Thursday, April 23

महामुद्रा

मुद्राकथनम्  - घेरण्ड उवाच
महामुद्रा नभोमुद्रा उड्डीयानं जलन्धरम्। मूलबन्धं महाबन्धं महावेधश्च खेचरी ॥१॥
विपरीतकरणी योनि वज्रोली शक्तिचालिनी। तडागीमाण्डवीमुद्रा शाम्भवीपञ्चधारणा ॥२॥
आश्विनी पाशिनी काकी मातंगी च भुजंगिनी। पञ्चविंशति मुद्रावै सिद्धिदाश्चेहयोगिनाम् ॥३॥


अथ महामुद्राकथनम्।
पायुमूलं वामगुल्फे संपीड्य दृढयत्नतः।
याम्यपादं प्रसार्याथ करेधृत पदांगुलः ॥६॥
कण्ठ संकोचनं कृत्वा भ्रुवोर्मध्ये निरीक्षयेत्।
महामुद्राभिधामुद्रा कथ्यते चैव सूरिभिः ॥७॥



अथ महामुद्राफलकथनम्                              
क्षयकांस गुदावर्त्तं प्लीहाजीर्णज्वरं तथा। नाशयेत्सर्वरागांश्च महामुद्रा च साधनात् ॥८॥
महामुद्रा की विधि 

  1. सर्वप्रथम जमीन पर चटाई या दरी बिछाकर दोनों पैर आगे की तरफ सीधे फैलाकर बैठ जाएं। 
  2. बाएं पैर को मोड़कर इस पैर की एड़ी को अपने मूत्रेन्द्रिय और गुदा द्वार (Anus) के बीच जो सिवनी जैसा भाग है वहां पर दबाबपूर्वक लगा दें | दाहिना पैर सीधा रहे |
  3. धीरे-धीरे श्वास अन्दर भरते हुए मूलबंध (गुदाद्वार को अंदर की तरफ सिकोड़ना) तथा जालंधर बंध (अपनी ठोड़ी (chin) को कंठ में लगाना) लगाते हुए आगे की ओर झुकें एवं दाहिने पैर का अंगूठा पकडकर अपने मस्तक को दाहिने पैर के घुटने पर टिका दें |
  4. आराम से जितना रोक सकते है,श्वास को अंदर ही रोककर रखें एवं यह भावना करें कि शरीर के अंदर जहाँ जिन अंगों में रोग है वहां यह प्राणवायु जाकर रोग को समाप्त कर रही है |
  5. आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्वास को पेट में धीरे-धीरे घुमाते हुए यह भावना करनी चाहिए कि यह प्राण कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर रहा है एवं रीढ़ की सुषुम्ना नाडी (रीढ़ के बीच में सुषुम्ना नाडी होती है) में प्रवेश कर रहा है |
  6. जब श्वास अंदर रोकना कठिन हो जाये तो घुटने पर से मस्तक को धीरे से उठाते हुए श्वास छोड़ते हुए प्रारंभ की स्थिति में बैठ जाएँ |
  7. इस पूरे क्रम को दूसरे पैर से भी दोहराएँ |


सावधानियां :
गंभीर हृदय रोगी एवं उच्च रक्तचाप की स्थिति में महामुद्रा न करें |
जिनको स्लिप डिस्क (कमर दर्द)उन्हें यह मुद्रा नहीं करनी चाहिए।
महामुद्रा को खाली पेट करें एवं करने के 30 मिनट बाद ही कुछ खाएं-पियें |

मुद्रा करने का समय व अवधि :

  • महामुद्रा को प्रातः स्नान के बाद खाली पेट करना चाहिए |
  • महामुद्रा प्रारंभ में दोनों पैरो से 3-3 बार करना चाहिए फिर धीरे-धीरे सामर्थ्य के अनुसार प्राणायाम की संख्या बढ़ाते रहना चाहिए |


मुद्रा के लाभ :

चिकित्सकीय लाभ :

  1. महामुद्रा करने से पेट के लगभग सभी रोगों में लाभ मिलता है | इस मुद्रा से अजीर्ण,अपच,भूख न लगना जैसे रोग समाप्त हो जाते हैं |
  2. महामुद्रा से फेफड़ों को शक्ति मिलती है एवं क्षय, दमा,कफ़ आदि फेफड़ों से सम्बंधित रोग दूर हो जाते हैं |
  3. गोरक्ष पद्धति के अनुसार इस मुद्रा को करने से मलद्वार के आस-पास होने वाले फोड़े,गुल्म (गुदावर्त) एवं प्रमेह रोग समाप्त हो जाता है |
  4. महामुद्रा करने से गुदा के अन्य रोग जैसे बवासीर व  भगंदर ठीक हो जाता है |
  5. स्त्रीरोग जैसे - प्रदर, डिसमिनोरिया, मासिकधर्म की परेशानी आदि समाप्त हो जाते हैं।
  6. महामुद्रा हर्निया, हाइड्रोसील और मानसिक रोगियों के लिए अत्यंत उपयोगी  है।

आध्यात्मिक लाभ :

  • महामुद्रा के अभ्यास से प्राणों के उर्ध्वगामी होने के फलस्वरूप अभ्यासी के मुख पर कान्ति आ जाती है |
  • लम्बे समय तक महामुद्रा के अभ्यास से सुषुम्ना में प्राणों का प्रवेश होकर प्राण शक्ति का उर्ध्वगमन प्रारंभ हो जाता है एवं साधक की कुण्डलिनी जाग्रत होने लगती है |


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