- स्कन्द पुराण के अनुसार - अश्वत्थ (पीपल) के मूल में भगवान विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं। पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप है।
- भगवान कृष्ण कहते हैं- समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ। स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त किया है।
- शास्त्रों में वर्णित है कि पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं।
- प्रसिद्ध ग्रन्थ व्रतराज के अनुसार - अश्वत्थोपासना में पीपल वृक्ष की महिमा का उल्लेख है। अश्वत्थोपनयनव्रत में महर्षि शौनक द्वारा इसके महत्त्व का वर्णन किया गया है।
- अथर्ववेदके उपवेद आयुर्वेद के अनुसार - पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। पीपल के वृक्ष के नीचे मंत्र, जप और ध्यान तथा सभी प्रकार के संस्कारों को शुभ माना गया है।
- श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए।
पीपल के बीज राई के दाने के आधे आकार में होते हैं। परन्तु इनसे उत्पन्न वृक्ष विशालतम रूप धारण करके सैकड़ों वर्षो तक खड़ा रहता है। पीपल के वृक्ष के पत्ते मार्च के महीने में झड़ जाते हैं और गर्मी के मौसम में इसमें फल की बहार आती है, जो बारिश के मौसम में पकते हैं। पुराने पीपल के पेड़ से लाक्षा (लाख, चपड़ा) भी प्राप्त होती है।
पीपल के पेड़ के अनेक अलौकिक स्वास्थ्यकर गुणों के कारण इसे हिन्दू धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना गया है |पीपल पाचनशक्तिवर्द्धक, वीर्यवर्द्धक (धातु को बढ़ाने वाला), मधुर-रसायन, वातकफनाशक, हल्की, दस्तावर, श्वास (दमा), खांसी, बुखार, कोढ़, प्रमेह (वीर्य विकार), बवासीर, प्लीहा शूल तथा आमवात आदि रोगों में लाभकारी है। यह पेशाब और मासिक-धर्म के बहने को जारी करती है, गर्भ को गिरने नहीं देती है। हृदय (दिल) की बीमारियों को हटाती है। कृमि (कीड़े) रोगों का नाश करती है। पीपल की छाल का लेप सूजन को मिटाता है, नासूर के लिए लाभकारी है तथा घावों को भरता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिंदी : पीपरि, पीपल।
संस्कृत : अश्वत्थ, पिप्पल, चलपत्र, गजाशन, बौधिद्रु।
बंगाली : पिपुल, अश्वत्थ।
मराठी : पिम्पली, पीपल।
कर्नाटकी : अरलीमारा।
तैलगू : रावीचेट्टु।
तमिल : आराकमरं, अष्वत्थम।
कन्नड़ : अश्वत्थ।
गुजराती : लिंडी पीपर, पीपलों।
मलयलम : अरायल।
फारसी : फिल-फिल दराज, दरख्तलरजा।
अंग्रेजी : डारफिल, सेक्रेड फिग, पोपलरलिब्ड फिग ट्री।
लैटिन : पाइपर लांगम, फाइकरिलिजियोजा।
संस्कृत : अश्वत्थ, पिप्पल, चलपत्र, गजाशन, बौधिद्रु।
बंगाली : पिपुल, अश्वत्थ।
मराठी : पिम्पली, पीपल।
कर्नाटकी : अरलीमारा।
तैलगू : रावीचेट्टु।
तमिल : आराकमरं, अष्वत्थम।
कन्नड़ : अश्वत्थ।
गुजराती : लिंडी पीपर, पीपलों।
मलयलम : अरायल।
फारसी : फिल-फिल दराज, दरख्तलरजा।
अंग्रेजी : डारफिल, सेक्रेड फिग, पोपलरलिब्ड फिग ट्री।
लैटिन : पाइपर लांगम, फाइकरिलिजियोजा।
- रंग : इसका रंग भूरा और हरा होता है।
- स्वाद : पीपल खाने में चरपरा होता है। कच्चा पीपल बाखट और पका पीपल फीका और मीठा होता है।
- स्वरूप : यह एक प्रकार की गुल्म जातीय लता है। इसमें ही फल लगा करते हैं। पीपल के पत्ते पान की तरह छोटे, गोल तथा बड़ी नोक वाले नुकीले होते हैं। पीपल के फल पत्तों की जड़ में छोटे-छोटे गोल-गोल झड़बेरी के समान लगते हैं, पीपल के फल आधा व्यास के पकने पर बैंगनी या काले हो जाते हैं। इसकी डाली में लाख भी पैदा होती है।
- स्वभाव : पीपल की तासीर गर्म होती है। पीपल का पत्ता और छाल ठंडी और रूखी होती है। बाकी भाग गर्म होता है।
रोगों में सेवन योग्य मात्रा :
- पीपल की छाल और फलों का चूर्ण : 1 से 3 ग्राम।
- लाक्षा (गोंद का) चूर्ण : 1 से 2 ग्राम।
- छाल, पत्तों का काढ़ा : 50 से 100 मिलीलीटर।
- पत्तों का रस : 10 से 20 मिलीलीटर |
विभिन्न रोंगों का पीपल से उपचार :
मुंह के छाले :
पीपल की छाल के काढ़े से सुबह-शाम गरारे करने और छाल के चूर्ण को शहद में मिलाकर छालों पर लगाने से छालों में आराम मिलता है।
अफीम का नशा उतारने हेतु :
पीपल की छाल का काढ़ा रोगी को पिलाने से अफीम का जहर उतर जाता है |
हिचकी का रोग:
- 1 ग्राम की मात्रा में पीपल का चूर्ण शहद या शर्करा के साथ चाटने से हिचकी आना बंद हो जाती है।
पीपल के पेड़ की छाल पानी में घोलकर कुछ देर छोड़ दें। फिर इसके पानी को निथारकर पीने से हिचकी ठीक हो जाती है। - 1 ग्राम पीपल की लाख का चूर्ण शहद में मिलाकर रोगी को चटाने से हिचकी का रोग दूर हो जाता है।
खूनी दस्त :
पीपल की कोमल टहनियां, धनिये के बीज तथा मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर 3-4 ग्राम रोजाना सुबह-शाम सेवन कराने से खूनी दस्त के रोग में लाभ होता है।
उपदंश (सिफलिस):
पीपल के तने की 50 ग्राम सूखी छाल की राख, उपदंश पर छिड़कने से उपदंश के घाव ठीक हो जाते हैं।
पेट में दर्द:
पीपल के मुलायम 3 पत्तों को बारीक पीसकर गुड़ को मिलाकर छोटी-छोटी गोली बना लें। इन गोलियों को सुबह-शाम 1-1 गोली खुराक के रूप में खाने से पेट के दर्द में लाभ हो जाता है।
रक्त शुद्धि हेतु :
1-2 ग्राम पीपल के बीजों के चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से खून साफ हो जाता है।
प्रदर:
40 ग्राम पीपल के गोंद को कूट-पीसकर इसे 5 ग्राम गाय के कच्चे दूध के साथ प्रातः सेवन करने से प्रदर रोग मिट जाता है।
• पीपल के सूखे गोंद को आटे में मिलाकर गाय के दूध में हलवा बनाकर खाने से प्रदर में लाभ मिलता है।
• पीपल के सूखे गोंद को आटे में मिलाकर गाय के दूध में हलवा बनाकर खाने से प्रदर में लाभ मिलता है।
श्वास (दमा) :
पीपल की लाख का चूर्ण घी और शक्कर के साथ मिलाकर खाने से दमा के रोग में आराम आता है।
कब्ज:
- पीपल के 5-10 फल को प्रतिदिन खाने से कब्ज समाप्त हो जाती है ।
- पीपल के पत्ते और कोमल कोपलों का 40 मिलीलीटर काढ़ा पीने से पेट साफ होता है।
घाव :
• पिसी हुई पीपल की छाल का काढ़ा बनाकर उससे घाव को धोने से घाव जल्दी भर जाता है।
• पीपल की छाल का बारीक चूर्ण घाव पर लगाने से रक्तस्राव (खून का बहना) बंद होकर घाव जल्दी भर जाता है।
• पीपल की छाल का बारीक चूर्ण लगाने से सड़े हुए तथा न भरने वाले घाव जल्दी ठीक होकर भर जाते हैं। भगंदर और कंठमाला के रोग में भी इससे लाभ होता है।
• पीपल की सूखी छाल को पीसकर जले हुए स्थान पर बुरकने से आग से जला हुआ घाव ठीक हो जाता है।
• पिसी हुई पीपल की छाल का काढ़ा बनाकर उससे घाव को धोने से घाव जल्दी भर जाता है।
• पीपल की छाल का बारीक चूर्ण घाव पर लगाने से रक्तस्राव (खून का बहना) बंद होकर घाव जल्दी भर जाता है।
• पीपल की छाल का बारीक चूर्ण लगाने से सड़े हुए तथा न भरने वाले घाव जल्दी ठीक होकर भर जाते हैं। भगंदर और कंठमाला के रोग में भी इससे लाभ होता है।
• पीपल की सूखी छाल को पीसकर जले हुए स्थान पर बुरकने से आग से जला हुआ घाव ठीक हो जाता है।
पुरानी खांसी में कफ के साथ खून आना :
- लगभग आधा ग्राम पीपल की लाख, 1 चम्मच शहद, 2 चम्मच घी और थोड़ी सी मिश्री को मिलाकर दिन में 5-6 बार रोगी को देने से खून की खांसी बंद हो जाती है।
- पीपल की लाख का चूर्ण घी और शक्कर के साथ खाने से सूखी खांसी में आराम आता है।
बुखार:
- पीपल के पेड़ की टहनी तोड़कर उसे चबाकर रस को चूसे और लकड़ी थूक दें। इससे मलेरिया व हर प्रकार का बुखार उतर जायेगा।
- हल्का बुखार, सूखी खांसी और कमजोरी के रोग में घी, शहद और चीनी के साथ पीपल की लाख देनी चाहिए।
बच्चों का शारीरिक दर्द एवं अनिद्रा :
एक चुटकी पीपल की लाख को थोड़े से दूध में मिलाकर बच्चों को पिलाने से बच्चों के दर्द और नींद न आना दूर होता है।
दांतों के रोग :
पीपल की ताजी टहनी को दांतों से चबाकर दातुन करने से और इसकी छाल के काढ़े से गरारे करने से मुंह की दुर्गंध मिटती है, दांतों का दर्द, पायरिया एवं मसूढ़ों की सूजन में भी लाभ होता है ।
चर्म रोग:
- पीपल के पत्तों को पानी में उबालकर उसके काढ़े से नहाने से त्वचा के अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
- पीपल की कोमल कोपलें खाने से खुजली और त्वचा पर फैलने वाले चर्मरोग दूर हो जाते हैं। इसका 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पीने से भी यही लाभ होता है।
- 6 ग्राम पीपल के पेड़ की जड़ के चूर्ण को 5 कालीमिर्च के साथ बारीक पीसकर और छानकर पीने से और इसी लेप बनाकर श्वेत कुष्ठ (कोढ़) में लगाने से श्वेत कुष्ठ दूर होता है।
गर्भ का न ठहरना :
- 250 ग्राम पीपल के पेड़ की सूखी पिसी हुई जड़ों में 250 ग्राम बूरा मिलाकर रख लें। जिस दिन से पत्नी का मासिक-धर्म आरम्भ हो, उस दिन से इसे पति व पत्नी दोनों 4-4 चम्मच गर्म दूध के साथ 11 दिनों तक फंकी लें। जिस दिन यह मिश्रण समाप्त हो, उसी रात से 12 बजे के बाद प्रतिदिन संभोग (स्त्री प्रंसग) करने से बांझपन की स्थिति में भी गर्भधारण की संम्भावना बढ़ जाती है।
- पीपल के सूखे फलों के 1-2 ग्राम चूर्ण कच्चे दूध के साथ मासिक-धर्म के शुद्ध होने के बाद 14 दिनों तक देने से बांझपन में लाभ होता है।
हकलाहट :
आधा चम्मच पीपल के पके फलों का चूर्ण शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से हकलाहट में लाभ होता है।
नपुंसकता :
आधा चम्मच पीपल के फल का चूर्ण दिन में 3 बार दूध के साथ सेवन करते रहने से नपुंसकता (नामर्दी) दूर होकर, बल, वीर्य तथा पौरुष बढ़ता है।
वीर्यवर्धक :
- पीपल की जड़ की छाल का प्रयोग करने से वीर्य अधिक गाढ़ा होता है |
- छाया में सुखाये गए पीपल के फल को पीसकर छान लें। इस चौथाई चम्मच चूर्ण को 250 मिलीलीटर गर्म दूध में मिलाकर प्रतिदिन पीने से वीर्य बढ़ जाता है। नपुंसकता दूर होती है। इससे मासिक-धर्म के रोग, श्वेतप्रदर एवं कब्ज में भी अत्यंत लाभ होता है।
पीलिया :
पीपल के 3-4 पत्तों को मिश्री के साथ खरल में खूब घोंटकर बारीक पीस लें इसमें 250 मिलीलीटर पानी मिलाकर छान लें। 3- 5 दिनों तक प्रतिदिन यह पेय पीने से लाभ होता है |
अपच :
- पीपल का 1 पत्ता + 4 कलियां शीशम की + थोड़ा-सा हरा धनिया आपस में मिलाकर 1 कप पानी में तब तक उबालें जब तक पानी आधा कप न बच जाए, फिर इसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर पीने से आराम होगा।
- पीपल के पेड़ की कोपलों को मिट्टी के बर्तन में बंद करके जलाकर उसकी राख बना लें। इस राख को खाने से मंदाग्नि एवं अजीर्ण में लाभ होता है।
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