अथ जालन्धर बन्धकथनम्।
कण्ठ संकोचनं कृत्वा चिबुकं हृदयेन्यसेत्।
जालन्धरे कृते बन्धे षोडशाधारबन्धनम्।
जालन्धरं महामुद्रामृत्योश्चक्षय कारिणीं ॥१२॥
सिद्धं जालन्धरं बन्धं योगिनां सिद्धिदायकम्।
षण्मासमभ्यसेद्यो हि स सिद्धो नात्र संशयः ॥१३॥
श्रीघेरण्डसंहितायां घेरण्डचण्डसंवादे घटस्थयोगप्रकरणे
मुद्राप्रयोगो नाम तृतीयोपदेशः ॥
कंठ का संकुचन करके ठोड़ी को ह्रदय के समीप दृढ़तापूर्वक लगाने की क्रिया को जरामृत्यु का नाश करने वाला जालन्धर बन्ध कहते हैं |
विधि :
सावधानियां :
जालन्धर बन्ध करने का समय व अवधि :
प्रातः एवं सायं भोजन के पूर्व इस बन्ध को करना चाहिए | प्रारंभ में तीन बार करें तत्पश्चात धीरे-धीरे क्रम को बढाकर 21 बार तक ले जाना चाहिए |
चिकित्सकीय लाभ :
आध्यात्मिक लाभ :
कण्ठ संकोचनं कृत्वा चिबुकं हृदयेन्यसेत्।
जालन्धरे कृते बन्धे षोडशाधारबन्धनम्।
जालन्धरं महामुद्रामृत्योश्चक्षय कारिणीं ॥१२॥
सिद्धं जालन्धरं बन्धं योगिनां सिद्धिदायकम्।
षण्मासमभ्यसेद्यो हि स सिद्धो नात्र संशयः ॥१३॥
श्रीघेरण्डसंहितायां घेरण्डचण्डसंवादे घटस्थयोगप्रकरणे
मुद्राप्रयोगो नाम तृतीयोपदेशः ॥
कंठ का संकुचन करके ठोड़ी को ह्रदय के समीप दृढ़तापूर्वक लगाने की क्रिया को जरामृत्यु का नाश करने वाला जालन्धर बन्ध कहते हैं |
विधि :
- भूमि पर आसन बिछाकर पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं ।
- दोनों हाथों को घुटनों पर रखें एवं ऑंखें बंद व रीढ़ की हड्डी सीधी रखें |
- गहरी श्वास लेकर अन्तः कुम्भक करें (श्वास को अंदर रोककर रखें )और कंठ की आन्तरिक मांसपेशियों को संकुचित कर ठोड़ी को झुकाकर हृदय के पास कण्ठकूप में लगा दें एवं दोनों कन्धों को थोड़ा सा उचकाकर उपर उठायें |
- आराम से जब तक अन्तः कुम्भक की स्थिति में रह सकें रहें तत्पश्चात हाथों तथा कन्धों को शिथिल कर सिर को उपर उठाकर सामान्य स्थिति में आ जाएँ |
- धीरे-धीरे श्वास बाहर निकालें |
- श्वास क्रिया सामान्य हो जाने पर पुनः इस प्रक्रिया को करें ।
सावधानियां :
- जिन लोगों की कमर या गर्दन में दर्द रहता हो उन्हें जालंधर बंध का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- जब तक आसानी से कुम्भक की स्थिति में रह सकें रहें, हठपूर्वक न करें |
जालन्धर बन्ध करने का समय व अवधि :
प्रातः एवं सायं भोजन के पूर्व इस बन्ध को करना चाहिए | प्रारंभ में तीन बार करें तत्पश्चात धीरे-धीरे क्रम को बढाकर 21 बार तक ले जाना चाहिए |
चिकित्सकीय लाभ :
- जालन्धर बन्ध गले के समस्त रोगों जैसे- टॉन्सिल, आवाज खराब होना आदि का नाश करता है |
- यह बन्ध थायरायड एवं पैराथायरायड ग्रन्थियों की क्रियाशीलता बढ़ाकर हार्मोन्स के स्राव को सन्तुलित करता है | जिससे शरीर का मेटाबालिज्म ठीक रहता है |
- जालन्धर बन्ध से चेहरे पर भी चमक आ जाती है। स्फूर्ति,उत्साह,एवं यौवन को बनाये रखता है |
- इस बन्ध के अभ्यास से हाई ब्लडप्रेशर और लो ब्लडप्रेशर दोनों ही सामान्य हो जाते हैं।
- जालन्धर बन्ध से क्रोध का नाश होता है एवं मष्तिस्क तरोताजा रहता है |
आध्यात्मिक लाभ :
- जालन्धर बन्ध से विशुद्ध चक्र जाग्रत होता है |
- यह मुद्रा कुण्डलिनी शक्ति को जगाने में बहुत ही सहायक है।
- जालन्धर बन्ध सिद्ध हो जाने पर योगियों के लिए कोई भी सिद्धि पाना कठिन नही रह जाता है |
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