Thursday, April 23

नभोमुद्रा : अन्तःस्रावी तंत्र सक्रिय करने की योगिक विधि

अथ नभोमुद्राकथनम्।
यत्र यत्र स्थितो योगी सर्वकार्येषु सर्वदा।
ऊर्ध्वजिह्वः स्थिरो भूत्वा धारयेत् पवनं सदा।
नभोमुद्रा भवेदेषा योगिनां रोगनाशिनी ॥९॥ श्रीघेरण्डसंहिता
समस्त कार्यों से चित्त को स्थिर कर श्वास को रोककर, अपनी जिह्वा के अग्र भाग को मुंह के अंदर तालू में लगाने से मस्तिष्क विचार शून्य हो जाता है | इसीलिए नभोमुद्रा को रहस्यों का ज्ञान कराने वाली मुद्रा कहा जाता है |
नभोमुद्रा की विधि : 

  1. सुखपूर्वक किसी आसन में बैठ जाएँ |
  2. अपनी दृष्टि को भ्रूमध्य (दोनों भौहों के बीच) को लगा दें एवं जीभ को मुंह के अंदर तालू में लगाएं | यह दोनों कार्य एक साथ करें | 
  3. अपनी सुविधा के अनुसार जितनी देर आराम से रुक सकते हैं, इसी स्थिति में रहें |

सावधानियां : 
मुद्रा करते समय नजर दोनों भौहों के बीच,एवं जीभ तालू के साथ लगाने की किया एक साथ एक ही समय में होनी चाहिए |
भोजन के तुरंत बाद या पहले नभोमुद्रा न करें एक घंटे के अंतर पर कर सकते हैं |
मुद्रा करने का समय व अवधि :
प्रारंभ में नभोमुद्रा के अभ्यास को प्रातः एवं सायं 16-16 मिनट के लिए किया जा सकता है | फिर अपनी सामर्थ्य के अनुसार धीरे-धीरे मुद्रा का समय 48 मिनट तक बढ़ा सकते हैं |
मुद्रा के लाभ :
चिकित्सकीय लाभ : 

  • नभोमुद्रा से अन्तःस्रावी तंत्र सक्रिय हो जाता है जिससे हार्मोन सम्बन्धी रोग दूर होने लगते हैं 
  • विचार शक्ति प्रबल हो जाती है एवं मस्तिष्क में स्थिरता बढ़ जाती है जिससे  मस्तिष्क सम्बन्धी रोग दूर हो जाते हैं | 
  • नभोमुद्रा करने से आँख,जीभ एवं गला सम्बन्धी सभी रोग नष्ट होजाते हैं |
  • घेरंड संहिता के अनुसार -स्थिर चित्त होकर योगी व्यक्ति  यदि श्वास को रोककर अपनी जीभ को मुंह के अंदर तालू में लगाता है तो शरीर के समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं | 

 
आध्यात्मिक लाभ : 

  • नभ का अर्थ आकाश होता है एवं नभोमुद्रा का अर्थ है कि जीभ को तालू में लगाना | यह एक रहस्यमयी मुद्रा है  | मुद्रा सिद्ध हो जाने पर साधक के समक्ष प्रकृति के रहस्य खुलने प्रारंभ हो जाते हैं | 


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