Thursday, April 23

महावेध मुद्रा : भगन्दर का योगिक उपचार

अथ महावेधकथनम्।
रूपयौवनलावण्यं नारीणां पुरुषं विना।
मूलबन्धमहाबन्धौ महावेधं विना तथा ॥२१॥
महाबन्धं समासाद्य उड्डीनकुम्भकं चरेत्।
महावेधः समाख्यातो योगिनां सिद्धिदायकः ॥२२॥
अथ महावेधस्य फलकथनम्।
महाबन्धमूलबन्धौ महावेधसमन्वितौ ।
प्रत्यहं कुरुतेयस्तु स योगीयोगवित्तमः ॥२३॥
न च मृत्यु भयं तस्य न जरा तस्य विद्यते।
गोपनीयः प्रयत्नेन वेधोऽयं योगिपुंगवैः ॥२४॥

विधि :

  1. पद्मासन की स्थिति में बैठ जाएँ | 
  2. मूल बन्ध लगाकर श्वास अन्दर भर लें एवं दोनों हथेली दृढ़तापूर्वक जमीन में स्थिर करके हाथों के बल शरीर को जमीन से उपर उठा लें |
  3. इसी स्थिति में ऐसी भावना करें कि प्राण इड़ा पिंगला नाड़ी को छोड़कर कुण्डलिनी शक्ति को जगाता हुआ सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर रहा है |
  4. मूल बन्ध खोलकर श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए सामान्य स्थिति में आ जाएँ |

सावधानियां :
आराम से जितनी देर कुम्भक कर सकें उतनी देर ही मुद्रा लगायें , जबरदस्ती न करें |
मुद्रा करने का समय व अवधि :
प्रातः – सायं खाली पेट इस आसन मुद्रा को करें |प्रारंभ  5 बार से करके धीरे-धीरे  21 बार तक बढ़ाएं |
चिकित्सकीय लाभ :

  • महावेध मुद्रा से कब्ज,बबासीर,भगन्दर जैसे रोग नष्ट हो जाते हैं |
  • यह आसन मुद्रा पुरुषों के धातुरोग और स्त्रियों के मासिकधर्म सम्बंधी रोगों में बहुत ही लाभकारी है।
  • महावेध मुद्रा करने से वीर्य शुद्ध होकर स्तम्भन शक्ति बढती है |

आध्यात्मिक लाभ :

  • महावेध मुद्रा से साधक की कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होने लगती है |
  • प्राणों का सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करने से समस्त चक्रों का जागरण होता है जिससे साधक अनेक सिद्धियों से युक्त हो जाता है |


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