अथ उड्डीयानबन्धः।
उदरे पश्चिमं तानं नाभेरूर्ध्वं तु कारयेत्।
उड्डानं कुरुते यस्मादविश्रान्तं महाखगः।
उड्डीयानं त्वसो बन्धो मृत्युमातंग केशरी ॥१०॥
अथ उड्डीयानबन्धस्य फलकथनम्।
समग्राद् बन्धनाद्धयेतदुड्डीयानं विशिष्यते।
उड्डीयाने समभ्यस्ते मुक्तिः स्वाभाविकी भवेत् ॥११॥
श्रीघेरण्डसंहितायां घेरण्डचण्डसंवादे घटस्थयोगप्रकरणे मुद्राप्रयोगो नाम तृतीयोपदेशः ॥
उड्डीयानबन्ध करने से सातों द्वार (आँख, कान, नाक और मुँह)बंद हो जाते हैं फलस्वरूप प्राण सुषुम्ना में प्रविष्ट होकर उपर की ओर उड़ान भरने लगता है। इसीलिए इसे उड्डीयान बंध कहते हैं।
विधि :
उड्डियानबंध करने का समय व अवधि :
प्रातः खाली पेट करना चाहिए | प्रारंभ में 3 बार से शुरू करके सामर्थ्य के अनुसार 21 बार तक तक बढ़ाना चाहिए |
उड्डीयान बंध के लाभ :
सावधानियां :
आध्यात्मिक लाभ :
उदरे पश्चिमं तानं नाभेरूर्ध्वं तु कारयेत्।
उड्डानं कुरुते यस्मादविश्रान्तं महाखगः।
उड्डीयानं त्वसो बन्धो मृत्युमातंग केशरी ॥१०॥
अथ उड्डीयानबन्धस्य फलकथनम्।
समग्राद् बन्धनाद्धयेतदुड्डीयानं विशिष्यते।
उड्डीयाने समभ्यस्ते मुक्तिः स्वाभाविकी भवेत् ॥११॥
श्रीघेरण्डसंहितायां घेरण्डचण्डसंवादे घटस्थयोगप्रकरणे मुद्राप्रयोगो नाम तृतीयोपदेशः ॥
उड्डीयानबन्ध करने से सातों द्वार (आँख, कान, नाक और मुँह)बंद हो जाते हैं फलस्वरूप प्राण सुषुम्ना में प्रविष्ट होकर उपर की ओर उड़ान भरने लगता है। इसीलिए इसे उड्डीयान बंध कहते हैं।
विधि :
- सुखासन या पद्मासन में बैठ जाएँ हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखें |
- थोड़ा आगे झुके और पेट के स्नायुओं को अंदर खींचते हुए पूर्ण रेचक(श्वास को बाहर निकालें) तथा बाह्म कुंभक करें (बाहर ही रोककर रखें ) |
- धीरे-धीरे श्वास अंदर लेते हुए पसलियों को ऊपर उठाते हुए श्वास को छाती में ही रोके एवं पेट को ढीला कर यथासंभव जितना अंदर सिकोड़सकते है सिकोड़ें ।
- हठयोग में पूरी श्वास बाहर निकालकर बिना श्वास लिए प्रयत्न पूर्वक पेट को अंदर की ओर खींचा जाता है |
उड्डियानबंध करने का समय व अवधि :
प्रातः खाली पेट करना चाहिए | प्रारंभ में 3 बार से शुरू करके सामर्थ्य के अनुसार 21 बार तक तक बढ़ाना चाहिए |
उड्डीयान बंध के लाभ :
- उड्डियानबंध से आमाशय,लिवर व गुर्दे सक्रिय होकर अपना कार्य सुचारू ढंग से करने लगते हैं एवं इन अंगों से सम्बंधित समस्त रोग दूर हो जाते हैं |
- यह बंध से पेट, पेडु और कमर की माँसपेशियाँ सक्रिय होकर शक्तिशाली बनता है तथा अजीर्ण को दूर कर पाचन शक्ति को बढाता है |
- उड्डीयान बंध से पेट और कमर की अतिरिक्त चर्बी घटती है।
- इस बंध से उम्र के बढ़ते असर को रोका जा सकता है। इसे करने से व्यक्ति हमेशा युवा बना रह सकता है
- इससे शरीर को एक अद्भुत कांति प्राप्त होती है।
- उड्डियानबंध पेट की दूषित वायु को निकालता है एवं कृमि रोग को नष्ट कर देता है |
सावधानियां :
- उड्डियानबंध करने के पूर्व यथा संभव पेट साफ़ कर लेना चाहिए |
- इस बंध को खाली पेट ही करना चाहिए |
- गर्भवती महिलाएं,हृदय रोगी, पेट में कोई घाव (अल्सर) होने की अवस्था में उड्डियानबंध नही करना चाहिए |
आध्यात्मिक लाभ :
- उड्डियानबंध मणिपूरक चक्र को जाग्रत करता है |
- इस बंध को करने से प्राण उर्ध्वमुखी होकर सुषुम्ना नाडी में प्रवेश करने लगता है जिससे साधक को अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है |
- योगीगण उड्डियानबंध से अपनी भूख-प्यास पर नियंत्रण कर लेते हैं |
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