विधिः
- किसी भी ध्यानात्मक आसन जैसे- पद्मासन,सिद्धासन अथवा सुखासन में बैठकर बायें नासाछिद्र को बंद कर लें एवं दायें नासाछिद्र से धीरे-धीरे श्वास भरें।
- जालन्धर बन्ध लगाकर तब तक अन्तः कुम्भक करें जब तक सिर-से लेकर पाँव तक पसीना न आ जाए |अर्थात अधिकाधिक जितने समय तक रोक सकते हैं उतने समय तक वायु को अन्दर ही रोक कर रखें तत्पश्चात श्वास को बाएं नासाछिद्र से बाहर निकाल दें |
- फिर दायें नासाछिद्र से श्वास भरकर अन्तः कुम्भक करें एवं बाएं नासाछिद्र से श्वास को छोड़ दें | इस प्रकार 3 से 5 चक्र इस क्रिया को दोहराएँ |
• सूर्यभेदी प्राणायाम नियमित रूप से करने से कफ-सम्बन्धी समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं।
• सर्दी, खाँसी जुकाम दूर हो जाते हैं व पुराना जमा हुआ कफ पिघल जाता है।
• इस प्राणायाम से शरीर की अग्नि प्रदीप्त होती है जिससे पाचन शक्ति भी प्रबल हो जाती है |
सावधानियां :
• जिन व्यक्तियों का ब्लड प्रेशर हाई रहता हो उन्हें सुर्यभेदी प्राणायाम नहीं करना चाहिए |
• शरीर की बढ़ी हुयी गर्मी की अवस्था में भी यह निषेध है |
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