By- Dr. Kailash Dwivedi
इस मुद्रा में हाथ की आकृति मृग के सिर के समान हो जाती है इसीलिए इसे मृगी मुद्रा कहा जाता है।
विधि :
हाथ की अनामिका और मध्यमा अंगुली (बीच की दोनों अंगुली) को अंगूठे के आगे के भाग से स्पर्श कराएँ |बाकी बची दोनों अंगुलियाँ कनिष्ठा एवं तर्जनी अंगुली को सीधा रखें।लाभ :
- मृगी मुद्रा मिर्गी के रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
- इसके नियमित अभ्यास से सिरदर्द और दिमागी परेशानी में लाभ मिलता है।
- मृगी मुद्रा से दन्त रोग एवं सायिनस रोग में भी लाभ मिलता है।
मुद्रा करने का समय व अवधि :
मृगी मुद्रा को प्रातः,दोपहर एवं सायं 16-16 मिनट करना उपयुक्त है।घरेलू चिकित्सा :
- अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत लाभदायक माना गया है। 250-300 ग्राम अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
- मिर्गी के रोगी के पैरों तलवों में आक की आठ-दस बूंदे प्रतिदिन शाम के समय मलें। ऐसा 2 महीनों तक रोजाना करें। इससे काफी लाभ मिलेगा।
- मिर्गी के रोगी के लिए शहतूत एवं सेब का रस लाभदायक होता है।
- तुलसी की पत्तियों के साथ कपूर सुंघाने से मिर्गी के रोगी को होश आ जाता है।
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