फं संपीड्य यत्नतः सुधीः ॥१८॥
शनैः शनैश्चालयेत् पार्ष्णिं योनिमाकुञ्चयेच्छनैः।
जालन्धरे धारयेत्प्राणं महाबन्धोनिगद्यते ॥१९॥
अथ महाबन्धस्य फलकथनम्।
महाबन्ध परोबन्धो जरामरणनाशनः।
प्रसादादस्य बन्धस्य साधयेत् सर्ववाञ्छितम् ॥२०॥
(महाबन्ध तीन बन्धों - मूलबन्ध, जालन्धर बन्ध और उड्डीयान बन्ध के मिलाने से बनता है)।
विधि :
- पदमासन या सिद्धासन की स्थिति में बाएं पैर की एड़ी को गुदा एवं लिंग के मध्य भाग में जमाकर बायीं जंघा के ऊपर दाहिने पैर को रखें | रीढ़ की हड्डी सीधी रखें |
- जिस नासा छिद्र से श्वास चल रही हो उससे ही श्वास अंदर भरकर जालन्धर बन्ध लगा लें | फिर गुदाद्वार से वायु को उपर की ओर आकर्षित करके मूलबन्ध लगायें एवं पेट को अंदर सिकोड़कर उड्डियान बन्ध लगा लें |
- मन को मध्य नाडी में एकाग्र करते हुए यथाशक्ति अन्तः कुम्भक करें (श्वास को अंदर ही रोककर रखें) |
- जिस नासा छिद्र से श्वास अंदर भरी थी उसके विपरीत नासा छिद्र से धीरे-धीरे श्वास बाहर निकाल दें | इस प्रकार दोनों नासा छिद्रों से अनुलोम-विलोम विधि से समान प्राणायाम करें |
मुद्रा करने का समय व अवधि :
प्रारंभ में इस आसन मुद्रा को प्रातः – सायं खाली पेट 5 बार करना चाहिए ।
सावधानियां :
- प्रत्येक अभ्यास को करने के बाद कुछ देर तक सामान्य श्वास लेकर पुनः बन्ध लगाना चाहिए |
- किसी भी क्रिया में जोर-जबरजस्ती नही करना चाहिए | आराम से जितना कर सकते हैं उतना ही करें |
- महाबन्ध में जालन्धर बन्ध को अवश्य लगायें अन्यथा मूलबन्ध एवं उड्डियान बन्ध लगा होने से पेट की वायु मष्तिस्क पर अटैक करके सिरदर्द,भारीपन एवं अवसाद जैसे रोग को भी जन्म दे सकती है |
चिकित्सकीय लाभ :
- महाबन्ध के अभ्यास से प्रजनन अंगों के समस्त रोग जैसे- गर्भाशय की सूजन,प्रदर रोग,धातुरोग आदि दूर हो जाते हैं।
- महाबन्ध युवावस्था बनाये रखने के लिए बहुत ही ज्यादा लाभकारी है।
- यह आसन मुद्रा मन को शांत एवं एकाग्र करती है जिससे शरीर के स्नायु सबल होते हैं |
- महाबन्ध के नियमित अभ्यास से ह्रदय को बल मिलता है जिससे ह्रदय रोगों की संभावना समाप्त हो जाती है |
- यह प्रजनन अंगों एवं उनसे सम्बंधित स्नायुओं की अनावश्यक उत्तेजना और शिथिलता को दूर करके वीर्य की शुद्धि एवं स्तम्भन शक्ति को बढ़ाता है |
- महाबन्ध आँतों की निष्क्रियता को दूर कर जठराग्नि प्रदीप्त करता है जिससे कब्ज और अपच दूर होती है | एवं बवासीर,लिवर व तिल्ली के रोग नष्ट हो जाते हैं |
महाबन्ध के अभ्यास से इड़ा,पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ी का संगम होता है एवं प्राण उर्ध्यगामी होकर कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है |
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