विधि:
लाभ:
- किसी भी पदमासन,सिद्धासन या सुखासन में बैठ जाएँ |
- कमर से गर्दन तक रीढ़ की हड्डी सीधी रखें एवं आंखें बंद कर लें।
- दाहिने हाँथ के अंगूठे से दाहिने नासाछिद्र को बंद कर लें।
- अब बाएं नासाछिद्र से धीरे-धीरे श्वास को बाहर की ओर निकालें। संपूर्ण श्वास निकालने के पश्चात पुन: बाएं नासाछिद्र से ही श्वास भरना प्रारंभ करें।
- अधिक से अधिक सांस भरने के बाद बाएं नासाछिद्र को अनामिका और कनिष्ठा अंगुलियों से बंद कर लें व अंगूठे को दाएं नासाछिद्र से हटाकर दाईं नासिका से ही श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालें।
- पूरा श्वास बाहर निकल जाने के बाद दाएं नासाछिद्र से ही श्वास भरना प्रारंभ करें और पूरा श्वास भर जाने के पश्चात दाएं नासाछिद्र को अंगूठे से बंद कर श्वास को बाएं नासाछिद्र से अंगुलियां हटाकर धीरे-धीरे बाहर निकाल दें।
- यह एक चक्र अनुलोम-विलोम प्राणायाम कहलाता है।प्रारंभ में इस प्राणायाम का अभ्यास कम से कम 11 चक्र करें।
लाभ:
- अनुलोम-विलोम प्राणायाम के अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियां शुद्ध हो जाती हैं, जिससे शरीर दोषरहित, पवित्र, निर्मल एवं हल्का हो जाता है। शरीर की ऊर्जा व्यवस्थित होकर ऊर्ध्वगामी होने लगती है।
- इस प्राणायाम से स्नायु तंत्र संबंधी रोग दूर होते हैं एवं मन शान्त एवं एकाग्र हो जाता है। विचारों में सकारात्मकता, सृजनात्मकता व रचनात्मकता बढ़ती है।
- अनुलोम-विलोम के अभ्यास से तनाव, क्रोध, चिन्ता, चिड़चिड़ापन, भय, घबराहट, अशांति, बेचैनी, हाई ब्लडप्रेशर, माइग्रेन, नींद न आना, कम्पवात आदि विकार दूर हो जाते हैं।
- अनुलोम-विलोम प्राणायाम के नियमित अभ्यास से गठिया, आमवात, वैरीकोज वेन्स, शीतपित्त, ऐसिडिटी, साइनस तथा इंद्रियों की दुर्बलता दूर होती है।
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