अथ पाशिनीमुद्राकथनम्।
कण्ठपृष्ठे क्षिपेत्पादौ पाशवद्दृढबन्धनम्। सा एव पाशिनी मुद्रा शक्ति प्रबोधकारिणी ॥८४॥
अथ पाशिनीमुद्रायाः फलकथनम्।
पाशिनी महती मुद्रा बलपुष्टिविधायिनी। साधनीया प्रयत्नेन साधकैः सिद्धिकाङक्षिभिः ॥८५॥
विधि :
सावधानियां :
मुद्रा करने का समय व अवधि :
चिकित्सकीय लाभ :
आध्यात्मिक लाभ :
कण्ठपृष्ठे क्षिपेत्पादौ पाशवद्दृढबन्धनम्। सा एव पाशिनी मुद्रा शक्ति प्रबोधकारिणी ॥८४॥
अथ पाशिनीमुद्रायाः फलकथनम्।
पाशिनी महती मुद्रा बलपुष्टिविधायिनी। साधनीया प्रयत्नेन साधकैः सिद्धिकाङक्षिभिः ॥८५॥
विधि :
- पृथ्वी पर आसन लगाकर पीठ के बल लेट जाएँ | दोनों हाथ नीचे जांघों के पास जमीन पर रखें |
- अपने हांथों पर जोर डालते हुए दोनों पैर,नितम्ब एवं धड़ ऊपर उठायें एवं पैरों को सिर के पीछे लाकर जमीन से स्पर्श कराएँ (हलासन की स्थिति में) |
- जमीन पर स्पर्श किये हुए ही दोनों पैरों के बीच में लगभग आधा मीटर का गैप करें एवं घुटनों को मोडकर जांघों को छाती से स्पर्श कराएँ | इस स्थिति में घुटने कान और कन्धों को स्पर्श करने चाहिए |
- अपने हाथों को मजबूती से पैरों के पीछे लपेट लें । फिर धीरे-धीरे दीर्घ शवासन करें ।
- अपनी चेतना को मूलाधार चक्र पर रखें ।
- पाशिनी मुद्रा लगाकर जितने समय आराम से इस मुद्रा में रुक सकते हैं उतने समय मुद्रा लगाकर रखें,तत्पश्चात पैरों को खोलकर धीरे-धीरे जमीन पर लायें | 2 मिनट विश्राम के बाद पुनः इस मुद्रा को लगायें |
सावधानियां :
- जिन व्यक्तियों को रीढ़ से सम्बंधित कोई रोग जैसे – स्लिप डिस्क आदि हो उन्हें इस मुद्रा का अभ्यास नही करना चाहिए |
- उच्च रक्तचाप के रोगियों को यह मुद्रा नही करनी चाहिए |
- हर्निया से ग्रस्त लोगों को भी यह मुद्रा नहीं करनी चाहिए |
मुद्रा करने का समय व अवधि :
- प्रातः नित्यकर्म के बाद खाली पेट इस मुद्रा को करना चाहिए |
- पाशिनी मुद्रा लगाकर जितने समय आराम से इस मुद्रा में रुक सकते हैं उतने समय मुद्रा लगाकर रखें,तत्पश्चात पैरों को खोलकर धीरे-धीरे जमीन पर लायें | 2 मिनट विश्राम के बाद पुनः इस मुद्रा को लगायें |
- प्रारंभ में 3 बार से शुरू करके शारीरिक शक्ति के अनुसार धीरे-धीरे क्रम बढ़ाते जाएँ |
चिकित्सकीय लाभ :
- पाशिनी मुद्रा के अभ्यास से नाड़ी संस्थान (नर्वस सिस्टम) में संतुलन और स्थिरता आती है।
- इससे मेरूदंड (रीढ़ की हड्डी) और उसके चारो ओर की नाड़ियां क्रियाशील बनती है।
- प्रजनन अंगों से सम्बंधित समस्त रोग दूर हो जाते हैं ।
- शरीर में बल बढ़ता है एवं मानसिक शक्ति भी बढती है |
- इस मुद्रा के अभ्यास से थायरायड ग्रंथि से सम्बंधित रोग दूर हो जाते है
आध्यात्मिक लाभ :
- आध्यात्मिक प्रगति हेतु इस मुद्रा में ध्यान मूलाधार या विशुद्धि चक्र पर लगाना चाहिए |
- यह मुद्रा कुण्डलिनी जागरण में अत्यंत लाभदायक है।
- यह मुद्रा सिद्ध होने के बाद साधक के लिए कुछ भी असंभव नही रह जाता है |
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